जानें सूर्यस्नान के फायदे

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आज का हिन्दू पंचांग

दिनांक – 12 जनवरी 2022

दिन – बुधवार

विक्रम संवत – 2078

शक संवत -1943

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – शिशिर

मास – पौस

पक्ष – शुक्ल

तिथि – दशमी शाम 04:49 तक तत्पश्चात एकादशी

नक्षत्र – भरणी दोपहर 02:00 तक तत्पश्चात कृत्तिका

योग – साध्य सुबह 11:38 तक तत्पश्चात शुभ

राहुकाल – दोपहर 12:47 से दोपहर 02:09 तक

सूर्योदय – 07:19

सूर्यास्त – 18:14

दिशाशूल – उत्तर दिशा में

व्रत पर्व विवरण – साम्ब दशमी (ओडिशा),स्वामी विवेकानंद जयंती (दि.अ.), राष्ट्रीय युवा दिवस

एकादशी के दिन करने योग्य

12 जनवरी 2022 बुधवार को शाम 04:50 से 13 जनवरी, गुरुवार को शाम 07:32 तक एकादशी है।

विशेष –

13 जनवरी, गुरुवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।

एकादशी को दिया जला के विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें विष्णु सहस्त्र नाम नहीं हो तो १० माला गुरुमंत्र का जप कर लें।

अगर घर में झगडे होते हों, तो झगड़े शांत हों जायें ऐसा संकल्प करके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत होंगे।

मकर संक्रांति

आत्मोद्धारक व जीवन-पथ प्रकाशक पर्व – मकर संक्रांति (14 जनवरी 2022 शुक्रवार को पुण्यकाल दोपहर 02:30 से सूर्यास्त तक )।

जिस दिन भगवान सूर्यनारायण उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करते हैं, उस दिन उतरायण (मकर संक्रांति) का पर्व मनाया जाता है।

इस दिन से अंधकारमयी रात्रि कम होती जाती है और प्रकाशमय दिवस बढ़ता जाता है। उत्तरायण का वाच्यार्थ है कि सूर्य उत्तर की तरफ, लक्ष्यार्थ है आकाश के देवता की कृपा से ह्दय में भी अनासक्ति करनी है।

नीचे के केन्द्रों में वासनाएँ, आकर्षण होता है व ऊपर के केन्द्रों में निष्कामता, प्रीति और आनंद होता है। संक्रांति रास्ता बदलने की सम्यक सुव्यवस्था है।

इस दिन आप सोच व कर्म की दिशा बदलें। जैसी सोच होगी वैसा विचार होगा, जैसा विचार होगा वैसा कर्म होगा।

हाड-मांस के शरीर को सुविधाएँ दे के विकार भोगकर सुखी होने की पाश्चात्य सोच है और हाड-मांस के शरीर को संयत, जितेन्द्रिय रखकर सदभाव से विकट परिस्थितियों में भी सामनेवाले का मंगल चाहते हुए उसका मंगलमय स्वभाव प्रकट करना यह भारतीय सोच है।

सम्यक क्रांति। ऐसे तो हर महिने संक्रांति आती है लेकिन मकर संक्रांति साल में एक बार आती है।

उसी का इंतजार किया था भीष्म पितामह ने। उन्होंने उत्तरायण काल शुरू होने के बाद ही देह त्यागी थी।

पुण्यपुंज व आरोग्यता अर्जन का दिन

जो संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता वह ७ जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है और जो संक्रांति का स्नान कर लेता है वह तेजस्वी और पुण्यात्मा हो जाता है। संक्रांति के दिन उबटन लगाये, जिसमे काले तिल का उपयोग हो।

भगवान सूर्य को भी तिलमिश्रित जल से अर्घ्य दें। इस दिन तिल का दान पापनाश करता है, तिल का भोजन आरोग्य देता है, तिल का हवन पुण्य देता है। पानी में भी थोड़े तिल डाल के पियें तो स्वास्थ्यलाभ होता है।

तिल का उबटन भी आरोग्यप्रद होता है। इस दिन सुर्योद्रय से पूर्व स्नान करने से १० हजार गौदान करने का फल होता है। जो भी पुण्यकर्म उत्तरायण के दिन करते हैं वे अक्षय पुण्यदायी होते हैं।

तिल और गुड के व्यंजन, चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतु-परिवर्तनजन्य रोगों से रक्षा करती है। तिलमिश्रित जल से स्नान आदि से भी ऋतु-परिवर्तन के प्रभाव से जो भी रोग-शोक होते हैं, उनसे आदमी भिड़ने में सफल होता है।

सूर्यदेव की विशेष प्रसन्नता हेतु मंत्र

ब्रम्हज्ञान सबसे पहले भगवान सूर्य को मिला था। उनके बाद रजा मनु को, यमराज को, ऐसी परम्परा चली। भास्कर आत्मज्ञानी हैं, पक्के ब्रम्ह्वेत्ता हैं। बड़े निष्कलंक व निष्काम हैं। कर्तव्यनिष्ठ होने में और निष्कामता में भगवान सूर्य की बराबरी कौन कर सकता है।

कुछ भी लेना नहीं, न किसी से राग है न द्वेष है। अपनी सत्ता-समानता में प्रकाश बरसाते रहते हैं, देते रहते हैं।

