असम सरकार ने आहोम जनरल लाचित बरफुकन की 400 वीं जन्म दिवस पर लाचित दिवस समारोह का किया आयोजन

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नई दिल्ली। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा और मुख्य अतिथि भारत सरकार के कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राष्ट्रीय राजधानी में सुंदर नर्सरी में लाचित दिवस सांस्कृतिक समारोह की शुरुआत की।

यह पहली बार है जब महान आहोम सेना के जनरल लाचित बरफुकन और उनकी उपलब्धियों को राष्ट्रव्यापी श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी 400 वीं जयंती के अवसर पर गृह राज्य के बाहर मनाया जा रहा है।

24 नवंबर, 1622 को चराइदेव में जन्मे लाचित बरफुकन अपनी असाधारण सैन्य बुद्धिमत्ता से मुगलों को हराने के लिए जाने जाते हैं। सरायघाट की लड़ाई में उन्होंने औरंगजेब की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को रोक दिया था। आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के मौके पर उनकी उपलब्धियों को दर्शाने के लिए भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।

कार्यक्रम की शुरुआत ताई आहोम समुदाय की पारंपरिक प्रार्थना से हुई। उसके बाद मृदुस्मिता दास बोरा और उनकी टीम द्वारा सीता उद्धर पर सत्त्रिया प्रदर्शन किया गया। उस्ताद रंजीत गोगोई ने भी असम के लोक नृत्यों की प्रस्तुति और लाचित बरफुकन के शानदार जीवन को दर्शाने वाला एक नाटक आयोजित किया गया।

लोकप्रिय असमिया गायक पापोन ने असम के अनोखे लोक संगीत के अपने मनमोहक प्रदर्शन से उपस्थित लोगों का मन मोह लिया। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा ने कहा, “यह सांस्कृतिक संध्या देशभक्ति पर आधारित होगी। उसमें हम असम की संस्कृति और सभ्यता को परिलक्षित करने का प्रयास करेंगे।

इस पूरे वर्ष असम में लाचित बरफुकन की 400वीं जयंती मनाई जाएगी। इसका उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस साल की फरवरी में किया था। इस अवसर पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। उसमें गुवाहाटी संग्रहालय से कई ऐतिहासिक वस्तुओं को लाया गया है, जो कुमार भास्कर वर्मा के दिनों से असम के गौरवशाली इतिहास को दर्शाती है।

हमारे पास लाचित बरफुकन के कई हस्तलिखित पत्र भी हैं। लछित बरफुकन एक राष्ट्रव्यापी व्यक्ति थे। उनकी बहादुरी की कहानी असम तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए।

केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने रेखांकित किया कि भारत की भावना अधूरी है। हमें प्रगति एवं विकास की इस यात्रा के साथ अपने गुमनाम नायकों को भी साथ ले जाने की जरूरत है। उनके लोकाचार और सिद्धांतों को याद किया जाना चाहिए और उनका सम्मान किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, ” वर्ष 1671 में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर सरायघाट युद्ध में गुवाहाटी की रक्षा के लिए मुगल साम्राज्य की एक बड़ी सेना को हराने के बाद लाचित बरफुकन को असम की सांस्कृतिक आदर्श माना जाता है।

वे एक शक्तिशाली एवं साहसी नेता थे जिन्होंने मुगलों को हराकर अपनी मातृभूमि की संप्रभुता, गौरव और प्रतिष्ठा को बरकरार रखा था। उनका देश के लिए अटूट प्रेम पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।

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