किसान और जवान को आमने-सामने खड़ा करने की सरकार गुनहगार: राणा

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हमीरपुर। किसानों के सब्र के बांध टूटने पर जो हुआ वह भी सही नहीं माना जा सकता है लेकिन किसानों के साथ लगातार दो महीने से लोकतंत्र में जो सुलूक हुआ वह भी कतई सही नहीं माना जा सकता है।

यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष व सुजानपुर विधायक राजेंद्र राणा ने कही। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का मौलिक अधिकार होता है लेकिन जहां हाकिम हो बेदर्द वहां फरियाद करना क्या? दुर्भाग्य यह है कि देश की हुकूमत ने सत्ता को व्यापार व बाजार बनाकर रख दिया है जिसके चलते बाजारी उसूलों पर नपे नुकसान के आधार पर लोकतंत्र पर हांका जा रहा है।

दिल्ली में जो कुछ हुआ उससे फिर सत्ता की साजिश की बू आ रही है। पहले दो महीनों से किसानों को दिल्ली आने से रोका गया। परेड़ से पहले साफ हो गया था कि एक धड़ा दिल्ली आने की जिद पर वजिद है।

ऐसे में सवाल उठता है कि पुलिस ने उस धड़े को लेकर क्या योजना बनाई थी। हालांकि यह सवाल गृह मंत्रालय की जवाबदेही का भी है लेकिन बजारू तर्ज पर चल रही हुकूमत ने इस सवाल को ही सिलेब्स से बाहर कर दिया है क्योंकि अब सरकार से सवाल पूछने को देश से सवाल पूछना बताया जाता है।

राणा ने कहा कि शिवराज पाटिल ऐसे आखिरी गृहमंत्र थे जिनसे सवाल किया जाता था। 26 जनवरी की हिंसक घटना की खबर बाद में आती है कि गृहमंत्री ने उच्च स्तरीय बैठक की है और दिल्ली में अतिरिक्त सुरक्षा बलों के तैनाती के आदेश दिए हैं।

उन्होंने कहा कि किसानों की परेड़ होने वाली थी। दिल्ली, हरियाण के पुलिस अधिकारी तमाम नेताओं के साथ संपर्क में थे, हालातों का जायजा ले रहे थे लेकिन सवाल यह है कि पहले ऐसी कोई खबर आई थी, इन सवालों के जवाब अटकलों से नहीं दिए जा सकते। अब किसानों के इस सवाल पर सरकार को सीधा पूछे जाना चाहिए।

सवाल यह उठता है कि क्या देश का ध्यान किसानों की समस्या से हटाने के लिए लाल किला से आईटीओ की तरफ किसानों के एक धड़े को जानबूझ कर आने दिया, इस सवाल का जवाब भी देश चाहता है। लाल किले के साथ जो हुआ जाने दिया वह शर्मनाक है।

इस ऐतिहासिक ईमारत को क्षति जरूर पहुंची होगी लेकिन अब मुद्दा तिरंगे को लेकर बनाया जा रहा है। इस हिंसक झड़प में दिल्ली पुलिस के 80 जवान घायल हुए हैं। लाल किले का वीडियो बता रहा है कि जवान जान बचाने के लिए नीचे गिर रहे हैं।

उसी पुलिस का जवान गाजीपुर बार्डर पर आंसू गैस के गोले दाग रहा है। सरकार कि घोर उदासीनता ने आज किसान और उनके बेेटे जवान को आमने-सामने खड़ा कर दिया है। इस सारे प्रकरण में सत्ता को बचाने में लगी हुकूमत के राज में क्षति जवानों और किसानों की हुई है।

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