पहाड़ी भाषा, लोक संस्कृति के पुरोधा लाल चंद प्रार्थी

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शिमला। लाल चंद प्रार्थी एक कद्दावर लेखक, समाजसेवी, राजनेता, कुशल नर्तक, लोकगायक, संगीतप्रेमी, आयुर्वेदाचार्य थे। वे नग्गर के गांव के स्कूल में मैट्रिक की शिक्षा पास करने के बाद लाहौर से आयुर्वेदाचार्य करने के बाद राजनीति में आए और हिमाचल प्रदेश सरकार में भाषा संस्कृति तथा आयुर्वेद मंत्री रहे। 1971 में हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी की स्थापना में उनका प्रमुख योगदान रहा।

प्रदेश की पारंपरिक और समकालीन कला संस्कृति भाषा और साहित्य के प्रोत्साहन तथा सम्मान के लिए वे सदैव तत्पर रहे। उनकी कुलूत देश की कहानी और वजूद ओ वदम पुस्तकें प्रकाशित हुई। हिमालय क्षेत्र के इतिहास, प्राचीन पौराणिक जातियों, समाज व्यवस्था, देव संस्कृति और लोक जीवन पर आधारित महत्वपूर्ण एवं प्रामाणिक सामग्री कुलूत देश की कहानी में शामिल है, जो आज भी उपयोगी तथा प्रासंगिक है।

हिमालयन डिजिटल मीडिया द्वारा लाल चंद प्रार्थी के जन्म दिवस के अवसर पर ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें डॉ.गौतम शर्मा व्यथित, डाॅ प्रत्यूष गुलेरी, डॉ ओम प्रकाश शर्मा, डॉ हिमेन्द्र बाली, मदन हिमाचली, डॉ जयनारायण कश्यप, डॉ सूरत ठाकुर, अश्वनी वर्मा, हितेन्द्र शर्मा, के आर भारती तथा डॉ कर्म सिंह आदि विद्वानों ने परिचर्चा में भाग लिया।

संगोष्ठी के दौरान डॉ गौतम शर्मा व्यथित ने कहा कि लालचंद प्रार्थी ने हिमाचल प्रदेश में अकादमी की स्थापना से लेकर हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की मुहिम प्रारंभ की और जीवन के अंतिम क्षणों तक उसे निभाया।

उन्होंने कहा कि प्रार्थी की अभिव्यक्ति और प्रस्तुति बेजोड़ थी। उनका पूरा जीवन संघर्षपूर्ण रहा। यद्यपि जीवन के अंतिम पड़ाव में राजनीतिक तौर पर हास्य पर जाने के बाद वे काफी विक्षुब्ध रहे लेकिन उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता।

डॉ प्रत्यूष गुलेरी का कहना है कि लालचंद प्रार्थी ने पहाड़ी हिमाचली भाषा का नारा दिया और पहाड़ी भाषा एवं साहित्य के प्रोत्साहन के लिए अकादमी के माध्यम से अनेकों योजनाओं का संचालन किया। पहाड़ी को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने के मुद्दे को उन्होंने प्रमुखता से उठाया जो आज भी पहाड़ी लेखकों की एक मुख्य मांग है।

गुलेरी के अनुसार लाल चंद प्रार्थी हिमाचली पहाड़ी भाषा और संस्कृति की रीड थे। हिमाचली के विस्तार को उन्होंने डाॅ परमार के साथ मिलकर जो पहाड़ी भाषा और संस्कृति के आधार पर संघर्ष किया उसमें सफलता मिली। प्रार्थी जी हिमाचल के मंदिरों में विद्यमान भित्ति चित्रों के संरक्षण के पक्षधर रहे और पारंपरिक लोक कलाओं शिल्प कला चित्रांकन को प्रोत्साहन प्रदान किया।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में डॉ यशवंत सिंह परमार पीठ के अध्यक्ष डॉ. ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि लाल चंद प्रार्थी ने डॉ यशवंत सिंह परमार के मार्गदर्शन में जिस पहाड़ी हिमाचली भाषा एवं साहित्य के लिए प्रयत्न किए उसे वर्तमान में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के माध्यम से पहाड़ी भाषा और साहित्य तथा प्राचीन लिपियों पर आधारित डिप्लोमा कोर्स के माध्यम से पूरा किया जा रहा है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा प्रदान किए जाने पर बल दिया गया है। इस दृष्टि से हिमाचल प्रदेश में पहाड़ी हिमाचली भाषा में पुस्तिकाएं तैयार करने की जरूरत है ताकि प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में प्रदान की जा सके।

