शिमला, 24 मई, 2020। आज जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में एआईसीसी सचिव एवं पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा ने स्वास्थ्य विभाग के तथाकथित घोटाले के बारे में कहा कि इस तरह के किसी भी गंभीर अपराध के तहत अगर कोई व्यक्ति पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किया जाता है तो उसे धारा 167 सीआरपीसी के तहत पुलिस रिमांड में लिया जाता है जिसकी अधिकतम अवधि 15 दिन तक हो सकती है।
यह कानूनन इसलिए जरूरी है ताकि उससे पुलिस पूछताछ कर सके और कोई भी मटेरियल एविडेंस जो इस केस की तह तक पहुंचने के लिए जरूरी हो उससे अपराधी छेड़छाड़ ना कर सके, परंतु इस मामले में अपराधी को पहले पूछताछ के लिए बुलाया गया और गिरफ़्तार होने के उपरांत उसे अस्पताल में भर्ती किया गया।
पुलिस को अपराधी की पुलिस कस्टडी मांग कर पूछताछ करनी चाहिए थी, पर उसको न्यायिक हिरासत मैं भेज कर पुलिस ने एक बड़ी चूक की है।
कानूनन न्यायिक हिरासत में किसी व्यक्ति को तभी भेजा जाता है जब उससे पुलिस को ना तो कुछ बरामद करना हो और ना ही कोई पूछताछ करनी हो पर यहां पहले ही दिन न्यायिक हिरासत में भेज कर अपराधी निदेशक को पूरी छूट दी गई कि वह जो भी जरूरी दस्तावेज के साथ छेड़छाड़ कर सके और जो सबूत हो उन्हें मिटा सके।
उन्होंने कहा कि कहीं इसमें पुलिस जो सरकार के अधीन है और मुजरिम की मिलीभगत तो नहीं है या कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे बचाने के लिए, बजाए पुलिस कस्टडी मिलने के जान बूझ कर उस को न्यायिक हिरासत में लिया गया हो।
न्यायिक हिरासत में ना तो उससे कोई पूछताछ हो सकती है और जिस तरह आज मीडिया में आया है कि वह फोन पर ही सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर रहा हो।
साथ ही जो कथित ऑडियो टेप सामने आयी है जिसमें कि निदेशक एक व्यक्ति से लेन देन की बात कर रहे हैं और उस व्यक्ति को राजनीतिक रसूख़ वाला व्यक्ति बताया जाता है उसकी अभी तक गिरफ़्तारी नहीं हुई है।
सुधीर ने कहा कि होना तो यह चाहिए था कि दोनों की गिरफ़्तारी एक साथ होती और जाँच को शुरू कर दिया जाता।
उन्होंने मांग की कि जाँच सीबीआई को सौंप देनी चाहिए या फिर उच्च न्यायालय इन सारी घटनाओं का संज्ञान लेते हुए निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करे।