नेरवा, नोविता सूद। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से घुमन्तु गुज्जर समुदाय के लोग गर्मियों के चार महीने के लिए उपमंडल के देवदार के जंगलों में अस्थाई रूप से रहने के लिए आ चुके हैं। इन दिनों उपमंडल चौपाल के देवदार के वनों में इन गुज्जरों ने अपने पशुओं के साथ अस्थाई डेरे डाले हुए हैं।
उपमंडल के मुख्य बाजारों चौपाल, नेरवा, सरांह के अलावा उपमंडल ठियोग के देहा में दूध, खोया और पनीर की आपूर्ति यही गुज्जर कर रहे हैं। इनका यह सिलसिला कई दशकों से लगातार चल रहा है जिस वजह से यह इस क्षेत्र में समाज का एक अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं तथा स्थानीय लोगों से इनके भाईचारे के सम्बन्ध बन चुके हैं।
निचले क्षेत्रों में गर्मी अधिक होने एवं चारे की कमी होने की वजह से गुज्जर समुदाय के ये लोग अपने पशुओं के साथ अप्रैल माह की सक्रांति के बाद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के नीचले क्षत्रों से उपमंडल चौपाल में देवदार के जंगलों में बनी चरागाहों में पंहुचना शुरू हो जाते हैं।
इसके बाद यह करीब चार महीने तक इन चरागाहों में बने कच्चे अस्थाई डेरों में निवास करने के बाद अगस्त, सितंबर महीने में फिर से वापस नीचले क्षेत्रों को लौट जाते हैं। अपने करीब चार माह के प्रवास के दौरान ये लोग नजदीकी बाजारों में दूध, खोया व पनीर की आपूर्ति कर अपनी आजीविका चलाते हैं।
ये लोग अपने पशुओं सहित जंगलों में आने और वापस जाने का सफर पैदल ही तय करते हैं। इनका यह सफर अधिकांश रूप से रात को ही पूरा होता है तथा इनके पहाड़ों में आने और फिर वापस लौटने के समय सड़कों पर पूरी रात पशुओं के गले में बंधी घंटियों की आवाज गुंजायमान रहती है।
अब जगह जगह सड़कें बन जाने की वजह से पशुओं को गाड़ियों में डाल कर अपना ज्यादातर सफर पूरा करते हैं ।