आज का पंचांग
दिनांक 29 अगस्त 2021
दिन – रविवार
विक्रम संवत – 2078 (गुजरात – 2077)
शक संवत – 1943
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद
मास – भाद्रपद (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार – श्रावण)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – सप्तमी रात्रि 11:26 तक तत्पश्चात अष्टमी
नक्षत्र – कृत्तिका पूर्ण रात्रि तक
योग – ध्रुव सुबह 06:45 तक तत्पश्चात व्याघात
राहुकाल – शाम 05:23 से शाम 06:57 तक
सूर्योदय – 06:22
सूर्यास्त – 06:56
दिशाशूल -पश्चिम दिशा में
व्रत पर्व विवरण – शीतला सप्तमी, रविवारी सप्तमी (सूर्योदय से रात्रि 11:26 तक)
विशेष –
सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है तथा शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
श्रीकृष्ण-जन्माष्टमीव्रत की कथा एवं विधि
30 अगस्त 2021 सोमवार को जन्माष्टमी है ।
भविष्यपुराण उत्तरपर्व अध्याय – २४
राजा युधिष्ठिर ने कहा – अच्युत ! आप विस्तार से (अपने जन्म-दिन) जन्माष्टमी व्रत का विधान बतलाने की कृपा करें।
भगवान् श्रीकृष्ण बोले – राजन ! जब मथुरा में कंस मारा गया, उस समय माता देवकी मुझे अपनी गोद में लेकर रोने लगीं। पिता वसुदेवजी भी मुझे तथा बलदेवजी आलिंगन कर गद्गदवाणी से कहने लगे – ‘आज मेरा जन्म सफल हुआ, जो मैं अपने दोनों पुत्रों को कुशल से देख रहा हूँ।
सौभाग्य से आज हम सभी एकत्र मिल रहे हैं।
हमारे माता-पिता को अति हर्षित देखकर बहुत से लोग वहाँ एकत्र हुए और मुझसे कहने लगे – ‘भगवन। आपने बहुत बड़ा काम किया, जो इस दुष्ट कंसको मारा। हम सभी इससे बहुत पीड़ित थे।
आप कृपाकर यह बतलाये कि आप माता देवकी के गर्भ से कब आविर्भूत हुए थे ? हम सब उस दिन महोत्सव मनाया करेंगे। आपको बार-बार नमस्कार है, हम सब आपकी शरण में हैं।
आप हम पर प्रसन्न होइये। उस समय पिता वसुदेवजी ने भी मुझसे कहा था कि अपना जन्मदिन इन्हें बता दो।
तब मैंने मथुरानिवासी जनों को जन्माष्टमी व्रत का रहस्य बतलाया और कहा – ‘पुरवासियों ! आपलोग मेरे जन्म दिन को विश्व में जन्माष्टमी के नाम से प्रसारित करें।
प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति को जन्माष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिये। जिस समय सिंह राशि पर सूर्य और वृषराशिपर चन्द्रमा था, उस भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में मेरा जन्म हुआ। वसुदेवजी के द्वारा माता देवकी के गर्भ से मैंने जन्म लिया। यह दिन संसार में जन्माष्टमी नाम से विख्यात होगा | प्रथम यह व्रत मथुरा में प्रसिद्ध हुआ और बाद में सभी लोकों में इसकी प्रसिद्धी हो गयी।
इस व्रत के करने से संसार में शान्ति होगी, सुख प्राप्त होगा और प्राणिवर्ग रोगरहित होगा।
महाराज युधिष्ठिर ने कहा – भगवन ! अब आप इस व्रत का विधान बतलाये, जिसके करने से आप प्रसन्न होते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण बोले – महाराज ! इस एक ही व्रत के कर लेने से सात जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। व्रत के पहले दिन दंतधावन आदि करके व्रत का नियम ग्रहण करें।
