जानिए चतुर्थी को क्या खाने से होता है धन का नाश

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आज का पंचांग

दिनांक 27 जुलाई 2021

दिन – मंगलवार

विक्रम संवत – 2078 (गुजरात – 2077)

शक संवत – 1943

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – वर्षा

मास – श्रावण (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार – आषाढ़)

पक्ष – कृष्ण

तिथि – चतुर्थी 27 जुलाई रात्रि 02:29 तक तत्पश्चात पंचमी

नक्षत्र – शतभिषा सुबह 10:14 तक तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद

योग – शोभन रात्रि 09:11 तक तत्पश्चात अतिगण्ड

राहुकाल – शाम 04:02 से शाम 05:41 तक

सूर्योदय – 06:11

सूर्यास्त – 19:18

दिशाशूल – उत्तर दिशा में

व्रत पर्व विवरण –

संकष्ट चतुर्थी (चन्द्रोदय रात्रि 10:06), अंगारकी – मंगलवारी चतुर्थी (सूर्योदय से रात्रि 02:29 तक)

विशेष –

चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।

भारतीय समय के अनुसार 27 जुलाई को (सूर्योदय से रात्रि 02:29 तक) चतुर्थी है।

इस महा योग पर अगर मंगल ग्रह देव के 21 नामों से सुमिरन करें और धरती पर अर्घ्य देकर प्रार्थना करें, शुभ संकल्प करें तो आप सकल ऋण से मुक्त हो सकते हैं।

मंगल देव के 21 नाम इस प्रकार हैं :-

1) ॐ मंगलाय नमः

2) ॐ भूमि पुत्राय नमः

3 ) ॐ ऋण हर्त्रे नमः

4) ॐ धन प्रदाय नमः

5 ) ॐ स्थिर आसनाय नमः

6) ॐ महा कायाय नमः

7) ॐ सर्व कामार्थ साधकाय नमः

8) ॐ लोहिताय नमः

9) ॐ लोहिताक्षाय नमः

10) ॐ साम गानाम कृपा करे नमः

11) ॐ धरात्मजाय नमः

12) ॐ भुजाय नमः

13) ॐ भौमाय नमः

14) ॐ भुमिजाय नमः

15) ॐ भूमि नन्दनाय नमः

16) ॐ अंगारकाय नमः

17) ॐ यमाय नमः

18) ॐ सर्व रोग प्रहाराकाय नमः

19) ॐ वृष्टि कर्ते नमः

20) ॐ वृष्टि हराते नमः

21) ॐ सर्व कामा फल प्रदाय नमः

कोई कष्ट हो तो

हमारे जीवन में बहुत समस्याएँ आती रहती हैं, मिटती नहीं हैं। कभी कोई कष्ट, कभी कोई समस्या।

ऐसे लोग शिवपुराण में बताया हुआ एक प्रयोग कर सकते हैं कि, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (मतलब पुर्णिमा के बाद की चतुर्थी ) आती है।

उस दिन सुबह छः मंत्र बोलते हुये गणपतिजी को प्रणाम करें कि हमारे घर में ये बार-बार कष्ट और समस्याएं आ रही हैं वो नष्ट हों।

छः मंत्र इस प्रकार हैं –

ॐ सुमुखाय नम: : सुंदर मुख वाले; हमारे मुख पर भी सच्ची भक्ति प्रदान सुंदरता रहे ।

ॐ दुर्मुखाय नम: : मतलब भक्त को जब कोई आसुरी प्रवृत्ति वाला सताता है तो भैरव देख दुष्ट घबराये ।

ॐ मोदाय नम: : मुदित रहने वाले, प्रसन्न रहने वाले ।

उनका सुमिरन करने वाले भी प्रसन्न हो जायें ।

ॐ प्रमोदाय नम: : प्रमोदाय; दूसरों को भी आनंदित करते हैं । भक्त भी प्रमोदी होता है और अभक्त प्रमादी होता है,

आलसी

आलसी आदमी को लक्ष्मी छोड़ कर चली जाती है और जो प्रमादी न हो, लक्ष्मी स्थायी होती है।

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