सड़क से वंचित काशक गांव में एकमात्र प्राथमिक विद्यालय भी बंद

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नेरवा, नोविता सूद। हिमाचल प्रदेश सरकार ने दो दिन पहले दो या दो से कम संख्या वाले 117 स्कूल प्राथमिक विद्यालय और 26 माध्यमिक विद्यालयों को बंद किया।

इसमें चौपाल विधानसभा के 5 प्राथमिक विद्यालय जिसमें कयारी, अंतरावली, काशक, जुब्बली और दरबाड भी शामिल हैं।

1973 से चल रहा उत्तराखंड की सीमा से पर स्थित गांव काशक, टेलर पंचायत खंड नेरवा, तहसील नेरवा जिला शिमला का प्राथमिक विद्यालय भी बंद हो गया।

इससे वहां के लोग न केवल अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं बल्कि उनमें सरकार के इस निर्णय के प्रति गहरा रोष भी है। गांव के युवक इंजीनियर देवेंद्र चौहान ने बताया कि यह गांव अति पिछड़ा और दुर्गम है और इस विद्यालय के बंद होने से उनके गांव के गरीब का बच्चा अनपढ़ रह जायेगा।

उनका कहना है कि सरकार एक दो बच्चे वाले स्कूल अवश्य बंद करे, जहां दूसरा स्कूल पास में है परंतु स्कूल बंद करने से पहले वास्तविकता जाननी चाहिए।

भौगौलिक परिस्थिति और दूरी भी कोई मापदंड होना चाहिए। हर जगह के लिए एक मापदंड लागू नहीं हो सकता। पांचवी तक के बच्चे बहुत छोटे होते हैं और पढ़ने के लिए कहीं दूसरी जगह भेजने के लिए परिवार को घर छोड़कर जाना पड़ेगा जिससे घर का काम ठप हो जायेगा।

काशक ग्रामवासी या तो अपने बच्चे पढ़ा पाएंगे या घर का काम कर सकेंगे । परिवार अपने घरवार छोड़कर नहीं जा सकता, उस स्थिति में गरीब का बच्चा शिक्षा ग्रहण नहीं कर पायेगा।

सरकार के इस फैसले से लोग बेहद दुखी हैं। ग्रामीणों का सबसे बड़ा दर्द यह है कि काशक एक ऐसा गांव है, जहां दूसरा विद्यालय टेलर 7 किलोमीटर की चढ़ाई के बाद स्थित है और वहां सिर्फ पैदल मार्ग है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि यह गांव आजादी के 75 वर्षों बाद भी बिना सड़क से है। यहां सड़क तक पहुंचने में 10 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। कई नेता आए और गए परंतु इस गांव की किसी ने सुध नहीं ली।

उत्तराखंड की सीमा पर बसा यह गांव राजनीतिक उपेक्षा का शिकार हो रहा है। पंचायत प्रधान कमला चौहान और काशक के मुखिया मातबर सिंह चौहान, काशक गांव के युवक राकेश चौहान, नरेंद्र चौहान, अनिल चौहान, चंदन चौहान और भूपिंदर चौहान ने सरकार से आग्रह किया है कि सरकार अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करे और अति कठिन भौगौलिक परिस्थिति को देखते हुए काशक स्कूल को बंद करने के निर्णय को वापस ले ताकि इस गाँव के निर्धन बच्चे अपनी पढ़ाई जारी रख सकें।

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