आज का हिन्दू पंचांग, गणेश चतुर्थी पर करेंगे यह काम तो मिलेगा पुण्य

Spread with love

दिन – बुधवार

विक्रम संवत – 2079 (गुजरात-2078)

शक संवत -1944

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – शरद ॠतु

मास – भाद्रपद

पक्ष – शुक्ल

तिथि – चतुर्थी शाम 03:22 तक तत्पश्चात पंचमी

नक्षत्र – चित्रा रात्रि 12:12 तक तत्पश्चात स्वाती

योग – शुक्ल रात्रि 10:48 तक तत्पश्चात ब्रह्म

राहुकाल – दोपहर 12:39 से दोपहर 02:13 तक

सूर्योदय – 06:23

सूर्यास्त – 18:54

दिशाशूल – उत्तर दिशा में

व्रत पर्व विवरण –

विनायक चतुर्थी, गणेश चतुर्थी, चंद्र- दर्शन निषिद्ध (चंद्रास्त : रात्रि 9:34), गणेश महोत्सव प्रारंभ, संवत्सरी पर्व- चतुर्थी पक्ष (जैन)

विशेष –

चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

गणेश चतुर्थी

गणेशजी का जन्म भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न में हुआ था। उस समय सोमवार का दिन, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न और अभिजीत मुहूर्त था। गणेशजी के जन्म के समय सभी शुभग्रह कुंडली में पंचग्रही योग बनाए हुए थे।

इस वर्ष यह त्यौहार 31 अगस्त 2022 बुधवार को मनाया जाएगा।

वैसे तो भविष्य पुराण में सुमन्तु मुनि का कथन है

न तिथिर्न च नक्षत्रं नोपवासो विधीयते । यथेष्टं चेष्टतः सिद्धिः सदा भवति कामिका।

भगवान गणेशजी की आराधना में किसी तिथि, नक्षत्र या उपवासादि की अपेक्षा नहीं होती। जिस किसी भी दिन श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान गणेशजी की पूजा की जाय तो वह अभीष्ट फलों को देनेवाली होती है।

फिर भी गणेशजी के जन्मदिन पर की जानेवाली उनकी पूजा का विशेष महत्व है।

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को उपवास कर जो भगवान गणेशजी का पूजन करता है, उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं और सभी अनिष्ट दूर हो जाते हैं।

श्रीगणेशजी के अनुकूल होने से सभी जगत अनुकूल हो जाता है। जिस पर एकदन्त भगवान गणपति संतुष्ट होते हैं, उसपर देवता, पितर, मनुष्य आदि सभी प्रसन्न रहते हैं।

अग्निपुराण के अनुसार भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को व्रत करनेवाला शिवलोक को प्राप्त करता है।

भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी का नाम ‘शिवा’ है, इस दिन जो स्नान, दान उपवास, जप आदि सत्कर्म किया जाता है, वह गणपति के प्रसाद से सौ गुना हो जाता है।

इस चतुर्थी को गुड़, लवण और घृत का दान करना चाहिये, यह शुभ माना गया है और गुड़ के अपूपों (मालपुआ) से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये तथा उनकी पूजा करनी चाहिये।

इस दिन जो स्त्री अपने सास और ससुर को गुड़ के पुए तथा नमकीन पुए खिलाती है वह गणपति के अनुग्रह से सौभाग्यवती होती है। पति की कामना करनेवाली कन्या विशेषरूप से इस चतुर्थी का व्रत करे और गणेशजी की पूजा करें।

सोमवार, चतुर्थी तिथिको उपवास रखकर व्रती को विधि – विधान से गणपतिदेव की पूजा कर उनका जप, हवन और स्मरण करना चाहिये। इस व्रत को करने से उसे विद्या, स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्त होता है।

शिवपुराण के अनुसार “वर्षभोगप्रदा ज्ञेया कृता वै सिंहभाद्रके” जब सूर्य सिंह राशिपर स्थित हो, उस समय भाद्रपदमास की चतुर्थी को की हुई गणेशजी की पूजा एक वर्ष तक मनोवांछित भोग प्रदान करती है।

गणेशजी की नित्य पूजा करें, किंतु चतुर्थी को विशेष रूप से पूजा का आयोजन करें। सफ़ेद आक की जड़ से उनकी प्रतिमा बनाकर पूजा करें। उनके लिए तिल की आहुति देने पर सम्पूर्ण मनोरथों की प्राप्ति होती है।

यदि दही, मधु और घी से मिले हुए चावल से आहुति दी जाय तो सौभाग्य की सिद्धि एवंय शिवत्व की प्राप्ति होती है।

गणेश जी को मोदक (लड्डू), दूर्वा घास तथा लाल रंग के पुष्प अति प्रिय हैं । गणेशजी अथर्वशीर्ष में कहा गया है “यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति” अर्थात जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का पूजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। “यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति” अर्थात जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा पूजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है।

गणेश चतुर्थी पर गणेशजी को 21 लड्डू, 21 दूर्वा तथा 21 लाल पुष्प (अगर संभव हो तो गुड़हल) अर्पित करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: