दिनांक 27 अक्टूबर 2021
दिन – बुधवार
विक्रम संवत – 2078 (गुजरात – 2077)
शक संवत -1943
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत
मास – कार्तिक (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार अश्विन)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – षष्ठी सुबह 10:50 तक तत्पश्चात सप्तमी
नक्षत्र – आर्द्रा सुबह 07:08 तक तत्पश्चात पुनर्वसु
योग – सिध्द रात्रि 02:10 तक तत्पश्चात साध्द
राहुकाल – दोपहर 12:22 से दोपहर 01:48 तक
सूर्योदय – 06:40
सूर्यास्त – 18:04
दिशाशूल – उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण –
विशेष –
षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
पुष्य नक्षत्र योग
28 अक्टूबर 2021 गुरुवार को सुबह 09:42 से 29 अक्टूबर को सूर्योदय तक गुरुपुष्यमृत योग है।
१०८ मोती की माला लेकर जो गुरुमंत्र का जप करता है, श्रद्धापूर्वक तो २७ नक्षत्र के देवता उस पर खुश होते हैं और नक्षत्रों में मुख्य है पुष्य नक्षत्र, और पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं देवगुरु ब्रहस्पति।
पुष्य नक्षत्र समृद्धि देनेवाला है, सम्पति बढ़ानेवाला है। उस दिन ब्रहस्पति का पूजन करना चाहिये।
ब्रहस्पति को तो हमने देखा नहीं तो सद्गुरु को ही देखकर उनका पूजन करें और मन ही मन ये मंत्र बोले –
ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम :। ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम :।
कैसे बदले दुर्भाग्य को सौभाग्य में
बरगद के पत्ते पर गुरुपुष्य या रविपुष्य योग में हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें।
लोककल्याण सेतु – जून २०१४ से
गुरूपुष्यामृत योग
शिव पुराण में पुष्य नक्षत्र को भगवान शिव की विभूति बताया गया है। पुष्य नक्षत्र के प्रभाव से अनिष्ट- से- अनिष्टकर दोष भी समाप्त और निष्फल-से हो जाते हैं, वे हमारे लिए पुष्य नक्षत्र के पूरक बनकर अनुकूल फलदायी हो जाते हैं।
सर्वसिद्धिकर: पुष्य:।
इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है। पुष्य नक्षत्र में किये गए श्राद्ध से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है तथा कर्ता को धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है,
मांगलिक कार्य वर्जित हैं। (शिव पुराण, विद्येश्वर संहिताः अध्याय 10)