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दिनांक 10 जुलाई 2021

दिन – शनिवार

विक्रम संवत – 2078 (गुजरात – 2077)

शक संवत – 1943

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – वर्षा

मास – आषाढ़ (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार – ज्येष्ठ)

पक्ष – कृष्ण

तिथि – अमावस्या सुबह 06:46 तक तत्पश्चात प्रतिपदा

नक्षत्र – पुनर्वसु 11 जुलाई रात्रि 01:02 तक तत्पश्चात पुष्य

योग – व्याघात शाम 04:50 तक तत्पश्चात हर्षण

राहुकाल – सुबह 09:24 से सुबह 11:04 तक

सूर्योदय – 06:04

सूर्यास्त – 19:23

दिशाशूल – पूर्व दिशा में

व्रत पर्व विवरण –

विशेष –

अमावस्या के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)

गुप्त नवरात्रि

आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई रविवार से शुरू हो रही हैं, जो 18 जुलाई, रविवार तक रहेंगी । नवरात्रि के इन 9 दिनों में देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है।

इन नौ दिनों में देवी को विभिन्न प्रकार के भोग भी लगाए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस उपाय से साधक (उपाय करने वाला) की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। जानिए किस तिथि पर देवी को किस चीज का भोग लगाना चाहिए-

ये हैं गुप्त नवरात्रि के अचूक उपाय

प्रतिपदा तिथि को माता को घी का भोग लगाएं। इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती हैं एवं शरीर निरोगी होता है।

द्वितीया तिथि को माता को शक्कर का भोग लगाएं। इससे उम्र लंबी होती है।

तृतीया तिथि को माता को दूध का भोग लगाएं। इससे सभी प्रकार के दुःखों से मुक्ति मिलती है।

चतुर्थी तिथि को माता को मालपुआ का भोग लगाएं। इससे समस्याओं का अंत होता है।

पंचमी तिथि को माता को केले का भोग लगाएं। इससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

षष्ठी तिथि को माता को शहद का भोग लगाएं। इससे धन लाभ होने के योग बनते हैं ।

सप्तमी तिथि को माता को गुड़ का भोग लगाएं। इससे हर मनोकामना पूरी हो सकती है।

अष्टमी तिथि को माता को नारियल का भोग लगाएं। इससे घर में सुख-समुद्वि आती है।

नवमी तिथि को माता को विभिन्न प्रकार के अनाज का भोग लगाएं। इससे वैभव व यश मिलता है।

पुष्य नक्षत्र योग

11 जुलाई 2021 रविवार को सूर्योदय से रात्रि 02:22 तक रविपुष्यमृत योग है ।

१०८ मोती की माला लेकर जो गुरुमंत्र का जप करता है, श्रद्धापूर्वक तो २७ नक्षत्र के देवता उस पर खुश होते हैं और नक्षत्रों में मुख्य है पुष्य नक्षत्र, और पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं देवगुरु ब्रहस्पति।

पुष्य नक्षत्र समृद्धि देनेवाला है, सम्पति बढ़ानेवाला है | उस दिन ब्रहस्पति का पूजन करना चाहिये।

ब्रहस्पति को तो हमने देखा नहीं तो सद्गुरु को ही देखकर उनका पूजन करें और मन ही मन ये मंत्र बोले –

ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम – ॐ ऐं क्लीं ब्रहस्पतये नम :।

कैसे बदले दुर्भाग्य को सौभाग्य में

बरगद के पत्ते पर गुरुपुष्य या रविपुष्य योग में हल्दी से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें।

रविपुष्यामृत योग

शिव पुराण’ में पुष्य नक्षत्र को भगवान शिव की विभूति बताया गया है। पुष्य नक्षत्र के प्रभाव से अनिष्ट-से-अनिष्टकर दोष भी समाप्त और निष्फल-से हो जाते हैं, वे हमारे लिए पुष्य नक्षत्र के पूरक बनकर अनुकूल फलदायी हो जाते हैं। ‘सर्वसिद्धिकर: पुष्य:।’

इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है | पुष्य नक्षत्र में किये गए श्राद्ध से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है तथा कर्ता को धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है।

इस योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं। (शिव पुराण, विद्येश्वर संहिताः अध्याय 10)

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