नेरवा, नोबिता सूद। पालतू मवेशियों में फ़ैल रहे गंभीर किस्म के लम्पी वायरस ने उपमंडल चौपाल की किरण पंचायत में दस्तक दे दी है । बीते रविवार को पंचायत में इस रोग के 35 पालतू मवेशियों में लक्षण पाए गए हैं।
पंचायत के कई गाँव में अचानक इस रोग की दस्तक से जहां पशुपालकों में दहशत है, वहीँ पशुपालन विभाग चौपाल स्थिति नियंत्रण का दावा कर रहा है । मुख्य फार्मासिस्ट, उप मंडलीय पशुपालन विभाग चौपाल, इन्दर सिंह डोगरा ने बताया कि उन्हें रविवार को एसडीएम चौपाल चेत सिंह एवं क्षेत्र के एक व्यक्ति ने उन्हें किरण पंचायत में पशुओं में लम्पी स्किन डीज़ीज़ (एलएसडी) के लक्षण पाए जाने की सूचना दी थी, जिसके बाद कार्रवाई करते हुए उन्हों ने पशुपालन विभाग के पांच सदस्यों की एक टीम का गठन कर सोमवार को ही किरण पंचायत को रवाना कर दिया है।
यह दल तीन दिन से संक्रमित पशुओं के उपचार में जुटा हुआ है तथा इस दौरान 35 पशुओं को आवश्यक उपचार दिया जा चुका है । उन्होंने स्थिति नियंत्रण में होने का दावा करते हुए कहा कि आने वाले एक दो दिन में सभी पशुओं की वेक्सिनेशन कर दी जाएगी।
विभागीय टीम को पांच दिन तक स्थिति पर कड़ी नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं तथा प्रतिनियुक्ति पर तैनात फार्मासिस्ट को भी आगामी पांच दिनों तक संक्रमित एवं अन्य पशुओं के उपचार और वेक्सिनेशन के आदेश दिए गए हैं।
उन्होंने बताया कि वेक्सिनेशन की एक सौ डोज़ पहले ही किरण भेज दी गई थी, जबकि दूसरे दिन शिमला से आई तीन हजार डोज़ में से भी पांच सौ डोज़ किरण भेज कर वेक्सिनेशन का कार्य शीघ्र पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं ।
इन्दर सिंह ने बताया कि उप निदेशक पशु स्वास्थ्य एवं प्रजनन जिला शिमला एस एस सेन ने पशुपालन उपमंडल चौपाल को पर्याप्त मात्रा में दवाएं एवं वेक्सिनेशन उपलब्ध करवा कर आगे भी आवश्यकता अनुसार इन्हें उपलब्ध करवाने का आश्वासन दिया है ।
उधर,पशुपालन विभाग का दावा है कि पंचायत में वेक्सिनेशन और संक्रमित पशुओं के उपचार का कार्य युद्धस्तर पर जारी है तथा पूरी स्थिति नियंत्रण में है ।
कार्यवाहक उपमंडलीय पशुपालन अधिकारी चौपाल डॉ दिव्या राणा ने कहा कि मुंह व नाक से लार निकलना व छाले पड़ना, शरीर में फोड़े और गांठें पड़ना तथा पशुओं की टांगों में सूजन आना, सांस लेने में कठिनाई, तेज बुखार, दूध कम होना तथा भूख प्यास कम लगना इस वायरस के प्रमुख लक्षण हैं।
डॉ दिव्या ने पशुपालकों से अपील की है कि पशुओं में उपरोक्त लक्षण पाए जाने पर तुरंत पशु चिकित्सालय में इसकी सूचना दें तथा चिकित्स्कों की देखरेख में अपने पशु का इलाज करवाएं।
उन्होंने कहा कि कुछ जरूरी सावधानियां बरत कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है तथा एसएसडी ग्रसित पशु का दूध पीया जा सकता है।
इसका दूध पर कोई असर नहीं पड़ता है,क्योंकि 55 डिग्री सेल्सियस तापमान में यह वायरस मर जाता है, जबकि दूध को 100 डिग्री तापमान पर उबाला जाता है ।
उन्होंने दूध को अच्छी तरह उबाल कर इस्तेमाल करने की सलाह दी है । डॉ।दिव्या ने बताया कि यह एक चरम रोग है, जोकि खून चूसने वाले चिचड़,मक्खी व मच्छर से उत्पन्न केपरिपॉक्स वायरस से मवेशियों में फैलता है।
इसके गऊओं में पच्चास तथा भैंसों में एक से दो प्रतिशत फैलने की आशंका रहती है तथा इससे चार से पांच प्रतिशत मौत होने की संभावना होती है।
उन्होंने सलाह दी है कि पशु की मौत होने पर उसे अच्छी तरह मिटटी के अंदर गहराई में दबा दें ताकि अन्य पशुओं में इसके संक्रमण का खतरा न रहे ।