शिमला। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की राज्य कमेटी की बैठक शिमला में संपन्न हुई। इस बैठक की अध्यक्षता राकेश सिंघा द्वारा की गई।
इस बैठक में केन्द्रीय कमेटी के सदस्य ओंकार शाद ने पार्टी की केंद्रीय कमेटी द्वारा पारित 24 वीं पार्टी कांग्रेस के लिए राजनीतिक प्रस्ताव के मसौदे का विवरण रखा तथा राज्य सचिव संजय चौहान द्वारा राज्य की राजनीतिक परिस्थिति तथा संगठन की रिपोर्ट पेश की गई।
राज्य सचिव संजय चौहान ने बताया कि बैठक में देश में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, कृषि संकट, आर्थिक असमानता के लिए कॉरपोरेट सांप्रदायिक गठजोड़ के नेतृत्व में केंद्र में एनडीए की मोदी सरकार द्वारा लागू की जा रही नवउदारवादी नीतियों को जिम्मेवार ठहराया।
केंद्र सरकार की इन जनविरोधी नीतियों के कारण देश में अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब हो रहा है। जिससे देश में गरीबी और भुखमरी बढ़ी है।
केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2025-26 के बजट में भी बड़े कॉर्पोरेट घरानों को फायदा देने का कार्य किया है और जनहित में चलाई जा रही मनरेगा जैसी योजनाओं के लिए बजट में कोई भी वृद्धि नहीं की गई है।
इसके साथ ही देश में बीजेपी आरएसएस के गठजोड़ द्वारा हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को लागू करते हुए देश के संविधान, लोकतंत्र तथा संघीय ढांचे पर हमले बढ़ रहे हैं।
बैठक में तय किया गया कि पार्टी द्वारा मोदी सरकार की इन जनविरोधी नवउदारवादी नीतियों तथा आरएसएस बीजेपी की हिंदुत्व साम्प्रदायिकता की राजनीति के विरुद्ध जनता को लामबंद कर संघर्ष तेज किया जाएगा।
बैठक में राज्य की बिगड़ती आर्थिक स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई। पार्टी का मानना है कि प्रदेश में इस आर्थिक संकट का मुख्य कारण प्रदेश सरकार की कम आय तथा बढ़ता खर्च है जिससे प्रदेश सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार को नियमित कार्यों के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा है।
प्रदेश सरकार पर 1 लाख करोड़ रुपए का कर्ज हो गया है जोकि पूर्व की बीजेपी की सरकार के समय 75000 करोड़ रुपए था। केंद्र सरकार द्वारा राज्य को दी जा रही आर्थिक सहायता में निरन्तर कटौती की जा रही। 15वें वित्त आयोग द्वारा दी जा रही राजस्व घाटा ग्रांट में निरन्तर कमी की जा रही है।
गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष करीब 3000 करोड़ रुपए की कमी की गई है। वर्ष 2024-25 में ये ग्रांट 6258 करोड़ रुपए थी जो वर्ष 2025-26 के लिए घटकर 3257 करोड़ रुपए रह गई है। जबकि वर्ष 2021-22 में यह ग्रांट 10249 करोड़ रुपए थी।
इसके साथ ही केंद्र सरकार से GST के बदले मिलने वाली राहत भी मिलनी बंद हो गई है। राज्य सरकार की ऋण लेने की सीमा भी अब केवल 9000 करोड़ रुपए कर दी गई है जबकि पहले 14500 करोड़ रुपए का ऋण ले सकती थी।
इससे सरकार का वित्तीय संकट और गहरा हो गया है और सरकार को वेतन व पेंशन देने के लिए भी पर्याप्त धनराशि नहीं रही है। आज प्रदेश में कई विभागों व निगमों तथा बोर्डो में कर्मचारियों को नियमित रूप से मासिक वेतन तथा पेंशन नहीं दी जा रही है। वित्तीय संकट के कारण प्रदेश में विकास पर ग्रहण लग गया है।
