क्या है पित्त की पथरी (Gall Bladder Stone) Cholelithiasis या Gall Bladder Disease (GBD)

Spread with love

हिमाचल। वर्तमान समय में खान-पान हमारा रहन-सहन सब असंतुलित हो गया है, इस असंतुलित जीवन शैली से कई शारीरिक समस्यायें होती हैं Gall Bladder Stone भी इन्हीं में से एक है।

इससे महिलाएं और बुजुर्ग अधिक प्रभावित होते हैं पर यह बीमारी किसी भी उम्र के इंसान को हो सकती है।
गॉल ब्लैडर स्टोन का पता तब चलता है जब यह दर्दनाक बन जाता है। उचित समय पर इसका ईलाज करवाना बहुत जरूरी है वर्ना यह बहुत घातक और जानलेवा हो सकता है।

इसके कारण दर्द सूजन संक्रमण तो होते ही हैं, साथ ही कैंसर जैसी घातक बीमारी होने का खतरा भी बना रहता है, प्रारंभिक चरण में ही ईलाज करवा लेने से राहत मिल जाती है।

गाल ब्लैडर हमारे शरीर का एक छोटा सा अंग है। एक छोटी थैली है जो लिवर के ठीक पीछे होती है। इसमें हरे रंग का पदार्थ जो लिवर में बन कर इस थैली में इकठ्ठा होता रहता है, यह हमारे पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो लिवर और छोटी आंत के बीच पुल की तरह काम करता है।

जब पित्त में उपस्थित कोलेस्ट्राल, बिलरूबिन पदार्थ पिताशय (ब्लैडर) में एकत्रित होने लगते हैं तो मिल कर कठोर पदार्थ बना देते हैं जो पत्थर के समान हो जाता है जिसे हम पित्त की पथरी कहते हैं।

यह दो प्रकार के होते हैं

1- कोलेस्ट्राल स्टोन

ये पीले हरे रंग के होते हैं जो कोलेस्ट्राल से बनते हैं।
लगभग 80 प्रतिशत मरीज़ों में यही पथरी होती है।

2- पिगमेंट स्टोन

ये बिलीरूबिन से बने होते हैं और साईज में छोटे और काले होते हैं।

गॉल ब्लैडर स्टोन के कारण-

अनियमित जीवन शैली
असंतुलित खान-पान
मोटापा
गर्भवती महिलाओं में पथरी होने की संभावना ज्यादा रहती है
40 से अधिक उम्र
जंक फूड

इसे ऐसे याद रख सकते हैं-

5 ‘F’ से

Females (महिलाओं)
Fatty ( मोटापा)
Fair ( सुन्दर स्त्रियों में)
Fertile (बाल बच्चों वाली)
Forty (40 पार उम्र के बाद)

और हाँ – एक और ‘F’
Food (जंक फूड)

Diagnosis

इसके लिये पेट का अल्ट्रासाउंड व सीटी स्केन किया जाता है।

MRCP (मैग्नेटिक रेजोनेंस कोलेनंजोपैनक्रियेटोग्राफी)
ERCP (एंडोस्कोपिक रिट्रोग्रेड कोलेनंजोपैनक्रियेटोग्राफी) का उपयोग भी होता है।

ब्लड टेस्ट से संक्रमण व पीलिया का पता चल सकता है।

गॉल ब्लैडर स्टोन का स्थाई ईलाज ऑपरेशन ही है।
इस ऑपरेशन को cholesystectomy (कोलीसिस्टेक्टॉमी) कहते हैं। यह दो तरीके से किया जाता है।

1- Open cholesystectomy

(ओपन कोलीसिस्टेक्टॉमी)

इसमे शल्य चिकित्सक पेट के निचले हिस्से में एक बड़ा कट लगाता है, लगभग 1 सप्ताह तक अस्पताल में दाखिल होना पड़ता है और रिकवरी में समय लगता है।

2- Laproscopic Cholesystectomy

(लेपरोस्कोपिक कोलीसिस्टेक्टॉमी)

इसमे आधा इंच से छोटे कट की मदद से लेपरोस्कोप और अन्य उपकरण को पेट में डाला जाता है और पिताशय को अलग कर दिया जाता है। एक मिनिमल इनवेसिव प्रक्रिया होने के कारण कोई बड़ा कट नहीं होता और उसे 24 घण्टे में छुट्टी दे दी जाती है।

सौजन्य

डॉ रमेश चंद

उप स्वास्थ्य निदेशक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: