जानिए वामन द्वादशी का व्रत किस प्रकार करें

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आज का हिन्दू पंचांग

दिनांक 17 सितम्बर 2021

दिन – शुक्रवार

विक्रम संवत – 2078 (गुजरात – 2077)

शक संवत -1943

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – शरद

मास-भाद्रपद

पक्ष – शुक्ल

तिथि –

एकादशी सुबह 8:07 तक तत्पश्चात द्वादशी

नक्षत्र –

श्रवण 18 सितम्बर रात्रि 3:36 तक तत्पश्चात धनिष्ठा

योग – अतिगण्ड रात्रि 08:21 तक तत्पश्चात सुकर्मा

राहुकाल – सुबह 11 01 से दोपहर 12:33 तक

सूर्योदय – 6:27

सूर्यास्त – 18:38

दिशाशूल – पश्चिम दिशा में

व्रत पर्व विवरण –

पद्मा- परिवर्तीनी एकादशी, वामन जयंती, षडशीति संक्रांति (पुण्यकाल : सूर्योदय से दोपहर 12:34 तक)

विशेष –

हर एकादशी को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। राम रामेति रामेति । रमे रामे मनोरमे । सहस्त्र नाम त तुल्यं । राम नाम वरानने ।

आज एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से विष्णु सहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है।

एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।

एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है।

एकादशी को शिम्बी (सेम) ना खाएं अन्यथा पुत्र का नाश होता है।

जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।

षडशीति संक्रान्ती

17 सितम्बर 2021 शुक्रवार को षडशीति संक्रान्ती है ।

पुण्यकाल :

सूर्योदय से दोपहर 12:34 तक। जप, तप, ध्यान और सेवा का पूण्य 86000 गुना है।

इस दिन करोड़ काम छोड़कर अधिक से अधिक समय जप – ध्यान, प्रार्थना में लगायें।

षडशीति संक्रांति में किये गए जप ध्यान का फल ८६००० गुना होता है – (पद्म पुराण )

पद्मा एकादशी

16 सितम्बर 2021 गुरुवार को सुबह 9:37 से 17 सितम्बर, शुक्रवार को सुबह 8:07 तक एकादशी है ।

विशेष –

17 सितम्बर, शुक्रवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।

पद्मा एकादशी के व्रत करने व माहात्म्य पढ़ने – सुनने से सर्व पापों का नाश।

वामन द्वादशी

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को वामन द्वादशी या वामन जयंती कहते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान वामन का प्राकट्य हुआ था।

इस बार वामन द्वादशी 17 सितम्बर, शुक्रवार को है। धर्म ग्रंथों में वामन को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है।

वामन द्वादशी का व्रत इस प्रकार करें-

व्रत व पूजा विधि

वैष्णव भक्तों को इस दिन उपवास करना चाहिए। सुबह स्नान आदि करने के बाद वामन द्वादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

दोपहर (अभिजित मुहूर्त) में भगवान वामन की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद एक बर्तन में चावल, दही और शक्कर रखकर किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।

शाम के समय व्रती (व्रत करने वाला) को फिर से स्नान करने के बाद भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए।

इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और स्वयं फलाहार करना चाहिए। इस तरह व्रत व पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

वामन जयंती की प्रामाणिक कथा

एक बार दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। पराजित इंद्र की दयनीय स्थिति को देखकर उनकी मां अदिति बहुत दुखी हुईं।

उन्होंने अपने पुत्र के उद्धार के लिए विष्णु की आराधना की।

इससे प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट होकर बोले- देवी! चिंता मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को उसका खोया राज्य दिलाऊंगा।

समय आने पर उन्होंने अदिति के गर्भ से वामन के रूप में अवतार लिया। उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे।

एक दिन उन्हें पता चला कि राजा बलि स्वर्ग पर स्थायी अधिकार जमाने के लिए अश्वमेघ यज्ञ करा रहा है। यह जानकर वामन वहां पहुंचे।

उनके तेज से यज्ञशाला प्रकाशित हो उठी। बलि ने उन्हें एक उत्तम आसन पर बिठाकर उनका सत्कार किया और अंत में उनसे भेंट मांगने के लिए कहा।

इस पर वामन चुप रहे। लेकिन जब बलि उनके पीछे पड़ गया तो उन्होंने अपने कदमों के बराबर तीन पग भूमि भेंट में मांगी।

बलि ने उनसे और अधिक मांगने का आग्रह किया, लेकिन वामन अपनी बात पर अड़े रहे। इस पर बलि ने हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया। संकल्प पूरा होते ही वामन का आकार बढ़ने लगा और वे वामन से विराट हो गए।

उन्होंने एक पग से पृथ्वी और दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना मस्तक आगे कर दिया। वह बोला- प्रभु, सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है।

तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दें। सब कुछ गंवा चुके बलि को अपने वचन से न फिरते देख वामन प्रसन्न हो गए। उन्होंने ऐसा ही किया और बाद में उसे पाताल का अधिपति बना दिया और देवताओं को उनके भय से मुक्ति दिलाई।

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