हमीरपुर, 11 जुलाई, 2020। राज्य कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कहा है कि सरकार के इंटर्नल खर्चों व कर्जों का हिसाब प्रदेश के भविष्य के लिए निरंतर खतरनाक होता जा रहा है। अब फिर प्रदेश सरकार एक हजार करोड़ का नया कर्जा उठाने की तैयारी में है।
हैरानी यह है कि एक ओर प्रदेश सरकार केंद्र की उदारता के नगाड़े पीट रही है और दूसरी ओर प्रदेश को कर्ज के दुष्चक्र में धकेल रही है। आलम यह है कि पुराने कर्ज की ब्याज वापसी के ही लिए नया कर्जा लिया जा रहा है।
बेतहाशा कर्ज के जाल में फंसे प्रदेश का वित्तिय संतुलन निरंतर गड़बड़ा रहा है। प्रदेश के गैर जरूरी कर्जों पर सत्ता पक्ष को आर्थिक संकट की चिंता व चर्चाओं के लिए फुरस्त ही नहीं है। अपने मुंह मियां मिट्ठु बन रही सरकार का गैर जरूरी कर्जों का पहाड़ इसलिए भी हैरान कर रहा है कि डबल इंजन की बात करने वाली बीजेपी अब लगातार राजनीतिक फिजुल खर्ची के भंवर में फंसती व धंसती जा रही है।
राणा ने सवाल खड़ा किया है कि जब केंद्र से लगातार उदार राहत की बातें सरकार कर रही है तो ऐसे में कर्जे पर कर्जा लेने की मजबूरी क्या है? क्या सरकार केंद्र की राहत पर प्रदेश की जनता से झूठ बोल रही है?
उन्होंने कहा कि सरकार के बजट का हिसाब बता रहा है कि हर एक 100 रुपए की आमदनी में सेंटर टैक्स और स्टेट टैक्स से महज 32 रुपए मिल रहे हैं, जबकि ग्रांट इन एड से 44 रुपए मिल रहे हैं। मौजूदा वर्ष की आमदनी के टैक्स रहित राजस्व में 5, लोक ऋण 16 तथा 3 रुपए जोड़कर राज्य सरकार चल रही है।
ऐसे में सरकार 62 फीसदी खर्च सामान्य व सामाजिक सेवाओं पर बता रही है, जबकि कर्जे और ब्याज की अदायगी पर इस कुल बजट का केवल 17 फीसदी होम हो रहा है। अब ऐसे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस सरकार का ब्याज वापसी पर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बताई जा रही आमदनी का 17 फीसदी खर्च हो रहा है।
वह सरकार जमीनी स्तर पर विकास के लिए क्या खर्च कर रही है। आधे से ज्यादा बजट पैंशनों व कर्मचारियों के वेतन भत्तों पर खर्च हो जा रहा है, जो कि करीब 55 फीसदी बनता है। सरकार के आंकड़ों पर ही अगर भरोसा करें तो करीब 75 फीसदी बजट उपरोक्त खर्चों पर ही उड़ जा रहा है। ऐसे में मात्र करीब 25 फीसदी बजट पर राज्य के विकास का दारोमदार टिका है।