मौत से बेखौफ हो रहे किसानों का निरंतर बढ़ रहा आक्रोश: राणा

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शिमला। सरकार की ताकत से बेखौफ दिल्ली के सड़क द्वारों पर ठंड से ठिठुर और मर रहे किसानों के सब्र का बांध अब टूटने लगा है। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष व सुजानपुर विधायक राजेंद्र राणा ने कही।

उन्होंने कहा कि संघर्ष कर रहे किसानों को सरकार दुश्मन मान बैठी है। सरकार और किसानों के बीच आठवें दौर की वार्ता के बाद कटुता व आक्रोश दोनों पक्षों में बढ़ा है। अब पंजाब हरियाणा के कई शहरों से पुलिस की मुठभेड़ की खबरें राजहठ के कारण समाज को खतरनाक स्थिति में पहुंचाने लगी है।

ऐसे में अगर दिल्ली के द्वारों पर डटे हुए किसान संगठनों का सब्र टूट जाए तो कोई हैरत नहीं होगी। राणा ने कहा कि सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि अगर किसानों के सब्र का बांध टूटता है तो देश में दंगों की खतरनाक स्थिति बन सकती है जिसकी सीधी जिम्मेदारी व जवाबदेही बीजेपी सरकार की होगी।

सरकार की किसानों के आंदोलन को लेकर घोर अपेक्षा संघर्ष कर रहे किसानों के आक्रोश को उकसा रही है। सरकार को इस स्थिति की गंभीरता को समझना होगा। जिस तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के गांव में आयोजित महा पंचायत के जलसे को किसानों के आक्रोश ने ध्वस्त किया है और उन्हें जलसा स्थगित करना पड़ा है।

इस घटनाक्रम से विस्फोटक हो रही स्थिति की गंभीरता को समझने में सरकार भले ही नाकाम रही हो लेकिन देश की जनता विस्फोटक होती जा रही इस स्थिति से दहशत में है। करनाल में किसानों के नाम पर जो कुछ घटा है वह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है।

अभी तक किसान आंदोलन गांधीवादी, अहिंसक व अनुशासित रहा है। इस आंदोलन में बीजेपी को भी आदर्श व्यवहार को पाठ पढ़ाया है लेकिन किसानों के टूटते सब्र के बीच बढ़ रही मुठभेड़ की घटनाएं अब खतरनाक स्थिति की ओर बढ़ रही हैं जिससे दुनिया भर में देश के लोकतंत्र की छवि लगातार बिगड़ती जा रही है।

अगर किसान जत्थेबंदियों के नेता धरनों और वार्ता के जरिए अपना पक्ष पेश कर रहे हैं तो संविधान और लोकतंत्र की मर्यादा यह बताती है कि उनके पक्ष को सरकार गंभीरता से सुने। राणा ने कहा कि लोकतंत्र में पक्ष व विपक्ष को अपनी बात कहने की समान छूट होती है लेकिन बीजेपी सरकार में विपक्ष और जनता के संवाद व पक्ष को सुनने के बजाए तानाशाह रवैया बरकरार है।

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