पद्म पुराण’ में सूर्यदेवता का मूल मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम:। अगर इस सूर्य मंत्र का ‘आत्मप्रीति व आत्मानंद की प्राप्ति हो’ – इस हेतु से भगवान भास्कर का प्रीतिपूर्वक चिंतन करते हुए जप करते हैं तो खूब प्रभु-प्यार बढेगा, आनंद बढेगा।

ओज-तेज-बल का स्त्रोत : सूर्यनमस्कार

सूर्यनमस्कार करने से ओज-तेज और बुद्धि की बढ़ोत्तरी होती है। ॐ सूर्याय नम:। ॐ भानवे नम:। ॐ खगाय नम: ॐ रवये नम: ॐ अर्काय नम:, आदि मंत्रो से सूर्यनमस्कार करने से आदमी ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है।

इसमें प्राणायाम भी हो जाता है, कसरत भी हो जाती है।

सूर्य की उपासना करने से, अर्घ्य देने से, सूर्यस्नान व सूर्य-ध्यान आदि करने से कामनापूर्ति होती है। सूर्य का ध्यान भ्रूमध्य में करने से बुद्धि बढती है और नाभि-केंद्र में करने से मन्दाग्नि दूर होती है, आरोग्य का विकास होता है।

आरोग्य व पुष्टि वर्धक : सूर्यस्नान

सूर्य की धूप में जो खाद्य पदार्थ, जैसे-घी, तेल आदि २ – ४ घंटे रखा रहे तो अधिक सुपाच्य हो जाता है। धूप में रखे हुए पानी से कभी –कभी स्नान कर सकते हैं। इससे सूखा रोग (Rickets) नहीं होता और रोगनाशिनी शक्ति बरक़रार रहती है।

सूर्य की किरणों से रोग दूर करने की प्रशंसा ‘अथर्ववेद’ में भी आती है। कांड – १, सूक्त २२ के श्लोकों में सूर्य की किरणों का वर्णन आता है।

मैं १५-२० मिनट सूर्यस्नान करता हूँ। लेटे–लेटे सूर्यस्नान करना और भी हितकारी होता है लेकिन सूर्य की कोमल धूप हो, सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे के अंदर-अंदर सूर्यस्नान कर लें। इससे मांसपेशियाँ तंदुरस्त होती हैं, स्नायुओं का दौर्बल्य दूर होता है।

सूर्यस्नान का यह प्रसाद मुझे अनुभव होता है। मुझे स्नायुओं में दौर्बल्य नहीं है। स्नायु की दुर्बलता, शरीर में दुर्बलता, थकान व कमजोरी हो तो प्रतिदिन सूर्यस्नान करना चाहिए।

सूर्यस्नान से त्वचा के रोग भी दूर होते हैं, हड्डियाँ मजबूत होती हैं। रक्त में कैल्शियम, फ़ॉस्फोरस व लोहें की मात्राएँ बढती हैं, ग्रंथियों के स्त्रोतों में संतुलन होता है।

सूर्यकिरणों से खून का दौरा तेज, नियमित व नियंत्रित चलता है। लाल रक्त कोशिकाएँ जाग्रत होती हैं, रक्त की वृद्धि होती है। गठिया, लकवा और आर्थराइटिस के रोग में भी लाभ होता है।

रोगाणुओं का नाश होता है, मस्तिष्क के रोग, आलस्य, प्रमाद, अवसाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि शांत होते हैं। मन स्थिर होने में भी सूर्य की किरणों का योगदान है। नियमित सूर्यस्नान से मन पर नियंत्रण, हार्मोन्स पर नियंत्रण और त्वचा व स्नायुओं में क्षमता, सहनशीलता की वृद्धि होती है।

नियमित सूर्यस्नान से दाँतों के रोग दूर होने लगते हैं। विटामिन ‘डी’ की कमी से होनेवाले सूखा रोग, संक्रामक रोग आदि भी सूर्यकिरणों से भगाये जा सकते हैं।

अत: आप भी खाद्य अन्नों को व स्नान के पानी को धूप में रखों तथा सूर्यस्नान का खूब लाभ लो।

दृढ़ संकल्पवान व साधना में उन्नत होने का दिन

उत्तरायण यह देवताओं का ब्राम्हमुहूर्त है तथा लौकिक व अध्यात्म विद्याओं की सिद्धि का काल है तो मकर संक्रांति के पूर्व की रात्रि में सोते समय भावना करना कि ‘पंचभौतिक शरीर पंचभूतों में, मन, बुद्धि व अहंकार प्रकृति में लीन करके मैं परमात्मा में शांत हो रहा हूँ।

जैसे उत्तरायण के पर्व के दिन भगवान सूर्य दक्षिण से मुख मोडकर उत्तर की तरफ जायेंगे, ऐसे ही हम नीचे के केन्द्रों से मुख मोडकर ध्यान-भजन और समता के सूर्य की तरफ बढ़ेंगे। ॐ शांति, ॐ आनंद।

रात को ‘ॐ सूर्याय नम:। इस मंत्र का चिंतन करके सोओगे तो सुबह उठते-उठते सूर्यनारायण का भ्रूमध्य में ध्यान भी सहज में कर पाओगे। उससे बुद्धि का विकास होगा।

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