जानिए: बसन्तपुर विकास खण्ड की सुन्नी तहसील के ठेला गांव के भोपाल सिंह ने कैसे बदली अपनी जिंदगी
शिमला। हमारे पास अपनी जमीन है, पानी भी है इसलिए पुश्तैनी से खेती करते आए हैं। और मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा भी तो नहीं हूं फिर काम के लिए बजाए इधर-उधर दौड़ने के जिमिदारा करने लगा।
गांव की जिन्दगी सबसे बढ़िया होती है साब जी! खेती के काम में किसान अपना साहब खुद होता है, जब काम करने का मन हो काम करो, आराम करने का मन हो आराम करो। इसमें हमारे ऊपर कोई दूसरा साहब नहीं होता सरकारी नौकरी की तरह! फिर एक उल्लास भरी हंसी भोपाल सिंह के चेहरे पर उभर के आती है।
बसन्तपुर विकास खण्ड की सुन्नी तहसील के ठेला गांव का यह समृद्ध किसान अपने किसानी कार्यों को करता हुआ गौरवान्वित अनुभव कर रहा था।
पूर्व की स्मृतियों में खोते हुए भोपाल सिंह ने बताया कि पहले पुराने तरीके से 10 बीघा जमीन पर खेती किया करते थे, तो पूरा नहीं पड़ता था। बस परिवार की आई-चलाई में ही सब कुछ खप्प जाता था।
कमाई तो दूर की कौड़ी थी। कच्चा मकान था, खेतों में दिन-भर मियां-बीबी खपे रहते थे, परिवार का पालन- पोषण हो, बस यही एक सपना था!
अन्नायास ही भोपाल सिंह कह उठता है साहब जी बेटी तो बचा ली, पर पढ़ाएंगे कैसे यही चिंता मन में रहती थी लेकिन लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बोले वह शब्द आज भी कानों में संदेश की तरह गूंजता है कि ‘‘जिस दिन देश का किसान ऊपर उठ गया उस दिन देश खुद व खुद ऊपर उठ जाएगा’’।
यही विचार मन और शरीर में ताकत पैदा कर हमें जमीन और जमीदारी से जोड़ने में कामयाब रहा, तब बच्चों की पढ़ाई को जारी रखने के लिए पैसे की जरूरत थी।
वर्ष, 2016 जनवरी में दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर प्रधानमंत्री ग्रामीण सिंचाई योजना के संबंध में कार्यक्रम देखा तो काफी प्रभावित हुआ। अब मन में बेटी को बचाने के साथ-साथ बेटी को पढ़ाने की भी आस बंधी। मैं ब्लाॅक में बागवानी विभाग के अधिकारी डाॅ प्रदीप कुमार हिमराल के पास गया।
उन्होंने न केवल मेरा मार्गदर्शन किया बल्कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से मैं उन्नत कृषि कर अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ करने में किस प्रकार सक्षम हो सकता हूं, इसके बारे में जानकारी भी दी।
वर्ष 2016 में छोटी सम्परिन्क्लेर प्रणाली खेतों में स्थापित की। इसकी 1 लाख 24 हजार 618 रुपये की लागत की थी, जिसमें से 99 हजार 693 रुपये सरकार द्वारा प्रदान किए गए, जो कि पिता के नाम का था।
पहले 10 बीघा खेतों को सींचने में 5/6 दिन का समय लगता था। अब 6 बीघा खेत को सींचने मे 4 घण्टे लगने लगे। पानी की भी बचत हुई और अब बचे हुए समय को खेती के साथ-साथ पशु पालन में लगाने लगा।
समय की बचत ने कार्य क्षमता को बढ़ाया और फसल में वृद्धि होने लगी। पहले जहां एक बीघे में प्रति वर्ष 30 हजार रुपये की आमदन होती थीे अब वहां प्रति वर्ष डेढ़ लाख रुपये से अधिक की आमदन होने लगी।
कहां तो साल में केवल एक लाख 80 हजार रुपये कुल प्राप्त होते थे और कहां अब साल के 9 लाख रुपये की आमदन होने लगी। आय बढ़ी तो बेटियों की उच्च शिक्षा के लिए शिमला के बड़े काॅलेज सेंट बीड्स में दाखिला करवाया, फिर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से उन्हें एमएससी तक की शिक्षा पूर्ण करवाने में सफल रहा।
इस दौरान बेटा भी होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर चुका था और पर्यटन उद्याोग के तहत अच्छे होटल में कार्य कर रहा था।
भोपाल सिंह बोला ‘‘लोगों की आमदनी बढ़ती है तो वह आंगन में गाड़ी खड़ी कर लेते हैं, गाड़ी सजाने में गर्व महसूस करते है और पशु खड़े करने में शर्म, बात भी ठीक है साब! गाड़ी की किस्त देना आसान है पर पशु को घास करना आसान नहीं है।
