महिलाओं और बच्चों के विरूद्ध अपराध से संबंधित सभी विभागों में बेहतर तालमेल और बहु- आयमी रणनीति बनाने के लिए इन्टरैक्टिव सत्र का आयोजन

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शिमला। महिलाएं और बच्चे लंबे समय से हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्ग रहे हैं। विशेष रूप से महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, बलात्कार, अपहरण, भ्रूण हत्या, आदि के अपराध किये जाते हैं। दुनिया भर के अधिकांश समाजों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था है जहां पुरुष निर्णय लेने की प्रक्रिया का संचालन करते हैं। इस प्रभुत्व के कारण लिंग आधारित भेदभाव का जन्म हुआ जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देते हैं।

आपराधिक न्याय प्रणाली से अकेले इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता क्योंकि इसमें सामाजिक रूप से गहरे निहित कारण हैं, जो लैंगिक असमानता और भेदभाव से प्रभावित है।

कानून प्रवर्तन एजेंसियां केवल प्रतिक्रिया प्रणाली का एक हिस्सा हैं और वे मूल कारणों को समाप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। लैंगिक समानता, महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देना, उनके मानव अधिकारों को सुनिश्चित करना और उनके समग्र कल्याण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।

महिलाएं और बच्चे हमारे समाज का कमजोर वर्ग हैं, और उनके विरूद्व अपराधों में वृद्धि बहुत चिंता का विषय है। महिलाओं एवं बच्चों के विरूद्व अपराधों में यौन उत्पीड़न, बाल पोर्नोग्राफी, सोशल मीडिया में उनका शोषण, बच्चों का लापता होना, अनैतिक तस्करी, नशीली दवाओं का प्रयोग आदि शामिल है।

महिलाओं और बच्चों का आबादी का एक बड़ा हिस्सा होने के बावजूद भी उनसे जुड़े मुद्दे हमेशा पीछे रह जाते हैं। इस आधी आबादी की अनदेखी से समाज के कल्याण पर सामान्य रूप से गंभीर प्रभाव पड़ता है, जो टूटे हुए परिवारों के रूप में, तनाव के स्तर में वृद्धि, महिलाओं और बच्चों के विरूद्व अपराध में वृद्धि और सामाजिक-मनोवैज्ञानिक समस्याओं के रूप में प्रकट होता है। अपराधिक आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं और बच्चों के विरूद्व अपराध और मादक द्रव्यों के सेवन से संबंधित अपराधों में पिछले कुछ वर्षों में निरंतर वृद्धि हो रही है।

इस स्थिति से निपटने के लिए अकेले अपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार प्रभावी नहीं हो सकता है। अपितु इसके लिए सभी हितधारकों को एक साथ कार्य करना होगा तथा उन सभी मुद्दों का पता लगाना होगा जो इसको बढ़ाने के लिए कार्य करते हैं। लैंगिक भेदभाव, महिलाओं के अधिकार, मातृ स्वास्थ्य, बाल विवाह, आर्थिक असमानता, मातृ मृत्यु, बाल श्रम और बाल कुपोषण जैसे मुद्दों से निपटने के लिए अलग-अलग विभागों और एजेंसियों को एक साथ काम करने की आवश्यकता है।

महिलाओं और बच्चों के विरूद्ध अपराध से संबंधित सभी अंतर-विभागीय मुद्दों का निवारण करने एवं उनके बारे में एक बहु-आयमी रणनीति बनाने के लिए पुलिस मुख्यालय में एक इन्टरैक्टिव सत्र का आयोजन किया गया। पुलिस महानिदेशक संजय कुंडू ने इस दिशा में पहल की तथा निशा सिंह, अतिरिक्त मुख्य सचिव (सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता ) को उनके अधिकारियों की टीम के साथ इस सत्र के लिए आंमत्रित किया।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, गुप्तचर विभाग ने अपनी प्रस्तुति में हिमाचल प्रदेश में पिछले एक दशक में महिलाओं और बच्चों के विरूद्व अपराध में देखी गई प्रचलित प्रवृत्तियों की ओर ध्यान आकर्षित किया।

उन्होंने राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ राज्य स्तर पर महिलाओं के खिलाफ अपराध का तुलनात्मक विश्लेषण किया। उन्होनें अपनी प्रस्तुति में दर्शाया कि कुल अपराध के सबंधं में हिमाचल उन राज्यों में से है जहां पर कम अपराधिक घटनायें होती हैं।

उन्होंने महिलाओं और बच्चों के विरूद्व अपराध का सामना करने में पूर्वानुमानात्मक पुलिसिंग उपकरणों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने मादक पदार्थों की तस्करी में बच्चों की भागीदारी के प्रति प्रमुख चिंता व्यक्त की।

जिला पुलिस अधीक्षक चंबा, कांगड़ा, मंडी और शिमला ने सत्र के दौरान महिलाओं और बच्चों के विरूद्व अपराध को रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर प्रकाश डाला।

