शिमला। लापरवाही और नगर निगम शिमला एक-दूसरे के पर्याय बनते नजर आ रहे हैं। नगर निगम के हर काम में लापरवाही नजर आती है। भले ही आम लोग आजादी के महानायकों को लेकर बेहद भावनात्मक हों, लेकिन नगर निगम शिमला पूरी तरह लापरवाह है।
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में भगत सिंह रोड है, लेकिन यह सड़क नगर निगम के रिकॉर्ड में इस नाम से दर्ज ही नहीं है। कार्ट रोड से अनाज मंडी की तरफ जाने वाली सड़क का नाम भगत सिंह रोड है और अब यह रोड गुमनाम होता चला जा रहा है।
भगत सिंह रोड रोड पर दुकान चलाने वाले सतीश कुमार का कहना है कि वह साल 1950 से यहां दुकान चलाते हैं। बचपन से लेकर अब तक वे इस जगह का नाम भगत सिंह रोड ही सुनते आए हैं। हैरानी की बात है कि नगर निगम शिमला के पास इसका कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं है।
उन्होंने कहा कि साल 1996 में भी उन्होंने नगर निगम शिमला से यहां भगत सिंह के नाम पर पार्क और उनकी प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन अब तक यह पूरा नहीं हो सका।
उन्होंने यह भी बताया कि अगर भगत सिंह रोड शिमला लिखकर डाक डाली जाए, तो वह गंज रोड पर ही पहुंचेगी। दुकानों की बिल बुक और अन्य सरकारी कागजों पर भी भगत सिंह रोड का नाम दर्ज है।
वहीं, इस बारे में जब नगर निगम के आयुक्त आशीष कोहली से पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि भगत सिंह रोड के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है न ही नगर निगम शिमला के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड दर्ज है।
बात सिर्फ शिमला के भगत सिंह रोड की ही नहीं है, जो नगर निगम प्रशासन की लापरवाही के चलते गुमनामी के आंसू रो रहा है। इसी तरह राजधानी शिमला के रिज मैदान पर लगी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा के बारे में भी नगर निगम को कोई जानकारी नहीं है।
नगर निगम शिमला यह तक नहीं जानता कि यह प्रतिमा कब स्थापित हुई और इस पर कितना खर्च आया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा के ठीक पीछे उनके शिमला दौरों के बारे में दी गई जानकारी भी अधूरी है। इस पट्टिका से महात्मा गांधी की साल 1939 की दो यात्राओं की जानकारी गायब है।