नेरवा, नोविता सूद। चौपाल विधान सभा क्षेत्र की तहसील नेरवा,चौपाल और कुपवी तहसील के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र को जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के साथ ही जनजातीय दर्जा देने के लिए इन क्षेत्रों में खुमलियों का दौर शुरू हो चूका है।
इस मांग को लेकर पिछले रविवार को जहां तहसील कुपवी मुख्यालय में एक महा खुमली आयोजित की गई,वहीँ गत रविवार को नेरवा में भी एक खुमली का आयोजन किया गया।
इस खुमली में उपमंडल चौपाल की नेरवा और चौपाल तहसील के बीस परगनों के तीन दर्जन से भी अधिक नम्बरदारों एवं आठ जेलदारों ने भाग लेकर सरकार से मांग की कि इन क्षेत्रों को गिरिपार के साथ जनजातीय का दर्जा प्रदान किया जाये।
इस मौके पर हरेक क्षेत्र के हरेक परगना के नम्बरदारों और जैलदारों के अलावा पांच पांच सदस्य केंद्रीय हाटी समिति में शामिल करने का निर्णय लिया गया। यह सदस्य केंद्रीय समिति के साथ क्षेत्रवासियों की इस मांग को सरकार तक पंहुचायेंगे तथा इस संघर्ष में समिति के साथ रहेंगे।
खुमली में मौजूद इलाका नम्बरदारों और जेलदारों का कहना है कि लोकसभा के चुनाव में चौपाल विधानसभा के लोगों ने सांसद को 27 हज़ार वोटों की लीड देकर रिकोर्ड बनाया है और बलवीर सिंह वर्मा को भी दो बार विधायक बनाया है। ऐसे में अब चौपाल विधानसभा क्षेत्र में ग्रामीणों के हितों की रक्षा करना विधानसभा और लोकसभा में भेजे गए माननीयों का कर्तव्य है।
लोगों का कहना है कि पहले से ही जनजातीय दर्जा प्राप्त उत्तराखंड के जौनसार बाबर और प्रस्तावित जनजातीय क्षेत्र गिरिपार तथा चौपाल विधानसभा के पुराने क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थियाँ और जनजीवन सौ फीसदी एक जैसा है।
जब गिरिपार को जनजातीय दर्जा दिया जा रहा है तो इस क्षेत्र की अनदेखी क्यों की जा रही है। चौपाल विधानसभा क्षेत्र के पुराने क्षेत्रों के लोगों का खानपान, पहरावा, रीतिरिवाज, मेले, त्यौहार और अन्य समारोह एक जैसे है।
यही नहीं इन क्षेत्रों का आपस में रोटी-बेटी का रिश्ता भी है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उपमंडल चौपाल और कुपवी के सभी क्षेत्रों को गिरिपार के साथ ही जनजातीय दर्जा प्रदान किया जाए। खुमली में यह भी फैसला लिया गया कि यदि उनकी मांग की अनदेखी की जाती है तो संघर्ष का बिगुल फूंक दिया जाएगा।
केंद्रीय हाटी संघर्ष समिति के संयोजक अमर सिंह सिंघटा ने कहा कि उपमंडल चौपाल और कुपवी क्षत्र के लोग ही असली हाटी है जो पुराने समय में सैंकड़ों मील दूर चूहड़पुर (अब विकासनगर),यमुनानगर,दिल्ली आदि बड़े हाटों (बाजारों) में खरीददारी के लिए जाते थे तथा इसीलिए इन्हें हाटी कहा जाता था। लिहाजा जनजातीय दर्जा पर भी मूल हाटी समुदाय के इन्हीं लोगों का जायज हक़ बनता है।