डा मोनिका भुटूंगुरु, पुलिस अधीक्षक चम्बा ने मई, 2019 में चम्बा पुलिस द्वारा शुरू की गई एक योजना ‘‘खाकी वाली सखी को स्पष्ट किया। इस योजना के अन्तर्गत एक महिला पुलिस अधिकारी महिलाओं के विरूद्व अपराध की पीडि़ता से एक पखवाड़े में या तो टेलीफोन के माध्यम से या उसके घर यात्रा करके सम्पर्क करती है। अब तक इस योजना के माध्यम से 78 महिला आरक्षियों द्वारा 1035 महिलाओं की सेवा की चुकी है।

पुलिस अधीक्षक मंडी ने एक मामले के अध्ययन के माध्यम से प्रकाश डाला कि राज्य में बलात्कार के अधिकांश मामलों में अपराधी पीडि़त और उसके परिवार के जानने वाले होते हैं या उनके परिवार के बहुत करीबी सदस्य होते हैं। जिस कारण मामले के पंजीकरण के लिए पुलिस से संपर्क करना पीडि़त और उसके परिवार के लिए मुश्किल होता है। इससे मामले का अन्वेषण करना भी मुश्किल होता है, क्योंकि पीडि़ता और उसका परिवार सामाजिक दबावों के कारण या आरोपी द्वारा लगातार डराने-धमकाने के कारण तथ्यों को पुलिस को नहीं बताते है।

पुलिस अधीक्षक, मंडी ने बताया कि महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित एक योजना महिला पुलिस स्वयंसेवकष् सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के पास लंबित है।

उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि जिला मुख्यालय पर एक स्टॉप सेंटर को आपातकालीन प्रतिक्रिया और बचाव सेवाएं, चिकित्सा सहायता और कानूनी सहायता परामर्श आदि प्रदान करने कि लिए संचालित किया जाए।
पुलिस अधीक्षक कांगड़ा ने बताया कि महिलाओं के विरूद्ध कुल अपराध में 48 प्रतिशत अपराध छेड़छाछ और बलात्कार शामिल हैं।

विवाहित महिलाओं के प्रति क्रूरता के अपराध, महिलाओं के विरुद्ध कुल अपराध का 16 प्रतिशत है।
दहेज निषेध अधिनियम और दहेज मृत्यु (304-बी आईपीसी) के तहत लगभग नगण्य मामले पंजीकृत हुए हैं।

बच्चों के विरूद्व अपराध के कुल मामलों में 49 प्रतिशत मामले अपहरण/व्यपहरण के शामिल है।
बच्चों के विरूद्व अपराध के 40 प्रतिशत मामले बलात्कार और छेड़छाड़ से संबंधित हैं।

पुलिस अधीक्षक, कांगड़ा ने महिलाओं और बच्चों के विरूद्व अपराध से निपटने में आ रही दिक्कतों पर कहा कि
महिला पुलिस अधिकारियों की कमी विशेषकर पोक्सो अधिनियम के अर्न्तगत मामलों से निपटने के लिए है।

प्रत्येक पुलिस स्टेशन में कम से कम एक महिला ग्रेड- 1 (सब-इंस्पेक्टर) को तैनात किया जाना चाहिए।

प्रत्येक जिले में ज्यादा ‘‘वन स्टॉप सेंटर की आवश्यकता है।

पोक्सो अधिनियम के तहत मामलों से निपटने के लिए प्रत्येक पुलिस स्टेशन में एक समर्पित वाहन उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।

महिलाओं और बच्चों से सम्बन्धित अपराधों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।

पुलिस अधीक्षक शिमला ने नेपाली द्वारा किए गए अपराध के मुद्दों को उठाया। उन्होने बताया कि क्योंकि नेपाल के साथ हमारी कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है, इसलिए आरोपी को नेपाल से वापस लाना बहुत मुश्किल हो जाता है। उदघोषित अपराधियों की एक बड़ी संख्या नेपालियों की है, जो अपराध करने के पश्चात नेपाल भाग गए हैं। कुल 299 उदघोषित अपराधियों में से 79 नेपाली हैं।

पुलिस अधीक्षक, शिमला ने घरेलू हिंसा अधिनियम को लागू करने में आने वाली कठिनाइयों की ओर भी ध्यान दिलाया। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, घरेलू हिंसा के मामलों की निगरानी और परामर्श के लिए संरक्षण अधिकारी नियुक्त किये जाते है।

यदि परामर्श के सार्थक परिणाम नहीं निकले तो उन मामलों को पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए भेजा जाना चाहिए, जबकि इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है।

संरक्षण अधिकारी उचित प्रशिक्षण की कमी के कारण अपने कर्तव्यों का कुशलतापूर्वक पालन करने में असमर्थ हैं। उन्होने कहा कि संरक्षण अधिकारियों के लिए क्षमता निर्माण हेतु नियमित रूप से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है।

पुलिस अधीक्षक साइबर अपराध ने साइबर स्पेस, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, साइबर बुलिंग और यौन शोषण पर एक पावर प्वाइंट प्रस्तुति दी।

संजय कुंडू ने अपने संबोधन में यौन उत्पीड़न, बाल पोर्नोग्राफी, सोशल मीडिया में शोषण, लापता बच्चों, अनैतिक तस्करी, अश्लील प्रतिनिधित्व, नशीली दवाओं और मादक द्रव्यों के सेवन आदि के मुद्दों पर जोर दिया।

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