शिमला। विख्यात चिकित्सा विज्ञानी पद्मश्री डॉक्टर ओमेश भारती ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश में लगभग ढाई लाख लोग घातक रोग थैलेसीमिया के कैरियर हैं।
विवाह पूर्व थैलेसीमिया की जांच करने से इस अनुवांशिक रक्त विकार का फैलाव रोका जा सकता है। देश में हिमाचल ऐसा पहला राज्य बन गया है जहां इस रोग को लेकर सर्वेक्षण किया गया। लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
कार्यक्रम की संयोजक एवं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान में पीएचडी कर रही दृष्टिबाधित छात्रा प्रतिभा ठाकुर ने बताया कि डॉ भारती अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस पर उमंग फाउंडेशन के वेबिनार में “थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के अधिकार और रक्तदान का महत्व” विषय पर बोल रहे थे।
फाउंडेशन के अध्यक्ष और 93 बार रक्तदान कर चुके प्रो अजय श्रीवास्तव ने खूनदान पर विस्तृत चर्चा की। मानवाधिकार जागरुकता पर संस्था का यह 33 वां साप्ताहिक कार्यक्रम था।
डॉक्टर ओमेश भारती ने बताया कि अनुवांशिक बीमारी होने के कारण थैलेसीमिया माता-पिता से बच्चों में आता है। यह संक्रामक रोग नहीं है।
थैलेसीमिया की पहचान जन्म के पांच -छह महीने के भीतर ही हो जाती है क्योंकि बच्चा अत्यंत कमजोर हो जाता है। फिर उसको समय-समय पर जीवन भर रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। साथ ही दवाएं भी खानी पड़ती हैं। इसका निश्चित पक्का ईलाज अभी सम्भव नहीं है।
उन्होंने कहा कि शिशुओं में कमजोरी के लक्षण आने पर उन्हें तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। देवता या तांत्रिक के पास जाने से इसमें कोई लाभ नहीं हो सकता।
इस बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए विवाह पूर्व खून की जांच कराना आवश्यक है। यह टेस्ट लगभग 410 रुपए का होता है। इससे यह पता चल जाता है कि व्यक्ति थैलेसीमिया का कैरियर तो नहीं है।
थैलेसीमिया के कैरियर पुरुष या महिला को ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं करनी चाहिए जो थैलेसीमिया का कैरियर हो। यदि वे डॉक्टरों की सलाह के विपरीत शादी करते हैं तो 25% संभावना होती है कि उनकी संतान थैलेसीमिया मेजर रोग से ग्रस्त होगी।
उन्होंने कहा कि पंजाब और इसके साथ लगते क्षेत्रों में थैलेसीमिया का प्रकोप ज्यादा देखा जाता है। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा और सिरमौर के लोगों में थैलेसीमिया की विकृत जींस पाए जाने की संभावना अधिक होती है। लेकिन हिमाचल को छोड़कर पंजाब अथवा किसी अन्य राज्य में इस बारे में कोई विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है।
उनका कहना था कि पहली बार उन्होंने हिमाचल में व्यापक सर्वेक्षण किया और पाया कि लगभग ढाई लाख लोग थैलेसीमिया की विकृत जीन के कैरियर हैं।
प्रो अजय श्रीवास्तव ने कहा कि विकलांगजन अधिकार कानून 2016 के अंतर्गत थैलेसीमिया को एक विकलांगता माना गया है। लेकिन थैलेसीमिया पीड़ित व्यक्तियों के लिए दिव्यांग कोटे से नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। जबकि शिक्षण संस्थानों में उन्हें दिव्यांगों के 4% आरक्षण के कोटे का लाभ मिलता है।
उन्होंने युवाओं से रक्तदान की अपील की और कहा कि इससे थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों समेत अन्य जरूरतमंद रोगियों को जीवनदान मिलता है तथा हमारे शरीर में कोई कमजोरी नहीं आती। उन्होंने प्रदेश की खस्ताहाल ब्लड बैंकिंग व्यवस्था को सुधारने के लिए बड़ा जनांदोलन शुरू करने की जरूरत बताई।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पीएचडी की दृष्टिबाधित छात्रा इतिका चौहान ने कार्यक्रम का संचालन और थैलेसीमिया से प्रभावित छात्रा जैस्मीन ग्रोवर ने प्रतिभागियों का स्वागत किया। एमए- मनोविज्ञान और सोशल वर्क की छात्राओं क्रम से साहिबा ठाकुर और ऋतु वर्मा ने प्रश्न-उत्तर एवं धन्यवाद ज्ञापन का दायित्व निभाया।
वेबीनार में तकनीकी सहयोग उदय वर्मा और संजीव शर्मा ने दिया।