आउटसोर्स कर्मियों की नौकरी को बहाल करने की मांग को लेकर 9 अगस्त को होंगे प्रदेशव्यापी प्रदर्शन

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हिमाचल प्रदेश आउटसोर्स कर्मचारी यूनियन सम्बन्धित सीटू का राज्य स्तरीय अधिवेशन शिमला के कालीबाड़ी हॉल में आयोजित किया गया। अधिवेशन में प्रदेशभर से सैकड़ों आउटसोर्स कर्मियों ने भाग लिया।

अधिवेशन में सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। वीरेंद्र लाल को अध्यक्ष, दलीप सिंह को महासचिव, पंकज शर्मा को कोषाध्यक्ष, चुनी लाल, सन्तोष कुमार, सरीना देवी, लोकेंद्र कुमार को उपाध्यक्ष, संजय कुमार, मोहम्मद रिज़वान, निशा देवी को सचिव, नोख राम, सीता राम, उमानन्द, सतीश, देवेंद्र, आशा, सन्नी ठाकुर, निरथ राम, विपिन कुमार तथा यशपाल को कमेटी सदस्य चुना गया।

अधिवेशन ने निर्णय लिया कि आउटसोर्स कर्मियों की मांगों व एनएचएम से स्वास्थ्य सचिव द्वारा तानाशाहीपूर्वक तरीके से नौकरी से निकाले गए तीन आउटसोर्स कर्मियों की नौकरी को बहाल करने की मांग को लेकर 9 अगस्त को प्रदेशव्यापी प्रदर्शन होंगे।

अधिवेशन को सीटू राष्ट्रीय सचिव कश्मीर सिंह ठाकुर, सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में आउटसोर्स कर्मचारियों की भूमिका उदाहरणीय रही है।

प्रदेश के सरकारी विभागों के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने में आउटसोर्स कर्मी पिछले पन्द्रह सालों से बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं परन्तु उनकी स्थिति दयनीय बनी हुई है। आउटसोर्स कर्मियों से नियमित कर्मचारी के बराबर काम लेने के बावजूद उन्हें बेहद कम वेतन दिया जाता है जो कि कई बार महीनों तक भी नसीब नहीं होता है।

उनके लिए सुप्रीम कोर्ट के 26 अक्तूबर 2016 के समान कार्य के समान वेतन के निर्णय को लागू नहीं किया गया है। उन्हें नियमित कर्मचारी से ज़्यादा कार्य लेने के बावजूद उनके मुकाबले केवल एक तिहाई वेतन ही मिलता है।

उन्हें ईपीएफ, ईएसआई, छुट्टियों व ओवरटाइम वेतन के दायरे में नहीं लाया गया है। अगर कहीं ईपीएफ व ईएसआई सुविधा लागू भी है तो उसके दोनों शेयर कर्मियों से ही काटे जाते हैं। कर्मियों के वेतन से 18 प्रतिशत जीएसटी भी काटा जाता है। उनके रोज़गार को संचालित करने के लिए कोई नीति नहीं है। पूर्व भाजपा सरकार ने इन कर्मियों को ठगने का कार्य किया था व कांग्रेस सरकार भी उसी रास्ते पर चल रही है।

यूनियन के अध्यक्ष वीरेंद्र लाल व महासचिव दलीप सिंह ने कहा कि कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग में मरीजों के लिए अपनी जान दांव पर लगाने वाले नर्सिंग स्टाफ, डेटा एंट्री ऑपरेटर, वार्ड अटेंडेंट, सुरक्षा, सफाई, लॉन्ड्री, मेस व अन्य सभी प्रकार के पैरामेडिकल स्टाफ को आज नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।

उन्हें सेवा विस्तार नहीं दिया जा रहा। उनकी हाज़िरी भी नहीं लग रही। उन्हें वेतन भी नहीं मिल रहा है। स्वास्थ्य विभाग के 1800 आउटसोर्स कर्मियों को नौकरी से बाहर करने से पूर्व जलशक्ति विभाग व अन्य विभागों के हज़ारों कर्मियों को नौकरी से बाहर किया जा चुका है।

सरकार तर्क दे रही है कि अब आउटसोर्स प्रणाली खत्म होगी व नियमित भर्तियां होंगी परन्तु बीस वर्षों से सेवाएं देने वाले आउटसोर्स कर्मी कहाँ जाएंगे। उनके परिवारों के लिए रोज़ी रोटी का मसला खड़ा हो गया है।

उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की है कि नीति बनाते समय यह बात ध्यान में रखी जाए कि सरकारी विभागों में कार्यरत सभी 30 हज़ार आउटसोर्स कर्मी नियमित हों व उसके बाद ही नई नियुक्तियां की जाएं।

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