चीड़ की पत्तियों से बने प्रोडक्ट से महिलाएं चलाती हैं आजीविका

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शिमला। राजधानी की ग्राम पंचायत कोट को हिप्पा ने 10 साल पहले अडॉप्ट किया था और महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया था। इस पंचायत में वृद्ध से लेकर युवाओं तक के लिए अलग अलग आजीविका के साधन लाये जाते हैं।

चीड़ की पत्तियों से प्रोडक्ट बनाने का प्रशिक्षण महिलाओं को दिया गया था जिससे महिलाओं को काफी सुविधा मिल रही है, महिलाओं को इसकी हिप्पा द्वारा ट्रेनिंग दी गयी थी।

ग्राम पंचायत कोट प्रधान नेहा मेहता का कहना है कि वह महिलाओं को पंचायत से लेकर आए हैं और रिज पर इन प्रोडक्ट को बेच रहे हैं। महिलाये प्रोडक्ट को बेचकर अपनी आजीविका चला सकें इसलिए लगभग 10 साल पहले हिप्पा संस्था ने कोट पंचायत को अडॉप्ट किया है।

उन्होंने एक हफ्ते का शिविर भी लगाया गया था, उसके बाद एक और एडवांस ट्रेनिंग करवाई गई जिसमें 19 से 20 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया। भारत सरकार द्वारा लगभग 3 महीने का एक कैंप लगाया गया था जिसमें महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया था कि किस तरीके से यह प्रोडक्ट चीड़ की पत्तियों से तैयार किया जाएं।

पंचायत की लगभग 100 महिलाएं यह काम कर रही हैं। चीड़ की पत्तियां जंगलों से उठाई जाती हैं। इससे जंगलो में आग का खतरा भी कम हो जाता है।

इन पत्तियों को इकट्ठा करने में ना कोई खर्चा होता है। ट्रेनिंग में सिखाया गया है कि पहले पत्ते को उबालकर और फिर सुखाकर प्रोडक्ट तैयार करने हैं।

गाँव की महिलाए जहाँ भी एगज़ीबीशन या स्टॉल लगते हैं, वहां इन प्रोडक्ट को बेचती हैं।

प्रधान ग्राम पंचायत कोट नेहा मेहता ने बताया कि किस तरह महिलाओं की आर्थिकी में सुधार हुआ है।

वहीं गाँव की महिलाओं का कहना है कि इन प्रोडक्ट को तैयार करने में बहुत मेहनत लगती है। पहले घर का काम देखना पड़ता है। उसमें से समय निकाल ये काम करना पड़ता है।

प्रोडक्ट की कॉस्ट 250 से 1200 तक होती है। 250 रूपए के प्रोडक्ट को तैयार करने में कम से कम 2 दिन लगते हैं। ये काम गाँव की अपंग महिलाएं और वृद्ध भी करते हैं। इससे महिलाओं को बाहर की दुनिया देखने का मौका भी मिलता है।

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