प्रदेश में आर्थिक संकट के चलते राज्य सरकार केंद्र की मोदी सरकार के दबाव में इसके द्वारा निर्देशित नवउदारवादी नीतियों को लागू कर रही है। इसके चलते सरकार द्वारा बिजली, पानी, परिवहन, शिक्षा ,स्वास्थ्य के सेवा क्षेत्र में दी जाने वाली सहायता में कटौती कर रही है तथा इन मूलभूत सेवाओं का निजीकरण किया जा रहा है।
सरकार द्वारा बिजली, पानी की दरों तथा बस किराए में वृद्धि की जा रही है। जिससे ये सेवाएं महंगी हो रही है और सरकार की इन नितियों से आम जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।
पार्टी सरकार के द्वारा लागू की जा रही इन जनविरोधी नवउदारवादी नीतियों का विरोध करती है तथा सरकार से मांग करती है कि सरकार आम जनता पर आर्थिक बोझ डालने वाली नीतियों पर रोक लगाए।
बिजली क्षेत्र के निजीकरण का विरोध
केंद्र सरकार की इन नवउदारवादी नीतियों के चलते प्रदेश सरकार ने भी बिजली क्षेत्र को निजी कंपनियों को सौंपने का कार्य शुरू कर दिया है तथा प्रदेश में बिजली के स्मार्ट मीटर लगाने के लिए निजी कंपनियों को कार्य दे दिया है।
इसके साथ ही बिजली बोर्ड को भी निजी हाथों में सौंपने का कार्य किया जा रहा है तथा युक्तिकरण के नाम पर कर्मियों की संख्या में कटौती की जा रही है।
पार्टी बिजली क्षेत्र के निजीकरण और स्मार्ट मीटर योजना व बिजली बोर्ड में कर्मचारियों की संख्या में कटौती का विरोध करती है।
पार्टी सरकार से मांग करती है कि बिजली बोर्ड का निजीकरण न करें तथा इसके द्वारा चलाई जा रही योजनाओं को जारी रखने के लिए सरकार उचित आर्थिक सहायता प्रदान कर जनता को राहत प्रदान करे।
इसके साथ ही बिजली बोर्ड के कर्मचारियों व पेंशनरों द्वारा बिजली बोर्ड के निजीकरण के विरोध तथा नियमित भर्ती व पुरानी पेंशन योजना(OPS) की बहली के लिए चलाए जा रहे आंदोलन का भी समर्थन करती हैं।
नई शिक्षा नीति का विरोध
पार्टी सरकार द्वारा प्रदेश में नई शिक्षा नीति(NEP) को लागू करने का विरोध करती है। इससे शिक्षा का व्यवसायीकरण, निजीकरण व सांप्रदायीकरण बढ़ेगा तथा गरीब परिवारों के बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाएंगे।
सरकार नई शिक्षा नीति के तहत युक्तिकरण के नाम पर स्कूल तथा कॉलेज के बंद करने के निर्णय पर पुनर्विचार कर इन स्कूलों व कॉलेजों में सभी विषयों को पढ़ाया जाए तथा इनमें उपयुक्त संख्या मे शिक्षकों की भर्ती की जाए। जिससे इन स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ेगी और लोगों को बेहतर व सस्ती शिक्षा उनके घर द्वार पर मिलगी। इससे प्रदेश में समग्र शिक्षा का स्तर बेहतर होगा।
सरकारी कर्मचारी भर्ती एवं सेवा की शर्त विधेयक, 2024 का विरोध
पार्टी सरकारी कर्मचारी भर्ती एवं सेवा की शर्त विधेयक, 2024 का विरोध करती है। इससे अनुबंध पर काम कर रहे कर्मचारियों का शोषण बढ़ेगा और वह अपने अधिकार से वंचित रह जाएंगे। सरकार तुरन्त इस विधेयक पर पुनर्विचार कर इसको निरस्त करे तथा सभी विभागों में नियमित भर्तियां की जाए।
ज़मीन के मुद्दे पर चलाए जा रहे आंदोलन का समर्थन
पार्टी का मानना है कि जमीन प्रदेश के लघु व सीमांत किसानों तथा अन्य गरीब व दलित परिवारों की qरोज़ी रोटी से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। प्रदेश में 10 लाख 57 हज़ार किसान परिवार है। इनके पास 17.14 प्रतिशत भूमि है इसमें से केवल 11.9 प्रतिशत ही कृषि योग्य भूमि है।
प्रदेश में 68 प्रतिशत वन भूमि है जिस पर वन संरक्षण अधिनियम,1980 के अनुसार केंद्र सरकार का कब्जा है। 87.41 प्रतिशत किसान गरीब व सीमांत है।
