आज का हिन्दू पंचांग
दिनांक – 06 मार्च 2022
दिन – रविवार
विक्रम संवत – 2078
शक संवत -1943
अयन – उत्तरायण
ऋतु – वसंत ऋतु
मास – फाल्गुन
पक्ष – शुक्ल
तिथि – चतुर्थी रात्रि 09:11 तक तत्पश्चात पंचमी
नक्षत्र – अश्विनी 07 मार्च रात्रि 03:51 तक तत्पश्चात भरणी
योग – ब्रह्म रात्रि 12:01 तक तत्पश्चात इन्द्र
राहुकाल – शाम 05:16 से शाम 06:45 तक
सूर्योदय – 06:56
सूर्यास्त – 18:43
दिशाशूल – पश्चिम दिशा में
व्रत पर्व विवरण – विनायक चतुर्थी
विशेष – चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
बुढ़ापे में झुर्रियों से बचने हेतु
बड़ी उम्रवालों को सूखा नारियल चबा के खाना चाहिये तो झुर्रियां नहीं पड़ेगी। नारंगी खाना चाहिये तो झुर्रियां नहीं पड़ेगी।
मास अनुसार देवपूजन
माघ मास में सूर्य पूजन का विशेष विधान है। भविष्य पुराण आदि में वर्णन आता है। आरोग्यप्राप्ति हेतु, माघ मास आया तो सूर्य उपासना करों।
फाल्गुन मास आया तो होली का पूजन किया जाता है.. बच्चों की सुरक्षा हेतु।
चैत्र मास आता है चैत्र मास में ब्रम्हा, दिक्पाल आदि का पूजन कियाजाता है ताकि वर्षभर हमारे घर में सुख-शांति रहें।
वैशाख मास भगवान माधव का पूजन किया जाता है ताकि, मरने के बाद वैकुंठलोक की प्राप्ति हो। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
जेष्ठ मास में यमराज की पूजा की जाती है जो की वटसावित्री का व्रत सुहागन देवियाँ करती हैं। यमराज की पूजा की जाती है ताकि, सौभाग्य की प्राप्ति हो, दुर्भाग्य दूर हो।
श्रावण मास में दीर्घायु की प्राप्ति हो, श्रावण मास में शिवजी की पूजाकी जाती है | अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम्।
भाद्रपद मास में गणपति की पूजा करते है की, निर्विध्नता की प्राप्ति हेतु।
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में फिर पितृ पूजन करते है की, वंश वृद्धि हेतु और अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में माँ दुर्गा की पूजा होती है की, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु नवरात्रियां।
कार्तिक मास में लक्ष्मी पूजा की जाती है, सम्पति बढ़ाने हेतु।
मार्गशीर्ष मास में विश्वदेवताओं का पूजन किया जाता है कि जो गुजर गये उनकी आत्मा की शांति हेतु ताकि उनको शांति मिले। जीवनकाल में तो बिचारेशांति न लें पाये और चीजों में उनकी शांति दिखती रही पर मिली नहीं। तो मार्गशीर्ष मास में विश्व देवताओं का पूजन करते हैं भटकते जीवों के सद्गति हेतु।
आषाढ़ मास में गुरुदेव का पूजन करते हैं अपने कल्याण हेतु और गुरुदेव का पूजन करते हैं तो फिर बाकी सब देवी-देवताओं की पूजा से जो फल मिलता है वह फल सद्गुरु की पूजा से भी प्राप्त हो सकता है, शिष्य की भावना पक्की हो की – सर्वदेवोमय गुरु।
सभी देवों का वास मेरे गुरुदेव में हैं तोअन्य देवताओं की पूजा से अलग-अलग मास में अलग-अलग देव की पूजा से अलग-अलग फल मिलता है पर उसमें द्वैत बना रहता है और फल जो मिलता है वो छुपने वाला होता है।
पर गुरुदेव की पूजा-उपासना से ये फल भी मिल जाते है और धीरे-धीरे द्वैत मिटता जाता है। अद्वैत में स्थिति होती जाती है।
चंदन तिलक की महिमा
चंदनस्य महतपुण्यं पवित्रं पाप नाशनम।
आपदं हरति नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा।
चंदन का तीलक महापुण्यदायी है, आपदा हर देता है।