आज का हिन्दू पंचांग
दिनांक – 11 नवंबर 2021
दिन – गुरुवार
विक्रम संवत – 2078
शक संवत -1943
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – हेमंत
मास – कार्तिक
पक्ष – शुक्ल
तिथि – सप्तमी सुबह 06:49 तक तत्पश्चात अष्टमी
नक्षत्र – श्रवण दोपहर 02:59 तक तत्पश्चात अनिष्ठा
योग – बृद्धि 12 नवंबर रात्रि 28:45 तक तत्पश्चात ध्रुव
राहुकाल – दोपहर 1:47 से दोपहर 3:10
सूर्योदय – 6:48
सूर्यास्त – 17:56
दिशाशूल – दक्षिण दिशा में
व्रत पर्व विवरण – गोपाष्टमी
विशेष –
सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है तथा शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
अक्षय फल देनेवाली अक्षय नवमी
कार्तिक शुक्ल नवमी (12 नवम्बर 2021) शुक्रवार को ‘अक्षय नवमी’ तथा ‘आँवला नवमी’ कहते हैं।
अक्षय नवमी को जप, दान, तर्पण, स्नानादि का अक्षय फल होता है। इस दिन आँवले के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है।
पूजन में कर्पूर या घी के दीपक से आँवले के वृक्ष की आरती करनी चाहिए तथा निम्न मंत्र बोलते हुये इस वृक्ष की प्रदक्षिणा करने का भी विधान है :
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।
इसके बाद आँवले के वृक्ष के नीचे पवित्र ब्राम्हणों व सच्चे साधक-भक्तों को भोजन कराके फिर स्वयं भी करना चाहिए।
घर में आंवलें का वृक्ष न हो तो गमले में आँवले का पौधा लगा के अथवा किसी पवित्र, धार्मिक स्थान, आश्रम आदि में भी वृक्ष के नीचे पूजन कर सकते हैं।
कई आश्रमों में आँवले के वृक्ष लगे हुये हैं। इस पुण्यस्थलों में जाकर भी आप भजन-पूजन का मंगलकारी लाभ ले सकते हैं।
आँवला (अक्षय) नवमी है फलदायी
भारतीय सनातन पद्धति में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा आँवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है।
जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आँवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।
आँवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है।
आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इसकी पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
व्रत की पूजा का विधान
नवमी के दिन महिलाएं सुबह से ही स्नान ध्यान कर आँवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुंह करके बैठती हैं।
इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है।
तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा की जाती है।
महिलाएं आँवले के वृक्ष की १०८ परिक्रमाएं करके ही भोजन करती हैं।
आँवला नवमी की कथा
वहीं पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए आँवला पूजा के महत्व के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार एक युग में किसी वैश्य की पत्नी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी।
अपनी पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी। इसका फल उसे उल्टा मिला। महिला कुष्ट की रोगी हो गई।
इसका वह पश्चाताप करने लगे और रोग मुक्त होने के लिए गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आँवला के वृक्ष की पूजा कर आँवले के सेवन करने की सलाह दी थी।
जिस पर महिला ने गंगा के बताए अनुसार इस तिथि को आँवला की पूजा कर आँवला ग्रहण किया था, और वह रोगमुक्त हो गई थी।
इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे दिव्य शरीर व पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।