शिमला। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा एचपी काउंसिल फाॅर साइंस टेक्नोलाॅजी एंड एन्वायरमेंट के तत्वावधान में राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र विभिन्न पहलुओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने के लिए अध्ययन कर रहा है। राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र ने अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंन्द्र, अहमदाबाद, भारत सरकार के सहयोग से हिमाचल हिमालय में हिम, हिमनदों से संबंधित अध्ययन करने में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों का सफलतापूर्वक उपयोग किया है।
क्रोयोस्फेरिक अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन है क्योंकि राज्य का एक तिहाई भाग इस महान हिमालय अभ्यारण की विशेषता है और इस अध्ययन क्षेत्र की दुर्गमता के कारण किसी भी अन्य पारंपरिक पद्धति के उपयोग से संभव नहीं है।
हिमाचल प्रदेश राज्य में उच्च ऊंचाई पर बर्फ गिरती हैै और राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग एक तिहाई भाग सर्दियों के मौसम में घनी बर्फ की चादर के नीचे रहता है। हिमालय से निकलने वाली नदियां मुख्यतः चवाब, ब्यास, पार्वती, बासपा, स्पीति, रावी, सतलुज और इसकी बारहमासी सहायक नदियों में से अधिकांश प्रमुख नदियां अपने निर्वहन निर्भरता के लिए मौसमी हिम आवरण पर निर्भर करती हैं।
इसके अलावा, बर्फ का आवरण राज्य में ग्लेशियर क्षेत्रों में संचय और पृथक्करण पैटर्न को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
सर्दियों में गिरने वाली बर्फ नदी घटियों के जल-विज्ञान को नियंत्रित करती है और इसके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए निदेशक पर्यावरण विज्ञान एवं तकनीकी एवं सदस्य सचिव हिमएचपी काउंसिल फाॅर साइंस टेक्नोलाॅजी एंड एन्वायरमेंट डीसी राणा ने बताया कि हालांकि हमें कुल बर्फ गिरने की जानकारी हमारी विभिन्न वेधशालाओं से मिलती है पर वो एक प्वाइंट सूचना होती है। इसलिए इससे बर्फ प्रभावित क्षेत्रों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
इस प्रकार विभिन्न उपग्रहों के डेटा का उपयोग करके अब सर्दियों के बर्फ प्रभावित क्षेत्र का अनुमान लगाना संभव हो गया है। उन्होंने कहा कि केंन्द्र ने सर्दियों के मौसम में विभिन्न उपग्रहों के डाटा के उपयोग से बर्फ प्रभावित क्षेत्र का अनुमान लगाया है जोकि विभिन्न नदियों के जल विज्ञान में बर्फ के योगदान को समझने में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी है।
हिमाचल प्रदेश में सर्दियों में बर्फबारी की वर्तमान प्रवत्ति को ध्यान में रखते हुए, सभी बेसिनों जैसे चंद्रा, भागा, मियार, ब्यास, पार्वती, जिवा, पिन, स्पीति और बसपा में बर्फ का मानचित्रण किया गया, जिसमें एडब्ल्यूआइएफएस उपग्रह डेटा (अक्तूबर से मई) का उपयोग किया गया, जिसकी स्पेशियल रेज्यूलेशन 56 मीटर थी।
अक्तूबर 2019-20 के दौरान प्रत्येक माह में बर्फ के तहत कुल क्षेत्र के औसत मूल्य के संदर्भ में बर्फबारी का अनुमान लगाया गया और मई 2018-19 के साथ इसका तुलनात्मक विश्लेषण किया गया।
सर्दियों के महीनों (नवंबर से जनवरी) के दौरान, हम कह सकते हैं कि राज्य के दक्षिणपूर्वी हिस्से में 2019-20 की सर्दियों में अधिक बर्फ पायी गई, बल्कि बेसिन (जैसे ब्यास और रावी) की तुलना में सतलुज बेसिन मुख्य रूप से शामिल था। जबकि, चिनाब में 2018-19 की तुलना में 2019-20 में बर्फ आवरण क्षेत्र में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं दिखा।
