बेसहारा, जख्मी नेपाली मज़दूर की दर्दनाक हालत पर उमंग ने राज्यपाल को लिखा पत्र

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ठियोग के दो युवक बने मसीहा

शिमला। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में उपचाराधीन बेसहारा नेपाली मज़दूर पूरण बहादुर की दर्दनाक हालत किसी का भी दिल दहला सकती है। एक हादसे में उसकी दोनों टांगे बुरी तरह जलने के बाद सड़ गई थीं। अब उसकी एक टांग काट दी गई है।

उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो अजय श्रीवास्तव ने राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को पत्र लिखकर ऐसे बेसहारा मरीजों के लिए मुफ्त इलाज और तीमारदार के साथ ही पुनर्वास की व्यवस्था के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह बहुत गंभीर समस्या है और बेसहारा मरीजों के मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है।

उन्होंने बताया कि उमंग फाउंडेशन से जुड़े ठियोग के दो युवक मसीहा बन कर पूरण बहादुर की जिंदगी में आए। वे पिछले कई दिनों से अपने सब काम छोड़, हजारों रुपए खर्च करके उसके के इलाज की जिम्मेवारी संभाल रहे हैं। इससे यह विश्वास जागता है कि इंसानियत अभी जिंदा है।

प्रो अजय श्रीवास्तव ने बताया कि ठियोग के गांव गजेड़ी में रहने वाले पूरण बहादुर की टांगे एक हादसे में बुरी तरह जल गई थीं। स्थानीय युवाओं आशु बेक्टा और संजय बेक्टा ने उसे ठियोग अस्पताल में दिखाया जहां से उसको आईजीएमसी रेफर कर दिया गया।

मरीज की गंभीर हालत देखकर उसका इलाज तो शुरू कर दिया गया। लेकिन नेपाली होने के कारण न तो इसके पास आधार कार्ड है और न ही हिमकेयर कार्ड। ऐसे में इलाज में होने वाला खर्च भी आशु और संजय को ही उठाना पड़ रहा है। अब तक वे 16 हज़ार रुपए से अधिक खर्च कर चुके हैं।

पूरण बहादुर बताता है कि कुछ दिन पहले वह कमरे में अंगीठी जलाकर सो रहा था कि आग लगने से उसकी टांगे जल गई। उसका कोई भी सगा संबंधी यहां नहीं है। वे सब नेपाल में रहते हैं।

आशु बेक्टा और संजय बेक्टा को जब पता चला तो उन्होंने उसे स्थानीय अस्पताल में दिखाया जहां से शिमला रेफर कर दिया गया।

संपर्क करने पर प्रो अजय श्रीवास्तव से आईजीएमसी के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डॉ जनक राज ने कहा कि यह मामला उनके ध्यान में नहीं आया था। उन्होंने कहा कि अब इस मरीज के इलाज में आईजीएमसी प्रशासन पूरी मदद करेगा।

उधर एक पत्र लिखकर प्रो अजय श्रीवास्तव ने राज्यपाल से अनुरोध किया है कि वह ऐसे मरीजों के इलाज, तीमारदार, और बाद में पुनर्वास की व्यवस्था कराने के लिए कदम उठाएं।

उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा भुक्तभोगी झारखंड, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, और बंगाल जैसे राज्यों एवं नेपाल से यहां मजदूरी करने आए गरीब लोग होते हैं। उनके मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन होता है।

उन्हें सरकार से न तो मुफ्त इलाज की सुविधा मिल पाती है और गंभीर रूप से विकलांग होने के बाद उनका पुनर्वास भी संभव नहीं होता।

प्रदेश में एक भी ऐसा संस्थान नहीं है जहां स्वस्थ होने के बाद गंभीर विकलांगता वाले व्यक्तियों का पुनर्वास हो सके।

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