आज गरीब किसान, गरीब व दलित परिवार ज़मीन के बंटवारे या सरकार द्वारा सड़क, पनविद्युत तथा अन्य परियोजनाओं के लिए की जा रही निजी भूमि के अधिग्रहण के चलते ज़मीन से वंचित हो रहे हैं तथा इनको अपनी आजीविका अर्जित करना कठिन हो रहा है।
जिसके चलते इन्होंने आस पास की साथ लगती सरकारी या वन भूमि पर खेती के लिए तथा रहने के लिए मकान या ढारा आदि बनाकर कब्जा किया है और अपनी रोजी रोटी अर्जित कर रहे हैं।
पिछले कई दशकों से न्यायालय के आदेश की आड़ में सरकार इन गरीब किसानों तथा अन्य गरीब व दलित परिवारों से ज़मीन तथा घरों व ढारों से बेदखली कर रही है।
आज प्रदेश में लाखों परिवार इस बेदखली की कार्यवाही से प्रभावित है तथा अपने रोज़ी रोटी व छत के अधिकार से वंचित होने की कगार पर है।
प्रदेश में किसी भी सरकार ने इन गरीब किसान तथा गरीब व दलित परिवारों को ज़मीन व घरों से बेदखली पर रोक लगाने तथा इनको ज़मीन तथा पुनर्वास को लेकर कोई भी ठोस नीति निर्धारण नहीं किया है।
प्रदेश में किसी भी सरकार ने इन जरूरतमंद लोगों को बसाने के लिए वन अधिकार अधिनियम, 2006 के प्रावधानों के अनुसार कोई संजीदा प्रयास नहीं किए हैं।
हिमाचल किसान सभा तथा सेब उत्पादक संघ लंबे समय से किसानों तथा अन्य गरीब व दलित परिवारों को ज़मीन देने तथा अधिग्रहण की गई ज़मीन के लिए उचित मुआवजा देने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
ये संगठन सरकार से मांग कर रहे हैं कि सरकार गरीब किसान तथा गरीब व दलित परिवारों की जमीन व घरों व ढारों से बेदखली पर तुरंत रोक लगाए। किसानों के कब्जे वाली 5 बीघा तक ज़मीन पर कब्जों तथा शहरी क्षेत्र में 2 बिस्वा तथा ग्रामीण क्षेत्रों में 3 बिस्वा ज़मीन देने का प्रावधान करे।
केंद्र सरकार वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में संशोधन कर राज्य सरकार को वन भूमि आबंटन करने का अधिकार प्रदान करे।
इसके अलावा सरकार प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम, 2006 लागू किया जाए। साथ ही भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 प्रभावी रूप से लागू कर प्रभावित परिवारों को उचित मुआवजा प्रदान करे।
हिमाचल किसान सभा तथा सेब उत्पादक संघ ने ज़मीन के मुद्दे पर 20 मार्च, 2025 को विधानसभा मार्च का निर्णय लिया है। सीपीएम ज़मीन के मुद्दे पर इन संगठनों द्वारा अपनी मांगों को लेकर किए जा रहे आंदोलन तथा विधानसभा मार्च का समर्थन करती है।
केंद्र सरकार की यूनिफाइड पेंशन योजना(UPS) का विरोध
पार्टी केंद्र सरकार द्वारा लाई गई यूनिफाइड पेंशन योजना (UPS) का विरोध करती है तथा सरकार से मांग करती है कि प्रदेश के सभी कर्मचारियों जिसमें विभिन्न बोर्ड व निगम के कर्मचारियों भी शामिल है को पुरानी पेंशन योजना (OPS) के तहत पेंशन दी जाए।
पार्टी प्रदेश के कर्मचारियों के द्वारा यूनिफाइड पेंशन योजना (UPS) के विरोध तथा सभी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना(OPS) लागू करने के लिए चलाए जा रहे आंदोलन का समर्थन करती है।
अधिवक्ताओं द्वारा अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 के विरोध में चलाए जा रहे आंदोलन का समर्थन
पार्टी देश व प्रदेश में अधिवक्ताओं द्वारा अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 के विरोध में चलाए जा रहे आंदोलन का समर्थन करती हैं तथा केंद्र सरकार से मांग करती है कि इसको तुरन्त वापिस लिया जाए।