आज का हिन्दू पंचांग, जानें कार्तिक मास में दीपदान का महत्व

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दिनांक – 11 अक्टूबर 2022

दिन – मंगलवार

विक्रम संवत – 2079 (गुजरात-2078)

शक संवत -1944

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – शरद ॠतु

मास – कार्तिक (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार अश्विन)

पक्ष – कृष्ण

तिथि – द्वितीया 12 अक्टूबर रात्रि 01:29 तक तत्पश्चात तृतीया

नक्षत्र – अश्र्विनी शाम 04:17 तक तत्पश्चात भरणी

योग – हर्षण शाम 03:17 तक तत्पश्चात वज्र

राहुकाल – शाम 03:22 से शाम 04:50 तक

सूर्योदय – 06:33

सूर्यास्त – 18:16

दिशाशूल – उत्तर दिशा में

विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

लक्ष्मी किसको सताती है, किसको सुख देती है

जहाँ शराब-कबाब का सेवन, दुर्व्यसन, कलह होता है वहाँ की लक्ष्मी ‘वित्त’ बनकर सताती है, दुःख और चिंता उत्पन्न करती है।

जहाँ लक्ष्मी का धर्मयुक्त उपयोग होता है वहाँ वह महालक्ष्मी होकर नारायण के सुख से सराबोर करती हैं।

कार्तिक में दीपदान

10 अक्टूबर से 08 नवम्बर तक कार्तिक मास है।

विशेष ~ गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अभी अश्विन मास है ।

महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है दीपदान। दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए।

कार्तिक में घी अथवा तिल के तेल से जिसका दीपक जलता रहता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से क्या लेना है।

अग्निपुराण के 200 वे अध्याय के अनुसार दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा।

कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है।

कार्तिक में दीपदान का एक मुख्य उद्देश्य पितरों का मार्ग प्रशस्त करना भी है।

मनुष्य के पितर अन्य पितृगणों के साथ सदा इस बात की अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पितृभक्त पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिक में दीपदान करके श्रीकेशव को संतुष्ट कर सके। शेष कल

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