विघ्नों और मुसीबतों को दूर करने के लिए करें यह उपाय

Spread with love

आज का हिन्दू पंचांग

दिनांक – 22 दिसम्बर 2021

दिन – बुधवार

विक्रम संवत – 2078

शक संवत -1943

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – शिशिर

मास – पौस (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार मार्गशीर्ष मास)

पक्ष – कृष्ण

तिथि – तृतीया शाम 04:52 तक तत्पश्चात चतुर्थी

नक्षत्र – पुष्य रात्रि 12:45 तक तत्पश्चात अश्लेशा

योग – इंद्र दोपहर 12:04 तक तत्पश्चात वैधृति

राहुकाल – दोपहर 12:37 से दोपहर 01:59 तक

सूर्योदय – 07:13

सूर्यास्त – 18:01

दिशाशूल – उत्तर दिशा में

व्रत पर्व विवरण – सौभाग्य सुंदरी व्रत, संकट चतुर्थी (चंद्रोदय रात्रि 8:44)

विशेष –

तृतीया को पर्वल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

विघ्नों और मुसीबतें दूर करने के लिए

22 दिसम्बर 2021 बुधवार को संकष्ट चतुर्थी (चन्द्रोदय रात्रि 08:44)

शिव पुराण में आता हैं कि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी ( पूनम के बाद की ) के दिन सुबह में गणपतिजी का पूजन करें और रात को चन्द्रमा में गणपतिजी की भावना करके अर्घ्य दें और ये मंत्र बोलें :

ॐ गं गणपते नमः।

ॐ सोमाय नमः।

चतुर्थी‬ तिथि विशेष

चतुर्थी तिथि के स्वामी ‪भगवान गणेश‬जी हैं।

हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक मास में दो चतुर्थी होती हैं।

पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी कहते हैं। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।

शिवपुराण के अनुसार “महागणपतेः पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्षके। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा।

अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करनेवाली और एक पक्षतक उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती है ।

कोई कष्ट हो तो

हमारे जीवन में बहुत समस्याएँ आती रहती हैं, मिटती नहीं हैं ।, कभी कोई कष्ट, कभी कोई समस्या | ऐसे लोग शिवपुराण में बताया हुआ एक प्रयोग कर सकते हैं कि, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (मतलब पुर्णिमा के बाद की चतुर्थी ) आती है।

उस दिन सुबह छः मंत्र बोलते हुये गणपतिजी को प्रणाम करें कि हमारे घर में ये बार-बार कष्ट और समस्याएं आ रही हैं वो नष्ट हों।

छः मंत्र इस प्रकार हैं –

ॐ सुमुखाय नम: : सुंदर मुख वाले; हमारे मुख पर भी सच्ची भक्ति प्रदान सुंदरता रहे।

ॐ दुर्मुखाय नम: : मतलब भक्त को जब कोई आसुरी प्रवृत्ति वाला सताता है तो भैरव देख दुष्ट घबराये।

ॐ मोदाय नम: : मुदित रहने वाले, प्रसन्न रहने वाले । उनका सुमिरन करने वाले भी प्रसन्न हो जायें।

ॐ प्रमोदाय नम: : प्रमोदाय; दूसरों को भी आनंदित करते हैं । भक्त भी प्रमोदी होता है और अभक्त प्रमादी होता है, आलसी । आलसी आदमी को लक्ष्मी छोड़ कर चली जाती है और जो प्रमादी न हो, लक्ष्मी स्थायी होती है ।

ॐ अविघ्नाय नम:
ॐ विघ्नकरत्र्येय नम:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: