हिमाचल में कृषि को बढ़ावा देने के लिए नवोन्मेषी प्रयास

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शिमला। हिमाचल प्रदेश को कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने तथा किसानों की आर्थिकी को सुदृढ़ करने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।

इसके दृष्टिगत मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के कुशल नेतृत्व में वर्तमान प्रदेश सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र की बेहतरी और कृषकों की सामाजिक आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए विभिन्न महत्वाकांक्षी योजनाएं एवं कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कृषि क्षेत्र के लिए वर्तमान वित्त वर्ष में 628.52 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

हिमाचल प्रदेश की अधिकांश जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है और यह क्षेत्र लगभग 70 प्रतिशत लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान कर रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने फसल विविधिकरण पर विशेष बल दिया है ताकि कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी और उत्पाद की गुणवत्ता के साथ-साथ कृषकों को उनकी फसल का उचित मूल्य भी मिल सके।

राज्य में 9.44 लाख हेक्टेयर भूमि पर काश्त होती है तथा सकल घरेलू उत्पाद में इसका लगभग 13.62 प्रतिशत योगदान है। प्रदेश सरकार किसान परिवारों को विभिन्न विकास कार्यक्रमों तथा आधुनिक तकनीक के लाभ पहंुचाने के लिए कृतसंकल्प है।

भूमि और जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों का इस प्रकार दोहन किया जा रहा है ताकि पर्यावरण संरक्षण को अपनाकर कृषकों का आर्थिक उत्थान सुनिश्चित बनाया जा सके।

कृषि में तकनीक के माध्यम से उच्च मूल्य वाली फसलों का उत्पादन बढ़ाने पर विशेष बल दिया जा रहा है। प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना आरम्भ की गई है।

इस योजना का लक्ष्य फसल उत्पादन लागत को कम कर आय बढ़ाना, मृदा व मानव को रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों से बचाना है। इस योजना के अन्तर्गत अब तक 58.46 करोड़ रुपये व्यय किए जा चुके हैं।

प्रदेश के 1 लाख 71 हजार 63 किसानों द्वारा 9 हजार 421 हैक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक पद्धति से खेती की जा रही है। वर्ष 2022-23 के लिए प्रदेश सरकार ने 50 हजार एकड़ भूमि को प्राकृतिक खेती के अन्तर्गत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है तथा 50 हजार किसानों को प्राकृतिक कृषक के रूप में प्रमाणित किया जाएगा।

प्रदेश में फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने के लिए हिमाचल प्रदेश फसल विविधिकरण प्रोत्साहन परियोजना लागू की गई है। प्रदेश मेे जाईका चरण-1 के सफल परिणामों को देखते हुए जाईका चरण-2 स्वीकृत की गई है। इसके अन्तर्गत 1010.13 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया गया है।

प्रदेश में कृषि को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक तकनीक को अपनाया जा रहा है तथा कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण के लिए सरकार ने राज्य कृषि यंत्रीकरण कार्यक्रम लागू किया है। इस योजना के तहत प्रदेश के किसानों को पावर टिल्लर व पावर वीडर, ब्रश कटर, रोटा वीडर, चैफ कटर, गेहूं थ्रैशर, मक्की शैलर, क्रॉप रीपर इत्यादि उपदान पर उपलब्ध करवाए जा रहे हैं।

इस कार्यक्रम के तहत पिछले चार वर्षों मेें 74.88 करोड़ रुपये व्यय किए गए हैं।

प्रदेश में बेसहारा पशुओं, बन्दरों एवं अन्य जंगली जानवरों से फसलों को काफी नुकसान पहंुचता है। इसके बचाव के लिए प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना आरम्भ की है।

इस योजना के अन्तर्गत कृषकों को सौर ऊर्जा चालित बाड़ लगाने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर 80 प्रतिशत व समूह आधारित बाड़बंदी के लिए 85 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान है। पिछले चार वर्षों के दौरान इस योजना पर 186.28 करोड़ रुपये व्यय किए गए हैं तथा 9 हजार 846 किसान लाभान्वित हुए हैं।

प्रदेश में किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए भी सरकार ने प्रवाह सिंचाई योजना, सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से कुशल सिंचाई योजना, जल से कृषि को बल योजना, उठाऊ सिंचाई योजना का निर्माण एवं बोरवेल योजना आदि योजनाएं कार्यान्वित की हैं।

इसके साथ-साथ विपणन की सुविधा हर किसान को घर के समीप मिल सके, इसके लिए जगह-जगह छोटे सब्जी संग्रहण केंद्र व मार्किट यार्ड बनाए जा रहे हैं। प्रदेश में कृषि विपणन कार्य के लिए राज्य स्तर पर कृषि विपणन बोर्ड गठित किया गया है, जिसके अन्तर्गत जिला स्तर पर 10 मंडियां क्रियाशील हैं तथा 54 उपमंडियां किसानों को विपणन सुविधा प्रदान कर रही हैं।

कृषक कल्याण को सर्वोच्च अधिमान देते हुए प्रदेश सरकार द्वारा राज्य में कृषि को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए खाद पर उपदान, कृषि से सम्पन्नता योजना, कृषि उत्पादन संरक्षण योजना, मुख्यमंत्री ग्रीन हाउस नवीकरण योजना सहित अनेक भी कार्यान्वित की जा रही हैं।

इसके साथ-साथ प्रदेश में केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएं भी सफलतापूर्वक लागू की जा रही हैं, जिनसे प्रदेश के किसानों की जिन्दगी में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं और उपज में बढ़ोतरी से उनकी आर्थिकी भी सुदृढ़ हो रही है।

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