हमीरपुर। देश की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियम, 1973 के नियम 130 के तहत विधानसभा में चर्चा करते हुए सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा ने कृषि पर आधारित रोजगार को लेकर चर्चा की। राणा ने कहा कि प्रदेश में लगातार बढ़ रही बेरोजगारों की फौज की चिंता सरकार को अभी से करनी चाहिए।
इसके लिए कोई सटीक नीति व नियम सरकार को बनाने चाहिए। राणा ने कहा कि कृषि बेरोजगारी को कम करने के लिए प्रदेश में एक महत्वपूर्ण टूल साबित हो सकता है, लेकिन कृषि क्षेत्र में काम कर रही सरकार की योजनाओं का लाभ खेत तक बहुत कम पहुंच पाता है और कागजों में ज्यादा रहता है।
किसानों की खेती जंगली जानवर और लावारिस पशुओं के साथ-साथ प्राकृतिक आपदा भी लगातार तबाह करती है।
उन्होंने कहा कि हैरानी की बात यह है कि फसल बीमा कंपनियां कागजी सरकारी योजनाओं के चलते अमीर हो रही हैं जबकि फसलें तबाह होने के कारण किसान कंगाल हो रहा है।
सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि फसल बीमा जैसी योजनाओं का लाभ उसके असली हकदार को मिले और हर उस किसान को मिले जिसकी फसलें तबाह हुई हैं। राणा ने कहा कि प्रदेश में लगातार विकराल हो रही बेरोजगारी की समस्या की ओर प्रदेश सरकार का कोई ध्यान नहीं है।
प्रदेश में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है। करुणामुल्क आधार पर ही 4500 बेरोजगार रोजगार की बाट जोह रहे हैं, लेकिन एक तरफ नोटिफिकेशन जारी करके खुद ही उस नोटिफिकेशन को न मानकर सरकार बाहरी राज्य के लोगों को नौकरियां देने में लगी है।
मनरेगा जो कोविड-19 कार्यकाल में रोजगार का एक बेहतरीन टूल साबित हुआ है। सरकार को चाहिए कि मनरेगा की दिहाड़ी बढ़ाई जाए।
अन्य प्रदेशों में मनरेगा की दिहाड़ी हिमाचल प्रदेश से कहीं ज्यादा है। अब तक मनरेगा का विरोध करती आ रही बीजेपी को अब मनरेगा की सार्थकता व समर्थता की समझ आ चुकी है कि संकटकाल में आखिर मनरेगा ही रोजगार देने के लिए प्रदेश सरकार के लिए सबसे बड़ा टूल बनी, तो ऐसे में अब सरकार को चाहिए कि मनरेगा के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा काम हों।
यहां तक कि प्रदेश की बदहाल हो चुकी सड़कों का रखरखाव का काम भी मनरेगा के माध्यम से करवाया जा सकता है, लेकिन सरकार बेरोजगारी पर ध्यान न देकर अपने ताने-बाने में उलझ कर परेशान है व प्रदेश के लोगों को भी परेशान किए हुए है।