जानिए श्रावण में रुद्राभिषेक करने का महत्व

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आज का पंचांग

दिनांक 9 अगस्त

दिन – सोमवार

विक्रम संवत – 2078 (गुजरात – 2077)

शक संवत – 1943

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – वर्षा

मास – श्रावण

पक्ष – शुक्ल

तिथि – प्रतिपदा शाम 6:56 तक तत्पश्चात द्वितीया

नक्षत्र – अश्लेशा सुबह 9:50 तक तत्पश्चात मघा

योग – वरीयान् रात्रि 10:15 तक तत्पश्चात परिघ

राहुकाल – सुबह 7:52 से सुबह 9:30 तक

सूर्योदय – 6:16

सूर्यास्त – 19:11

दिशाशूल – पूर्व दिशा में

व्रत पर्व विवरण – अमावस्यांत श्रावण मासारम्भ, नक्तव्रतारम्भ, शिवपार्थेश्वर पूजन प्रारंभ, शिवपूजनारम्भ, चन्द्र-दर्शन

विशेष –

प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है।

चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।

चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।

श्रावण में रुद्राभिषेक करने का महत्व

रुद्राभिषेकं कुर्वाणस्तत्रत्याक्षरसङ्ख्यया, प्रत्यक्षरं कोटिवर्षं रुद्रलोके महीयते।

पञ्चामृतस्याभिषेकादमृत्वम् समश्नुते।

श्रावण में रुद्राभिषेक करने वाला मनुष्य उसके पाठ की अक्षर-संख्या से एक-एक अक्षर के लिए करोड़-करोड़ वर्षों तक रुद्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।

पंचामृत का अभिषेक करने से मनुष्य अमरत्व प्राप्त करता है।

श्रावण मास में भूमि पर शयन

केवलं भूमिशायी तु कैलासे वा समाप्नुयात स्कन्दपुराण

श्रावण मास में भूमि पर शयन करने से मनुष्य कैलाश में निवास प्राप्त करता है।

पार्थिव शिवलिंग

जो पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर एक बार भी उसकी पूजा कर लेता है, वह दस हजार कल्प तक स्वर्ग में निवास करता है।

शिवलिंग के अर्चन से मनुष्य को प्रजा, भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव, श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है।

जो मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण कर शरीर छोड़ता है वह करोड़ों जन्मों के संचित पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त हो जाता है।

कलियुग में पार्थिव शिवलिंग पूजा ही सर्वोपरि है ।

कृते रत्नमयं लिंगं त्रेतायां हेमसंभवम्
द्वापरे पारदं श्रेष्ठं पार्थिवं तु कलौ युगे (शिवपुराण)

शिवपुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग का पूजन सदा सम्पूर्ण मनोरथों को देनेवाला हैं तथा दुःख का तत्काल निवारण करनेवाला है।

जो मनुष्य प्रतिदिन तीनों समय पार्थिव लिङ्ग का निर्माण करके बिल्वपत्रों से उसका पूजन करता है, वह अपनी एक सौ ग्यारह पीढ़ियों का उद्धार करके स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।

ॐ हूं विश्वमूर्तये शिवाय नमः

यह द्वादशाक्षर मूल मंत्र है। इससे शिवलिंग को स्नान कराना चाहिए।

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