नई दिल्ली। मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव (एमएचआई) ने मानसिक स्वास्थ्य और इसके अन्य मौजूदा सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरणीय मुद्दों के साथ आंतरिक संबंध पर बातचीत को मुख्य धारा में शामिल करने के उद्देश्य के साथ एक उच्च स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए अधिकार-आधारित, मनोसामाजिक दृष्टिकोण की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए, कार्यशाला में मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक संकीर्ण, जैव चिकित्सा पद्धति से अलग पद्धति अपनाने की आवश्यकता को रेखांकित किया, जो कि अधिक समावेशी और समग्र है।
वक्ताओं ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के लिए समुदाय-आधारित समाधानों के महत्व और कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक पारस्परिक दृष्टिकोण की जरूरत पर भी विस्तार से बताया।
इस कार्यक्रम में कई स्वास्थ्य पेशेवरों, कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने भागीदारी की। मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव की ओर से राज मारीवाला, डायरेक्टर, प्रीति श्रीधर, सीईओ और अनाम मित्तल, लीड ऑफ न्यू इनिशिएटिव ने शिरकत की।
इस कार्यक्रम में अन्य वक्ताओं के रूप में डॉ. अचल भगत, मनोचिकित्सक, अपोलो हॉस्पिटल, प्रिसिला गिरी, रिसर्चर, डीएलआर प्रेरणा, जो दार्जिलिंग का एक गैर सरकारी संगठन है, जो विभिन्न सामुदायिक पहलों पर काम करता है।
मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण को फिर से परिभाषित करने की जरूरत पर बोलते हुए, राज मारीवाला, डायरेक्टर, मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य एक लगातार विकसित होता मुद्दा है और इसे मौजूदा सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय परदृश्य से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए।
वर्तमान में, मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा को बड़े पैमाने पर जैव-चिकित्सीय दृष्टिकोण से देखा जाता है, जबकि जरूरत मनोसामाजिक वास्तविकताओं पर ध्यान केंद्रित करने की है। मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों को समुदाय के नेतृत्व में और उन व्यक्तियों द्वारा प्रदान करने की आवश्यकता है जो उन व्यक्तियों की वास्तविकताओं से अवगत हैं, जिनकी वे सेवा कर रहे हैं।”
मानसिक स्वास्थ्य के बहु आयामों पर मीडिया को ध्यान देने की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए, प्रीति श्रीधर, सीईओ, मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य को एक व्यक्तिगत मुद्दे के रूप में देखने और ऐसा करना बंद करने की बहुत अधिक जरूरत है।
हम में से सभी अपने संबंधित सामाजिक स्थानों से समाज का अनुभव करते हैं। मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को हल करना सेवाओं तक पहुंच का एक साधारण समीकरण नहीं है, बल्कि समाज में भेदभाव और असमानताओं पर सवाल उठाना है।
मीडिया के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इन मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते समय न केवल समझदारी दिखाए, बल्कि हेल्थ सिस्टम, किफायती घरों की कमी, श्रम कानूनों और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को भी उजागर करे।”
मानसिक स्वास्थ्य पर बातचीत को आकार देने में मीडिया की भूमिका पर बोलते हुए, डॉ अचल भगत, मनोचिकित्सक, अपोलो हॉस्पिटल ने कहा, “जब मानसिक स्वास्थ्य पर बात करते समय, जो नहीं कहा जाता है वह भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कहा जाता है।
मानसिक स्वास्थ्य के बारे में मिथकों भरी बातचीत से बचना चाहिए। ये हैं: मानसिक स्वास्थ्य को अक्षमता से जोड़ना, हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बीच संबंध। इसके इतर ध्यान दिया जाना चाहिए: मानसिक स्वास्थ्य समस्या आम बात है, और मदद लेना ठीक है, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए संसाधनों की कमी, प्रशिक्षित पेशेवरों की अपर्याप्त संख्या। उपचार से अपनी अपेक्षाओं को सीमित रखें। यहां कोई जादुई इलाज नहीं है, लेकिन मदद जरूर करती है।”
मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच भारत में कई समूहों को प्रभावित करने वाला एक मुद्दा है, इसलिए यहां एक समुदाय-आधारित मॉडल बनाना जरूरी है। प्रिसिला गिरी, रिसर्चर, डीएलआर प्रेरणा ने कहा, “हालांकि मीडिया लगातार उपचार की कमी के बारे में बताता है, लेकिन कमी देखभाल करने की है जिसे उजागर करने की जरूरत है।
एमएचआई का काम इस बात का प्रमाण है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए महंगे, विशेषज्ञ के नेतृत्व वाले मॉडल की जरूरत नहीं है। हमें ऐसे और अधिक समुदाय-आधारित मॉडल बनाने की जरूरत है, जहां समुदाय अपने मुद्दों में विशेषज्ञ होने के नाते मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं खुद देने के लिए सशक्त हो।”