पांगी। जिला चंबा के जनजातीय क्षेत्र पांगी में 12 दिवसीय जुकारू उत्सव के तीसरे दिन पंगवाल समूदाय पुनेही उत्स्व मनाया गया। इसी क्रम में 12 दिनों तक अलग-अलग त्यौहार मनाये जाते है। पांगी घाटी के लोगों ने प्राचीन परंपराएं जिंदा रखी हुई हैं। पर्व में परंपराओं और रीति रिवाजों का पालन किया जाता है।
मान्यता के अनुसार लोग आटे के बकरे बनाकर सुबह खेत में चिन्हित स्थान पर एकजुट होते है जहां पर धरती माता की पूजा की जाती है। वहीं पूजा के दौरान हल भी चलाया जाता है।
इससे पूर्व खेतों में पत्थर की शिला की विधि विधान से पूजा-अर्चना कर गेहूं की बिजाई की जाती है। मान्यता है कि 20 दिन के बाद अंकुरित होने वाले गेहूं के आधार पर ही पता चलेगा कि यह वर्ष फसल के लहजे से धन्य-धान्य रहेगा या सूखे की स्थिति उत्पन्न होगी।
अगर निर्धारित समय में फसल अंकुरित हो जाती है तो इसे अच्छी पैदावार का प्रतीक माना जाता है। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसे सूखे की स्थिति बताया जाता है।
इस पर्व के दौरान प्रतिदिन क्रमवार लोगों के घरों में धाम का आयोजन होता है जहां लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर विभिन्न पकवानों का आनंद उठाते हैं। भोज के दौरान सतु, काजू, बादाम का सेवन करते हैं।
इसके अलावा अब कई लोग भोज में मटर-पनीर, चिकन, मटन भी बनाते हैं। वहीं पुनेही समाप्त होने के बाद देर शाम हर गांव में घुरेई नृत्य का भी आयोजन किया जाता है। यह घुरेई नृत्य 12 दिनों तक चलता है।
धुरेई नृत्य के दौरान गांव वासी एकजुट होकर घर की छत पर घुरेई नृत्य करते है। मिंधल माता के ठाठड़ी करतार सिंह ने बताया कि इस बार पांगी वासियों पर बालिराज काफी मेहरबान है।
उन्होंने बताया कि कभी पांगी का जुकारू बिना बर्फ का नहीं हुआ था लेकिन इस बार बर्फ न होने के कारण क्षेत्र के लोगों में काफी मायूसी छाई हुई थी। लेकिन जैसे ही बलि राजा का त्यौहार नजदीक आया तो बर्फबारी हुृई और जमकर बर्फबारी होने से पांगी वासी खुश हैं। इसे राजा बलि का वरदान माना है।