आज का हिन्दू पंचांग, जानें षडशीति संक्रान्ती का महत्व

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दिनांक – 16 सितम्बर 2022

दिन – शुक्रवार

विक्रम संवत – 2079 (गुजरात-2078)

शक संवत -1944

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – शरद ॠतु

मास – अश्विन (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार भाद्रपद)

पक्ष – कृष्ण

तिथि – षष्ठी दोपहर 12:19 तक तत्पश्चात सप्तमी

नक्षत्र – कृत्तिका सुबह 09:55 तक तत्पश्चात रोहिणी

योग – वज्र 17 सितम्बर प्रातः 05:51 तक तत्पश्चात सिद्धि

राहुकाल – सुबह 11:02 से दोपहर 12:33 तक

सूर्योदय – 06:26

सूर्यास्त – 18:39

दिशाशूल – पश्चिम दिशा में

व्रत पर्व विवरण – सप्तमी का श्राद्ध

विशेष – षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

षडशीति संक्रान्ती

17 सितम्बर 2022 शनिवार को षडशीति संक्रान्ती है।

पुण्यकाल : सुबह 07:22 से दोपहर 01:46 तक। जप, तप, ध्यान और सेवा का पूण्य 86000 गुना है।

इस दिन करोड़ काम छोड़कर अधिक से अधिक समय जप – ध्यान, प्रार्थना में लगायें।

षडशीति संक्रांति में किये गए जप ध्यान का फल ८६००० गुना होता है – (पद्म पुराण )

अश्विन माह

अश्विन हिन्दू धर्म का सप्तम महिना है। अश्विन नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने के कारण इसका नाम अश्विन पड़ा (अश्विनीनक्षत्रयुक्ता पौर्णमासी यत्र मासे सः)।

आश्विन मास का संबंध अश्विनौ से है जो सूर्य के दो पुत्र हैं और देवताओं के चिकित्सक हैं। इस मास का एक नाम क्वार भी है। (उत्तर भारत हिन्दू पंचांग के अनुसार) से अश्विन का आरम्भ हो चुका है। (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अभी भाद्रपद मास चल रहा है)।

महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार जो अश्विन मास में ब्राह्माणों को घृत दान करता है, उस पर दैव वैद्य अश्विनीकुमार प्रसन्न होकर उसे रूप प्रदान करते हैं ।

शिवपुराण के अनुसार अश्विन में धान्य दान करने से अन्न तथा धन की वृद्धि होती है।

अग्निपुराण के अनुसार अश्विन के महिने में गोरस- गाय का घी, दूध और दही तथा अन्न देनेवाला सब रोगों से छुटकारा पा जाता है।

अश्विन महिने के कृष्णपक्ष की षष्ठी के दिन मंगलवार, रोहिणी नक्षत्र और व्यतिपात हो तो वह अनंत पुण्य देने वाला कपिला षष्टी योग कहा जाता है। यह योग बहुत दुर्लभ है।

शिवपुराण के अनुसार सती ने अश्विन मास में नंदा (प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी) तिथियों में भक्तिपूर्वक गुड़, भात और नमक चढाकर भगवान शिवका पूजन किया और उन्हें नमस्कार करके उसी नियम के साथ उस मास को व्यतीत किया।

अश्विन कृष्णपक्ष को पितृपक्ष महालय के नाम से जाना जाता है जिसमें पितृ ऋण से मुक्त होने तथा पितरों को तृप्त करने के उद्देश्य से श्राद्ध किया जाता है।

श्राद्धकर्म

अगर श्राद्धकर्म करने के लिए आपके पास बिल्कुल भी धन नहीं है तो आपको उधार मांगकर धन लेना चाहिए और श्राद्ध करना चाहिए।

अगर आपको कोई उधार नहीं दे रहा तो पितरों के उद्देश्य से पृथ्वी पर भक्ति विनम्र भाव से सात आठ तिलों से जलाञ्जलि ही दे दें। अगर यह भी संभव नहीं तो कहीं से चारा लाकर गौ को खिला दें।और अगर इतना भी संभव नहीं तो अपनी बगल दिखाते हुए सूर्य तथा दिक्पालों से कहें।

मेरे पास श्राद्धकर्म के योग्य न धन-संपति है और न कोई अन्य सामग्री। अत: मै अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ। वे मेरी भक्ति से ही तृप्तिलाभ करे। मैंने अपनी दोनों भुजाएं आकाश में उठा रखी हैं।

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