शिमला। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने भारत सरकार से हिमाचल प्रदेश को वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और एफआरए 2006 के तहत जल जीवन मिशन के अंतर्गत गतिविधियों के लिए जल जीवन मिशन में एक बार छूट देने का अनुरोध किया है।
राज्यपाल ने इस संबंध में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को एक पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वह इस मामले पर व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप कर मंत्रालय को आवश्यक निर्देश जारी करें। उन्होंने कहा कि इस कार्य के लिए पेड़ नहीं काटे जाएंगे और न ही क्षेत्र की पारिस्थितिकी को कोई नुकसान होगा।
दत्तात्रेय ने मंत्री के ध्यान में लाया है कि प्रदेश जल जीवन मिशन को लागू करने में एक विशेष समस्या का सामना कर रहा है, क्योंकि राज्य में अधिकांश पहाड़ियां वन क्षेत्र में हैं और वन क्षेत्र में गैर-वानिकी गतिविधियों की अनुमति नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि ग्रेविटी आधारित जल आपूर्ति योजनाओं जैसे जल भंडारण और संरक्षण संरचना, मुख्य पाइप लाइनों को बिछाने का कार्य और वितरण नेटवर्क के निर्माण से संबंधित सभी गतिविधियों को गैर-वानिकी गतिविधियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिससे राज्य को ग्रेविटी आधारित योजनाओं के निर्माण में समस्या आ रही है और जल जीवन मिशन के तहत लगभग सभी योजनाएं उठाऊ जलापूर्ति योजनाएं हैं।
राज्यपाल ने कहा कि अच्छी ग्रेविटी आधारित योजनाओं के निर्माण के लिए जल जीवन मिशन के तहत सभी गतिविधियों को वन संरक्षण अधिनियम से छूट की आवश्यकता है और यह वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत एकमुश्त छूट प्रदान कर भी किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि इससे हिमाचल प्रदेश प्रतिवर्ष लगभग 700 से 750 करोड़ रुपये की बचत करेगा, जो इन योजनाओं के निर्माण और रख-रखाव पर खर्च किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में वनरोपण कार्यक्रम बहुत ही सफल रहा है और 2017 से 2019 के बीच प्रदेश के वन क्षेत्र में 33.52 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि राज्य में वन क्षेत्र कुल भौगोलिक क्षेत्र का 62.32 प्रतिशत है।
कुल भौगोलिक क्षेत्र और इतना ही नहीं, राज्य ने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के अनुरूप सभी गैर-निजी भूमि को वन भूमि घोषित किया है।