शिमला। भाजपा प्रदेश मुख्यालय दीपकमल चक्कर में पुण्यश्लोक रानी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के उपलक्ष्य पर आयोजित जिला कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल विशेष रूप से उपस्थित रहे उनके साथ राष्ट्रीय महिला मोर्चा मीडिया प्रभारी नीतू उपस्थित रही।
जिला कार्यशाला को संबोधित करते हुए डॉ बिंदल ने कहा कि अठारहवीं शताब्दी के मालवा की सामाजिक इतिहास में अहिल्याबाई होल्कर के शासनकाल के दौरान अभूतपूर्व सुधारों की एक शृंखला देखने को मिलती है, जिन्होंने पारंपरिक पितृसत्तात्मक व्यवस्थाओं को खुली चुनौती दी।
उनका शासन इस दृष्टि से अनुकरणीय था कि उन्होंने महिलाओं की सामाजिक स्थिति को सशक्त करने के लिए सुनियोजित और व्यापक प्रयास किए।
उदाहरणस्वरूप, शर्मा (2010) ने उल्लेख किया है कि उन्होंने विधवा संरक्षण के क्षेत्र में अग्रणी कार्य किए, जिनमें विधवाओं की संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करना, जबरन सती प्रथा को समाप्त करना और सहायता प्रणाली की स्थापना शामिल थी।
इन सामाजिक सुधारों के साथ-साथ उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए भी पहल की, जिससे उन्हें ज्ञानार्जन और शैक्षणिक प्रगति के अवसर प्राप्त हुए। देव (1998) के अनुसार, ये सुधार इस कारण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन्होंने गहरे जड़ें जमाए पितृसत्तात्मक व्यवस्था को गंभीर रूप से चुनौती दी।
इन पहलों ने न केवल तत्कालीन कमजोर और वंचित महिलाओं को राहत दी, बल्कि दीर्घकालिक रूप से महिला सशक्तीकरण और सामाजिक विकास के लिए एक संस्थागत ढांचा भी तैयार किया।
अहिल्याबाई होल्कर की शासन प्रणाली समावेशी राजनीति और सामाजिक कल्याण की एक आरंभिक मिसाल : नीतू
नीतू ने कहा मालवा क्षेत्र विभिन्न जनजातीय समुदायों का निवास स्थान था, जिनमें भील, गोंड और अन्य आदिवासी समूह शामिल थे, जो कृषि समाज में हाशिए पर जीवनयापन करते थे।
इन समुदायों को सामंती व्यवस्था के विस्तार और कृषि के व्यापारीकरण के कारण हाशिए पर धकेला गया। इन्हें शोषण का शिकार होना पड़ा और कई बार अपने पारंपरिक भू-क्षेत्रों से विस्थापन का भी सामना करना पड़ा।
ऐसे सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अहिल्याबाई होल्कर की शासन प्रणाली समावेशी राजनीति और सामाजिक कल्याण की एक आरंभिक मिसाल के रूप में उभरती है।
उनका दृष्टिकोण इस बात को दर्शाता है कि शासन केवल प्रभुत्व नहीं, बल्कि समावेशन, संरक्षण और सेवा का माध्यम होना चाहिए।
जनजातीय समुदायों के प्रति अहिल्याबाई होल्कर की नीतियाँ इस प्रकार है जैसे भूमि और वनों पर जनजातीय अधिकारों की मान्यता : अहिल्याबाई होल्कर ने जनजातीय समुदायों के भूमि और वनों से गहरे संबंध को समझा।
उन्होंने भील और गोंड समुदायों के लिए कुछ क्षेत्रों में भूमि स्वामित्व को औपचारिक रूप प्रदान किया, जिससे शोषणकारी जमींदारों और बाहरी अतिक्रमणकारियों से उनकी रक्षा सुनिश्चित हो सकी।
परंपरागत अधिकारों को वैधता देकर उन्होंने जनजातीय समुदायों के विस्थापन को रोका और उन्हें मालवा की कृषि अर्थव्यवस्था में वैध भागीदार के रूप में जोड़ा।