आज का पंचांग
दिनांक 23 जुलाई 2021
दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत – 2078 (गुजरात – 2077)
शक संवत – 1943
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – आषाढ़
पक्ष – शुक्ल
तिथि – चतुर्दशी सुबह 10:43 तक तत्पश्चात पूर्णिमा
नक्षत्र – पूर्वाषाढा दोपहर 02:26 तक तत्पश्चात उत्तराषाढा
योग – वैधृति सुबह 09:24 तक तत्पश्चात विष्कम्भ
राहुकाल – सुबह 11:06 से दोपहर 12:45 तक
सूर्योदय – 06:10
सूर्यास्त – 19:20
दिशाशूल – पश्चिम दिशा में
व्रत पर्व विवरण –
व्रत पूर्णिमा, गुरुपूर्णिमा, व्यासपूर्णिमा, ऋषि प्रसाद जयंती, कोकिला व्रतारम्भ, संन्यासी चातुर्मासारम्भ, विद्यालाभ योग
विशेष –
चतुर्दशी और पूर्णिमा के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
इसलिए जरूरी है जीवन में गुरु का होना
हिंदू धर्म में आषाढ़ पूर्णिमा गुरु भक्ति को समर्पित गुरु पूर्णिमा का पवित्र दिन भी है। भारतीय सनातन संस्कृति में गुरु को सर्वोपरि माना है।
वास्तव में यह दिन गुरु के रूप में ज्ञान की पूजा का है। गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है, जितना माता-पिता का।
माता-पिता के कारण इस संसार में हमारा अस्तित्व होता है। किंतु जन्म के बाद एक सद्गुरु ही व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व सिखाता है, जिससे व्यक्ति अपने सतकर्मों और सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है।
यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। सद्गुरु ने ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया, इसलिए गुरु पूर्णिमा को अनुशासन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास गुरु ही करता है। जिससे जीवन की कठिन राह को आसान हो जाती है।
सार यह है कि गुरु शिष्य के बुरे गुणों को नष्ट कर उसके चरित्र, व्यवहार और जीवन को ऐसे सद्गुणों से भर देता है। जिससे शिष्य का जीवन संसार के लिए एक आदर्श बन जाता है। ऐसे गुरु को ही साक्षात ईश्वर कहा गया है इसलिए जीवन में गुरु का होना जरूरी है।
गुरु पूजन
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्ति पूजामूलं गुरोः पदम्
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा
अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव
ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्षयम्
एकं नित्यं विमलं अचलं सर्वधीसाक्षीभूतम्
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि