दिनांक – 13 अगस्त 2022
दिन – शनिवार
विक्रम संवत – 2079 (गुजरात-2078)
शक संवत -1944
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा ऋतु
मास – भाद्रपद (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार श्रावण)
पक्ष – कृष्ण
तिथि – द्वितीया रात्रि 12:53 तक तत्पश्चात तृतीया
नक्षत्र – शतभिषा रात्रि 11:28 तक तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद
योग – शोभन सुबह 07:50 तक तत्पश्चात अतिगण्ड
राहुकाल – सुबह 09:30 से सुबह 11:07 तक
सूर्योदय – 06:17
सूर्यास्त – 19:09
दिशाशूल – पूर्व दिशा में
विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
कजरी तीज
भाद्रपद मास के तीसरे दिन यानी भाद्रपद कृष्ण तृतीया तिथि (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार श्रावण मास तृतीया तिथि) इस बार (14 अगस्त, रविवार) विशेष फलदायी होती है, क्योंकि यह तिथि माता पार्वती को समर्पित है।
इस दिन भगवान शंकर तथा माता पार्वती के मंदिर में जाकर उन्हें भोग लगाने तथा विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन कजरी तीज का उत्सव भी मनाया जाता है।
कजरी तीज को सतवा तीज भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को फूल-पत्तों से सजे झूले में झुलाया जाता है। चारों तरफ लोक गीतों की गूंज सुनाई देती है।
कई जगह झूले बांधे जाते हैं और मेले लगाए जाते हैं। नवविवाहिताएं जब विवाह के बाद पहली बार पिता के घर आती हैं तो तीन बातों के तजने (त्यागने) का प्रण लेती हैं- पति से छल कपट, झूठ और दुर्व्यवहार और दूसरे की निंदा।
मान्यता है कि विरहाग्नि में तप कर गौरी इसी दिन शिव से मिली थी। इस दिन पार्वती की सवारी निकालने की भी परम्परा है। व्रत में 16 सूत का धागा बना कर उसमें 16 गांठ लगा कर उसके बीच मिट्टी से गौरी की प्रतिमा बना कर स्थापित की जाती है तथा विधि-विधान से पूजा की जाती है।
चतुर्थी तिथि विशेष
चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान गणेशजी हैं।
हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक मास में दो चतुर्थी होती हैं।
पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी कहते हैं। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।
प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करनेवाली और एक पक्षतक उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती है।