मेरे पूछने पर कि भोपाल सिंह जी आपने फिर भी आंगन में पशु खड़े किए क्यों? भोपाल सिंह बोले वह किसान क्या जिसके आंगन में पशु न हो।’’
मेरी आमदनी बढ़ी और मैंने उन्नत किस्म की मुर्रा नस्ल का भैंसा खरीदा। इस क्षेत्र में पशु कम (4 से 5 लीटर) दूध देते थे। मैंने मुर्रा नस्ल के बारे में सुन रखा था। यह हरियाणा पंजाब की देसी भैंस नस्ल है, जिसकी अच्छी परवरिश हो तो 70 से 80 लाख की कीमत में बिकते हैं।
मैंने 1 लाख में मुर्रा भैंसा खरीदा था। उसकी संकर नस्ल से पैदा भैंस अब अच्छा दूध देती है। इस क्षेत्र में अन्य किसानों ने की भी संकर नस्ल से पशु तैयार किए। आज मेरा परिवार दूध व संकर नस्ल तैयार करके लगभग ढाई लाख रुपये से अधिक की अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहा है।
कृषि भी एक प्रकार का प्रबंधन है। यदि आपको इसमें सफलता पानी है तो एक कुशल कृषि प्रबंधक होना आवश्यक है। अपने आप को कम पढ़ा-लिखा कहने वाले भोपाल सिंह ने शायद अंजाने में ही प्रबंधन विषय का बहुत बड़ा वकतव्य दे दिया था।
उसने कहा कि एक ही फसल पर निर्भर न रहो। अलग-अलग समय में अलग-अलग फसलें बौते रहो। इससे आमदनी भी बनी रहती है और खेती की मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है।
मेरी आमदनी बढ़ी तो मैंने सबसे पहले आधुनिक उपकरण और औजार खरीदे, जिसमें पाॅवर टिल्लर, सीड ड्रिल, कल्टीवेटर, चैप कट्टर, ब्रश कट्टर आदि सभी मशीनों का संग्रहण किया और आधुनिक खेती के तरीकों को अपनाया और अपनी आर्थिकी को बढ़ाया।
आज मुझे यह कहते हुए फक्र हो रहा है कि मेरी एक बिटिया शिमला के प्रतिष्ठित स्कूल में कैमेस्ट्रिी की लैक्चरार है तथा दूसरी बिटिया एमएससी करने के उपरांत बैंकिंग क्षेत्र में सेवाएं प्राप्त करने के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का मेरा स्वप्न पूरा हुआ।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत खेत में निरंतर फ्रासबिन, शिमला मिर्च, फूल गोभी, पता गोभी, मटर, टमाटर और प्याज की फसलों को निरंतर उगा रहा हूं। इसके अतिरिक्त हल्दी, लहसुन, आलू आदि की भी खेती समय-समय पर कर लिया करता हूं।
भोपाल सिंह ने राज उगलते हुए खेत से दूर उंगली का इशारा कर कहा वो देखो अब तो पक्का मकान भी बन रहा है, लैंटर पा दिया है साब जी। खेत से अपनी पत्नी सुशीला को आवाज देते हुए शुनो चा बन गई सुशीला। तो हम आते हैं।
प्रतिउत्तर में बीबी का स्वर, बना दी है चाय जल्दी आ जाओ। चाय की चुस्कियां लेते हुए भोपाल सिंह अपनी सफलता के हर पायदान के अंश को उन्नमुक्त कंठ से सांझा कर रहा था। कृषि, पशु पालन और सब्जी उत्पादन में मिले पुरस्कारों, जिसमें कृषि विभाग द्वारा वर्ष 2015 में खण्ड स्तर पर श्रेष्ठ किसान, पशु पालन विभाग द्वारा वर्ष 2017 में श्रेष्ठ पशु पालक और वर्ष 2019 में श्रेष्ठ सब्जी पालक और अन्य कई ट्रोफियां हमारे समक्ष सजाता गया।
बेटा आजकल कोरोना संकटकाल के दौरान शिमला में है और खेती-बाड़ी में हाथ बंटाता है। ‘‘कामयाबी का एक बड़ा खुलासा करते हुए भोपाल सिंह बोला’’ अब तो हमने एसयूवी कार भी ले ली है वो भी एक मुश्त नगद पैसे देकर।
बच्चों की जिद थी जी अब पूरी तो करनी पड़ती है ना साब। हम उसके घर से बाहर आ गए थे। भोपाल सिंह हमें छोड़ने के लिए आया और अपनी सफलता की कहानी निरंतर बांचता रहा।
दयोड़ी से आगे पहुंच कर पेड़ के पास भारयुक्त जीवन से भारमुक्त जीवन की यात्रा वृतांत का वर्णन करते हुए भोपाल सिंह वर्मा निश्चितता और संतोष का सहारा लेकर पेड़ से टेक लगाकर हाथ जोड़कर बैठ गया और ठंडी सांस लेकर बोला बस यही अपनी कहानी है साहब जी!