जनजातीय दर्जा देने के लिए चौपाल के लोग होने लगे लामबन्द

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नेरवा,नोविता सूद। जनजातीय दर्जा देने के लिए उपमंडल चौपाल की तहसील नेरवा,कुपवी और चौपाल के लोगों ने आर पार की लड़ाई लड़ने के लिए कमर कस ली है।

हालाँकि लोगों की तरफ से अभी तक किसी आंदोलन की घोषणा नहीं की गई है,परन्तु इस मांग को लेकर जहां इन क्षेत्रों के लोगों का खुमलियों का दौर लगातार जारी है।

वहीँ लोग हरेक माध्यम से अपनी आवाज को सरकार तक पंहुचाने के कोशिश कर रहे है एवं लोगों की यह आवाज दिन प्रति दिन बुलंद होती जा रही है।

अब केंद्रीय हाटी समिति ने देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी,केंद्रीय राज्य वित् मंत्री अनुराग ठाकुर,भाजपा के राष्ट्री अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा,अनुसूचित मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा,प्रधान मंत्री के सलाहकार तरुण कपूर,मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश जय राम ठाकुर एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुरेश कश्यप को पत्र लिख कर मांग की है कि नेरवा, चौपाल और कुपवी के पुरातन इतिहास, सामाजिक,भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों के मद्देनज़र इन क्षेत्रों को भी जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के साथ जनजातीय दर्जा प्रदान किया जाए।

पत्र के साथ उत्तराखंड के जौनसार बाबर, गिरिपार और उक्त क्षेत्रों के सन्दर्भ में एक प्रमाणिक शोधपत्र संलग्न कर तथ्य प्रेषित किये गए हैं।

केंद्रीय हाटी समिति ने तथ्यात्मक प्रमाण के साथ कहा है कि जिला सिरमौर के गिरिपार और इसके साथ लगते नेरवा,चौपाल व कुपवी के दुर्गम क्षेत्र का हाटी कबीला अलग अलग नहीं बल्कि मानव इतिहास, भौगोलिक, सामाजिक,सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टि से एक समान और अभिन्न है।

समिति के महासचिव अमर सिंह सिंगटा ने बताया कि इतिहासकारों के अनुसार हाटी कबीलाई क्षेत्रों में रह रही सभी जातियां आदिम कोल,आदिम कुलिंद और आदिम खश जातियों से अपने अपने कर्म अनुसार बनी हुई है।

वर्तमान समय में दोनों क्षेत्रों में बसने वाले कोली हाटी, लोहार हाटी,बाढ़ी/तरखाण/ढाकी/दयाल/कशाग्री/डूम/चनाल एवं साध मूल कोली जाती के वंशज है जबकि आज कनैत कहलाने वाले हाटी आदिम कुणिंद जाती के वंशज तथा ख़ोश आदिम खश जाती के वंशज हैं।

इनके ही वंशज मावी, मवाणा और राणा कहलाये तथा आज के मियाँ,रावत व कंवर हाटी इन्हीं आदिम जातियों के वंशज हैं।

इन्हीं जातियों के ब्रह्मज्ञानी और देवपूजक लोग आज के ब्राह्मण,भाट और पुजारा कहलाते हैं। दोनों क्षेत्रों की इन समानताओं के आलावा इनका रहन सहन,रीति रिवाज, खानपान और पहरावा हूबहू एक जैसा है। उन्होंने कहा कि नेरवा,चौपाल, कुपवी और गिरिपार का संयुक्त हाटी कबीलाई क्षेत्र पूर्व दिशा में टौंस नदी,दक्षिण व पश्चिक में अंग्रेजी के एल आकार में बह रही गिरी नदी तथा उत्तर में चूड़धार पर्वत, खिड़की टीर, छात्र टीर, तालरा टीर,जामठ टीर एवं चौंरी टीर की अंगरेजी अक्षर सी आकर वाली अत्यंत ऊंची पर्वत श्रेणी से शेष हिमाचल से पृथक और अलग थलग पड़ा हुआ है।

अमर सिंह सिंगटा ने कहा कि प्राचीन समय में गिरिपार और नेरवा,चौपाल व कुपवी के दुर्गम क्षेत्र के लोग अपनी पीठ पर अपने उत्पाद अखरोट,केलों का तेल तथा सौंठ आदि लेकर सुदूर हाट (बाजार) में लेकर जाते थे तथा वापसी में वहां से नमक,गुड़ व कपड़ा आदि जरूरत का सामान लेकर आते थे।

लोगों को इस काम में छह से सात दिन का समय लग जाता था। आज भी कई जगह हाटी लोगों की यह परम्परा नजर आ जाती है। केंद्रीय हाटी समिति ने उपरोक्त सभी तथ्यों को सरकार के समक्ष रखते पत्र के माध्यम से मांग की है कि गिरिपार की सात तहसीलों व उप तहसीलों के साथ जिला शिमला की नेरवा, चौपाल और कुपवी दुर्गम तहसील के हाटी समुदाय को भी भारतीय संविधान के अंतर्गत अनुसूचित जनजाति वर्ग में अधिसूचित कर शामिल किया जाये, क्योंकि दोनों जिलों की दस तहसील व उपतहसील का हटी समुदाय अलग अलग नहीं बल्कि एक और अभिन्न है।

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