जानिए आज क्या खाना है गोमांस के समान त्याज्य, साथ ही जानिए क्या है बृहस्पति नीति

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आज का हिन्दू पंचांग

दिनांक 30 सितम्बर 2021

दिन – गुरुवार

विक्रम संवत – 2078 (गुजरात – 2077)

शक संवत -1943

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – शरद

मास -अश्विन (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार – भाद्रपद)

पक्ष – कृष्ण

तिथि – नवमी रात्रि 10:08 तक तत्पश्चात दशमी

नक्षत्र – पुनर्वसु 1 अक्टूबर रात्रि 1:32 तक तत्पश्चात पुष्य

योग – परिघ शाम 6:53 तक तत्पश्चात शिव

राहुकाल – दोपहर 1:58 से शाम 3:28 तक

सूर्योदय – 6:30

सूर्यास्त – 18:26

दिशाशूल – दक्षिण दिशा में

व्रत पर्व विवरण –

अविधवा नवमी, नवमी का श्राद्ध, गुरुपुष्पामृत योग रात्रि 1:33 (अर्थात 1 अक्टूबर 1:33 AM से 1 अक्टूबर सूर्योदय तक)

विशेष –

नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है।

(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

लक्ष्मी माँ की प्रसन्नता पाने हेतु

समुद्र किनारे कभी जाएँ तो दिया जला कर दिखा दें। समुद्र की बेटी हैं लक्ष्मी, समुद्र से प्रगटी हैं, समुद्र मंथन के समय।

अगर दिया दिखा कर ” ॐ वं वरुणाय नमः ” जपें और थोड़ा गुरु मंत्र जपें मन में तो वरुण भगवान भी राजी होंगे और लक्ष्मी माँ भी प्रसन्न होंगी।

बृहस्पति नीति

बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। उन्होंने ऐसी कई बातें बताई हैं, जो हर किसी के लिए बहुत काम की साबित हो सकती हैं। बृहस्पति ने इन ऐसे नीतियों का वर्णन किया है, जो किसी भी मनुष्य को सफलता की राह पर ले जा सकती हैं।

मुश्किल कामों में भी आसानी से पालेंगे सफलता अगर ध्यान रखेंगे ये 3 बातें

हर परिस्थिति में भगवान को याद रखें

श्लोक

*सकृदुच्चरितं येन हरिरित्यक्षरद्वयम।
*बद्ध: परिकरस्तेन मोक्षाय गमनं प्रति।

अर्थात

मनुष्य को हर परिस्थिति में भगवान को याद करना चाहिए, क्योंकि भगवान का स्मरण ही हर सफलता की कुंजी हैं।

जो मनुष्य इस बात को समझ लेता है, उसे जीवन में सभी सुख मिलते हैं और स्वर्ग पाना संभव हो जाता है।

दुर्जनों को छोड़, सज्जनों की संगती करें

श्लोक

त्यज दुर्जनसंसर्ग भज साधुसमागम।
*कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यता।

अर्थात

मनुष्य को दुर्जन यानी बुरे विचारों और बुरी आदतों वाले लोगों की संगति छोड़कर, बुद्धिमान और सज्जन लोगों से दोस्ती करनी चाहिए।

सज्जन लोगों की संगति में ही मनुष्य दिन-रात धर्म और पुण्य के काम कर सकता है।

हर कोई मनुष्य का साथ छोड़ देता है लेकिन धर्म नहीं

श्लोक

तैस्तच्छरीरमुत्सृष्टं धर्म एकोनुग्च्छति।
*तस्ताद्धर्म: सहायश्च सेवितव्य सदा नृभि:।

अर्थात

हर कोई कभी न कभी साथ छोड़ देता है, लेकिन धर्म कभी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता। जब कोई भी अन्य मनुष्य या वस्तु आपका साथ नहीं देती, तब आपके द्वारा किए गए धर्म और पुण्य के काम ही आपकी मदद करते हैं और हर परेशानी में आपकी रक्षा करते हैं।

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