व्रत के दिन मध्यान्ह में स्नान कर माता भगवती देवकी का एक सूतिका गृह बनाये। उसे पद्मरागमणि और वनमाला आदिसे सुशोभित करें। गोकुल की भांति गोप, गोपी, घंटा, मृदंग, शंख और मांगल्य-कलश आदिसे समन्वित तथा अलंकृत सुतिका-गृह के द्वारपर रक्षा के लिए खणग, कृष्ण छाग, मुशल आदि रखे।
दीवालों पर स्वस्तिक आदि मांगलिक चिन्ह बना दें। षष्ठीदेवी की भी नैवेद्य आदि के साथ स्थापना करें। इस प्रकार यथाशक्ति उस सूतिकागृह को विभूषितकर बीच में पर्यंक के ऊपर मुझसहित अर्धसुप्तावस्थावाली, तपस्विनी माता देवकी की प्रतिमा स्थापित करें।
प्रतिमाएँ आठ प्रकार की होती हैं –स्वर्ण, चाँदी, ताम्र, पीतल, मृत्तिका, काष्ठ की मणिमयी तथा चित्रमयी।
इनमें से किसी भी वस्तुकी सर्वलक्षणसम्पन्न प्रतिमा बनाकर स्थापित करें। माता देवकी का स्तनपान करती हुई बालस्वरूप मेरी प्रतिमा उनके समीप पलंग के ऊपर स्थापित करें।
एक कन्या के साथ माता यशोदा की प्रतिमा भी वहां स्थापित की जाय। सूतिका-मंडप के ऊपर की भित्त्तियों में देवता, ग्रह, नाग तथा विद्याधर आदि की मूर्तियाँ हाथोसे पुष्प-वर्षा करते हुए बनाये। वसुदेवजी को सूतिकागृह के बाहर खणग और ढाल धारण किये चित्रित करना चाहिये। वसुदेवजी महर्षि कश्यप के अवतार हैं और देवकी माता अदितिकी।
बलदेवजी शेषनाग के अवतार हैं, नन्दबाबा दक्षप्रजापति के, यशोदा दिति की और गर्गमुनि ब्रह्माजी के अवतार हैं। कंस कालनेमिका अवतार है।
कंस के पहरेदारों को सूतिकागृह के आस-पास निद्रावस्था में चित्रित करना चाहिये। गौ, हाथी आदि तथा नाचती-गाती हुई अप्सराओं और गन्धर्वो की प्रतिमा भी बनाएं। एक ओर कालिया नाग को यमुना के ह्रदय में स्थापित करें।
इस प्रकार अत्यंत रमणीय नवसुतिका-गृह में देवी देवकी की स्थापनकर भक्ति से गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, नारियल, दाडिम, ककड़ी, बीजपुर, सुपारी, नारंगी तथा पनस आदि जो फल उस देशमें उस समय प्राप्त हों, उन सबसे पूजनकर माता देवकी की इसप्रकार प्रार्थना करें।
जिनके चारों ओर किन्नर आदि अपने हाथों में वेणु तथा वीणा-वाद्यों के द्वारा स्तुति-गान कर रहे हैं और जो अभिषेक-पात्र, आदर्श, मंगलमय कलश तथा चँवर हाथों में लिए श्रेष्ठ मुनिगणोंद्वारा सेवित हैं तथा जो कृष्ण-जननी भलीभांति बिछे हुए पलंगपर विराजमान हैं, उन कमनीय स्वरुपवाली सुवदना देवमाता अदिति-स्वरूपा देवी देवकी की जय हो।
उस समय यह ध्यान करें कि कमलासना लक्ष्मी देवकी के चरण दबा रही हो। उन देवी लक्ष्मी की – ‘नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:। इस मन्त्र से पूजा करें। इसके बाद ‘ॐ देवक्यै नम:, ॐ वासुदेवाय नम:, ॐ बलभद्राय नम:, ॐ श्रीकृष्णाय नम:, ॐ सुभद्रायै नम:, ॐ नन्दाय नम: तथा ॐ यशोदायै नम:’ – इन नाम-मन्त्रों से सबका अलग-अलग पूजन करें।