इस अवसर पर परिचर्चा के दौरान मदन हिमाचली ने बताया कि पहाड़ी भाषा के माध्यम से कोई भी लेखक अपने विचारों को मौलिकता के साथ प्रस्तुत कर सकता है और पहाड़ी भाषा में कविता कहानी उपन्यास अनुवाद आदि विभिन्न विधाओं में प्रचुर साहित्य का सृजन किया जा रहा है।

डॉ सूरत सिंह ठाकुर का मत है कि लाल चंद प्रार्थी ने अपने घर से महिलाओं को नृत्य के लिए प्रेरित किया। उन्हें

सार्वजनिक मंचों तक पहुंचाया। उसी का परिणाम है कि आज कुल्लू और हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जनपदों में लोक संगीत तथा नृत्य और नाटी का खूब प्रचलन है। उन्होंने बताया कि कुल्लू की नाटी गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड और लिम्का बुक रिकॉर्ड में दर्ज है यही लाल चंद प्रार्थी की चिंतन दृष्टि का ही परिणाम है।

उन्होंने बताया कि प्रार्थी जी एक संवेदनशील व्यक्ति थे वह उन्हें गाली देने वाले आदमी की भी समस्या को समझ कर उसका समाधान करते थे। उन्होंने बताया कि लालचंद प्रार्थी ने कुल्लू में वसंतोत्सव के अवसर पर शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम आयोजित किया जाता था जो पिछले कुछ वर्षों से बंद हो गया है।

डॉ हिर्मेंद्र बाली के विचारों में लाल चंद प्रार्थी ने हिमालय क्षेत्र के प्राचीन इतिहास पुरातत्व देव परंपरा सांस्कृतिक धरोहर और ऋषि मुनियों के इतिहास को कुलूत देश की कहानी पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया।हिमालय क्षेत्र की किन्नर खश किरात आदि जातियों के बारे में उनके द्वारा लिखा गया इतिहास आज भी प्रामाणिकता से स्वीकार किया जा रहा है।

लाल चंद प्रार्थी की चिंतन दृष्टि इस संगोष्ठी के संयोजक डॉ कर्म सिंह ने बताया कि लाल चंद प्रार्थी का हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी भाषा साहित्य संस्कृति आयुर्वेद के प्रोत्साहन तथा प्रचार प्रसार में विशिष्ट योगदान है।

डॉ हिमेन्द्र बाली ने कहा कि लालचंद प्रार्थी पद प्रतिष्ठा से ऊपर उठकर चिंतन करने वाले व्यक्ति थे उन्होंने बाल रामायण की रचना करके तथा पहाड़ी भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने के लिए आजीवन योगदान दिया इस दृष्टि से उन्हें हिमालय पुत्र कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी भारत माता आगे हाथ जोड़े पहाड़ी सुबह लोहड़ी हो इस गीत में कुल्लू जनपद के लोगों को आजादी के लिए प्रेरित किया और संस्कृति तथा लोक साहित्य के संरक्षण प्रकाशन और प्रचार-प्रसार को प्राथमिकता प्रदान की।

डॉ कर्म सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लाल चंद प्रार्थी ने 1971 में अकादमी की स्थापना में सराहनीय योगदान दिया और वर्तमान में हिमाचल अकादमी, भाषा संस्कृति विभाग तथा अन्य संस्थाओं द्वारा हर वर्ष लाल चंद प्रार्थी जयंती समारोह का आयोजन करके उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।

इस संगोष्ठी के दौरान डॉ जयनारायण कश्यप, हितेंद्र शर्मा ने भी अपने विचार प्रकट किए तथा उपस्थित विद्वानों ने इस कार्यक्रम को हिमालयन डिजिटल मीडिया पर लाइव करने के लिए हितेंद्र शर्मा का आभार व्यक्त किया।

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