आज का हिन्दू पंचांग

Spread with love

दिनांक – 31 जुलाई 2022

दिन – रविवार

विक्रम संवत – 2079 (गुजरात-2078)

शक संवत -1944

अयन – दक्षिणायन

ऋतु – वर्षा ऋतु

मास -श्रावण

पक्ष – शुक्ल

तिथि – तृतीया 01 अगस्त प्रातः 04:18 तक तत्पश्चात चतुर्थी

नक्षत्र – मघा दोपहर 02:20 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी

योग – वरीयान शाम 07:12 तक तत्पश्चात परिघ

राहुकाल – शाम 05:40 से शाम 07:18 तक

सूर्योदय – 06:13

सूर्यास्त – 19:16

दिशाशूल – पश्चिम दिशा में

विशेष –

तृतीया को पर्वल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

रविवार के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)

रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं खाना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)

रविवार के दिन काँसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75)

स्कंद पुराण के अनुसार रविवार के दिन बिल्ववृक्ष का पूजन करना चाहिए। इससे ब्रह्महत्या आदि महापाप भी नष्ट हो जाते हैं।

नागपंचमी

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 2 अगस्त, मंगलवार को है। इस दिन नागों की पूजा करने का विधान है। हिंदू धर्म में नागों को भी देवता माना गया है।

महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं-

वासुकि नाग

धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। ये हैं भगवान शिव के गले में लिपटे रहते हैं। (कुछ ग्रंथों में महादेव के गले में निवास करने वाले नाग का नाम तक्षक भी बताया गया है)। ये महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान हैं।

इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है। इनकी बुद्धि भगवान भक्ति में लगी रहती है। जब माता कद्रू ने नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए। तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा।

तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया। समय आने पर जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्वान पुत्र को जन्म दिया। आस्तीक ने ही प्रिय वचन कह कर राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था।

धर्म ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकि की नेती (रस्सी) बनाई गई थी। त्रिपुरदाह (इस युद्ध में भगवान शिव ने एक ही बाण से राक्षसों के तीन पुरों को नष्ट कर दिया था) के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।

शेषनाग

शेषनाग का एक नाम अनंत भी है। शेषनाग ने जब देखा कि उनकी माता कद्रू व भाइयों ने मिलकर विनता (ऋषि कश्यप की एक और पत्नी) के साथ छल किया है तो उन्होंने अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की।

उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी।

ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए।

इस प्रकार शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया। क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे।

तक्षक नाग

धर्म ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी।

तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।

जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: