छोटे दुकानदार व व्यापारी बीजेपी की सत्ता में सबसे ज्यादा हताश व निराश: राणा

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हमीरपुर। राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कहा है कि छोटे दुकानदार व व्यापारी बीजेपी की सत्ता में सबसे ज्यादा हताश व निराश हैं। उन्होंने कहा कि दुकानदारों की अर्थव्यवस्था की नोटबंदी, जीएसटी व लॉकडाउन ने रीड तोड़ कर रख दी है।

लॉकडाउन हटने के बाद देश और प्रदेश के छोटे-बड़े नगर व बाजारों, कस्बे व गांव के हाटो को खुले हुए दो महीने हो चुके हैं, लेकिन महामारी, महंगाई व बेरोजगारी से जूझ रही जनता ग्राहक के तौर पर बाजार से नदारद है। छिटपुट घरेलु जरुरतों राशन, दवा आदि को छोड़कर शेष सभी दुकानों में सन्नाटा पसरा है।

सुबह से शाम तक दुकानदार ग्राहक के इंतजार में हताश व निराश होने लगे हैं। जिस कारण से छोटे व्यापारी वर्ग में भविष्य को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है।

निराशा के इस दौर में दुकानदारों को बिजली बिल, दुकान का किराया व कर्मचारियों की पगार व अन्य खर्चे पहले की तरह ही हैं। यानि खर्चे पहले जैसे और आमदनी गायब। जिस कारण से छोटे व्यापारियों व छोटे कारखाने के मालिकों में भारी निराशा का माहौल है।

देश के कई शहरों से हजारों छोटे दुकानदार कर्जे के तनाव में दुकानों पर ताला लगाकर रोजगार व आमदन की गर्ज में इधर-उधर भटक रहे हैं। क्योंकि इन दुकानदारों के पास कर्मचारियों को पगार देने व किराया देने का इंतजाम तक नहीं है।

राणा ने कहा कि होटल पर्यटन, वायु सेवा व परिवहन आदि क्षेत्रों में घोर मंदी का दौर है। हर वर्ष श्राद्धों के बाद शादियों व त्योहारों का सीजन शुरू हो जाता था, जिस कारण से बाजार में मांग व तेजी में उछाल आता था। लेकिन वर्तमान में पूरी तरह से बाजार में अनिश्चितता छाई हुई है।

अर्थव्यवस्था के निकले जनाजे में सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में दलाली, कमीशन व रिश्वत कई गुना बढ़ी है। जो कि सत्ता हासिल करने से पहले भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली बीजेपी के राज में बदस्तूर चली है।

अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के आंकलन के मुताबिक कोविड-19 में महामारी के दौरान देश और राज्यों में भ्रष्टाचार घटा नहीं बढ़ा है। जिस पर सरकार ध्यान देने की बजाय पूंजीपतियों व भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने में लगी है। सरकार के आर्थिक पैकेज का देश की अर्थव्यवस्था पर कहीं कोई असर नहीं दिखाई दे रहा है।

छोटे कारोबारियों की सुनें तो सरकार बैंकों से कर्ज लेने की बात करती है, लेकिन कर्ज लेकर भी क्या करेंगे जब बाजार से ग्राहक ही नरादर है। लॉकडाउन के बाद करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई जिनको आज परिवार पालना भारी पड़ रहा है।

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