अन्य सर्दियों के महीने यानी अक्तूबर, फरवरी और मार्च, सभी बेसिन में 2019-20 की तुलना 2018-19 से करने पर, बर्फ आवरण में कमी पायी गई, जो यह दर्शाता है कि शेष सर्दियों के महीनों के दौरान जनवरी के बाद में गिरावट आई हैं।
गर्मियों के महीनों यानी अप्रैल और मई के विश्लेषण से पता चला है कि चिनाब बेसिन में, अप्रैल में कुल बेसिन क्षेत्र का 87 प्रतिशत और मई में लगभग 65 प्रतिशत अभी भी बर्फ के प्रभाव में है जो यह दर्शाता है कि कुल बेसिन क्षेत्र के लगभग 22 प्रतिशत हिस्से में बर्फ अप्रैल और मई में पिघल चुकी हैं।
दूसरे शब्दों में, हम यह सकते हैं कि कुल बेसिन क्षेत्र का लगभग 65 प्रतिशत अगले (जून से अगस्त) के दौरान पिघल जाएगा, जो चिनाब नदी के बहाव में योगदान देगा।
इसी तरह, अप्रैल और मई के महीने में ब्यास बेसिन में कुल बेसिन क्षेत्र का 49 प्रतिशत और लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा बर्फ आवरण पर प्रभाव डालता हैं, जो यह दर्शाता है कि कुल बेसिन क्षेत्र का 4 प्रतिशत हिस्से की बर्फ ब्यास नदी में पिघल। इसी तरह ब्यास के कुल बेसिन क्षेत्र का 45 प्रतिशत गर्मियों में पिघल कर पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध होगा।
रावी बेसिन में अप्रैल में 44 प्रतिशत और मई में कुल बेसिन क्षेत्र का लगभग 26 प्रतिशत क्षेत्र बर्फ के अंतर्गत आता है, जो यह दर्शाता है कि अप्रैल और मई के बीच कुल बेसिन क्षेत्र की 18 बर्फ पिघली। इसी प्रकार कुल बेसिन क्षेत्र का केवल 26 प्रतिशत बर्फ का पानी अगले महीनों के दौरान रावी बेसिन से पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए उपलब्ध होगा।
इसी तरह, बसपा, पिन और स्पीति के सतलुज बेसिनों से पता चलता है कि अप्रैल में बेसिन क्षेत्र का लगभग 72 प्रतिशत और मई में 50 प्रतिशत हिस्सा बर्फ के अंतर्गत था, जो दर्शाता है कि सतलुत बेसिन में, अप्रैल और मई के दौरान लगभग 22 प्रतिशत बर्फ पिघली और शेष 50 प्रतिशत बर्फ का पानी अगले वर्ष 2019-20 पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए उपलब्ध होगा।
हिमाचल प्रदेश में (अक्तूबर से मई) 2019-20 के दौरान बर्फ कवर मेपिंग ऐनेलाइजिज से पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश में कुल बर्फ में लगभग 0.72 प्रतिशत कमी देखी गई। 2018-19 और 2019-20 की तुलना के तहत बर्फ का कुल औसत क्षेत्र 20210.23 वर्ग किलोमीटर से घटकर 20064.00 वर्ग किलोमीटर हुआ।
सर्दियों के दौरान, फरवरी से बर्फ आवरण क्षेत्र धीरे-धीरे कम हो गया है, जो गर्मियों के दौरान नदी के बहाव को प्रभावित कर सकता है। विश्लेषण किए गए आंकड़ों के आधार पर, ब्यास और रावी बेसिन की तुलना में (नवंबर से जनवरी) सतलुज बेसिन में अधिक बर्फ आवरण देखा गया, जबकि चिनाब बेसिन ने इस अवधि के दौरान बर्फ आवरण क्षेत्र में ज्यादा बदलाव नहीं देखा गया।
विश्लेषण के आधार पर यह पाया गया कि चिनाब (कुल बेसिन क्षेत्र का 65 प्रतिशत), सतलुज बेसिन (कुल बेसिन क्षेत्र का 50 प्रतिशत), ब्यास बेसिन 45 प्रतिशत और रावी बेसिन 26 प्रतिशत में बर्फ प्रभावित क्षेत्र मई 2020 के बाद पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए उपलब्ध रहेगा।