लोकतान्त्रिक प्रकिया से चुने प्रतिनिधियों को काले नाग की संज्ञा देना अनुचित : विपिन परमार

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शिमला। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार ने शिमला में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू का अपने ही विधायको को काला नाग बोलने वाला बयान दुर्भाग्यपूर्ण है।

कांग्रेस विधायकों का रोष कांग्रेस सरकार के खिलाफ जाहिर हुआ। कांग्रेस विधायकों की सदस्यता एक फरमान से रद्द कर दी गई। कांग्रेस की अन्तर्कलह, विधायकों की नाराजगी, मन्त्री द्वारा पीड़ा व दर्द बताना, मंडी के बल्ह के पूर्व विधायक, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व वर्तमान अध्यक्ष द्वारा सरकार का विरोध यही दर्शाता है कांग्रेस कि कांग्रेस में आपसी लड़ाई चरम पर है। इसी कारण से यह राजनीतिक स्थिति आज प्रदेश में बनी है।

विपिन परमार ने कहा कि वर्तमान सरकार सत्ता में रहने का अधिकार एवं हक पहले ही खो चुकी है और इस प्रकार की बयानबाज़ी साफ दिखाती है कि मुख्यमंत्री और सरकार दोनों परेशान हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री को डॉक्टर या साइकैट्रिस्ट से चेक अप करवा लेना चाहिए।

प्रदेश में चल रहे राजनीतिक संकट के समय सुक्खू सरकार के एक महत्वपूर्ण मंत्री द्वारा त्यागपत्र की घोषणा, मुख्यमंत्री की कार्य प्रणाली की आलोचना तथा अपने परिवार की कांग्रेस में हो रही उपेक्षा के आरोप ये सिद्ध करते हैं कि प्रदेश की सुखु सरकार अपने राजनीतिक अंतर्द्वंद के कारण संकट में है जिसकी जिम्मेवारी पूरी तरह से सरकार व कांग्रेस पार्टी की है।

सरकार के मंत्री व विधायकों द्वारा अपनी उपेक्षा और अनदेखी के आरोपों से सरकार व कांग्रेस संगठन की असलियत जनता के सामने आ गई है । उन्होंने सुखु सरकार पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार की खींचतान व विधायकों की उपेक्षा से आज प्रदेश में राजनीतिक संकट पैदा हुआ है और सुखु सरकार अपना विश्वास खो चुकी है और अल्पमत में आ गई है ।

उन्होंने कहा कि योजनापूर्वक मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस सरकार जगह-जगह झगड़े करवा रही है। जबकि हिमाचल प्रदेश में शांति और कानून व्यवस्था बहाल रहनी चाहिए। यह योजनापूर्वक धरना प्रदर्शन एवं लड़ाईयां पूरी हिमाचल प्रदेश में करवा रहें है।

6 विधायकों को कांग्रेस पार्टी ने अपने विधायक पद से हटा दिया है। ज्यादातर यह धरना प्रदर्शन वही हो रही है। उन्होंने कहा, यह सरकार इस प्रकार काम कर रही है वो असंवैधानिक है लोकतंत्र के खिलाफ़ है।

जिस प्रकार से पहले 15 भाजपा के विधायको को बजट सैशन के दौरान सस्पेंड कर दिया गया और अपनी मेजोरिटी को इन्होंने पेश किया वह भी अलोकतांत्रिक था और अब वर्तमान में जिस प्रकार से 6 विधायकों की विधानसभा की सदस्यता रद्द की, वो भी अलोकतांत्रिक है।

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