भारतीय परम्परा पर आधारित है ठेंगड़ी जी का चिंतनः दत्तात्रेय

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शिमला। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने कहा कि दत्तोपंत ठेंगड़ी अपनी आखिरी सांस तक असमानता को समाप्त करने के लिए प्रयासरत रहे। सद्भाव उनका विश्वास था और वे दूरदृष्टा थे।

उसी से, उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में संगठन बनाए और उनका देश-काल-स्थिति के अनुसार मार्गदर्शन किया। यह सब करते हुए, उन्होंने असमानता को समाप्त करने के लिए योगदान दिया।

राज्यपाल आज हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के सभागार में दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के जन्मशताब्दी समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि श्री ठेंगडी असाधारण व विलक्षण प्रतिभा के धनी, महापरिवर्तन के पुरोधा, मूलगामी भारतीयता के भाव व जीवन दर्शन के प्रस्तोता एवं समाज के प्रत्येक क्षेत्र में मार्ग दर्शन करने वाले, भारतीय दर्शन आधारित तीसरा मार्ग बताने वाले चिन्तक व विचारक थे।

उन्होंने कहा कि उनसे उनके व्यक्तिगत संबंध थे और विभिन्न विषयों पर उनसे गहन चर्चा होती थी। वह कहा करते थे, ‘‘व्यक्ति कितना बड़ा अथवा श्रेष्ठ क्यों न हो, हमारा प्रयास रहना चाहिए कि विचारधारा से उसे मजबूत बनाया जाना चाहिए और यह मजबूती संगठन से संभव है। संगठन में हमेशा निस्वार्थ सेवा करने वालों को जोड़ा जाना चाहिए ताकि उनके योगदान से देश की उन्नति सुनिश्चित की जा सके।’’

राज्यपाल ने कहा कि ठेंगड़ी भविष्यद्रष्टा थे। उन्होंने 1955 में जिस भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की थी, वह संगठन अगले तीन दशक में ही 1979 के आते-आते भारत का सबसे बड़ा मजदूर संगठन बन गया। उस समय भारतीय मजदूर संघ से 31 लाख कर्मचारी जुड़े थे।

आज इस संगठन में इतने मजदूर जुड़े हुए हैं जो कि भारत में काम कर रहे सभी मजदूर संगठनों के कुल सदस्यों की संख्या से भी अधिक हैं। उन्होंने कहा कि श्री ठेंगड़ी ने देश का सबसे बड़ा मजदूर संगठन खड़ा कर दिया। उन्होंने मजदूर संगठनों को भी वैचारिक आयाम दिया।

ठेंगड़ी जी का संगठन कभी हिंसा से नहीं जुड़ा और न ही उन्होंने अपने संगठन को किसी राजनीतिक पार्टी का पिछलग्गू बनने दिया। उन्होंने कहा कि मजदूर संगठन के नेता होने के बावजूद दूसरों की भांति वे शहरी चकाचैंध में कभी नहीं डूबे। उन्होंने तो कृषि क्षेत्र में भी भारत का सबसे बड़ा संगठन भारतीय किसान संघ खड़ा कर दिया।

दत्तात्रेय ने कहा कि ठेंगड़ी ने अनेक महान हस्तियों के सहचर्य और समर्पण के माध्यम से बनाई गई व्यापक दृष्टि हमारी प्राचीन परंपराओं के अनुरूप थी। उनका स्पष्ट मत था कि यदि समाज में असमानता है तो देश जीवित नहीं रह सकता।

उन्होंने कहा कि ठेंगड़ी का मानना था कि समरसता के बिना समानता संभव नहीं है, इसके लिए भाईचारे की आवश्यकता है। समाज में सद्भाव तभी बनता है, जब हमें समाज में पीछे रह गए लोगों को उठाने के लिए थोड़ा झुकना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि ठेंगड़ी के अनुसार हमारा राष्ट्र निर्माणाधीन नहीं है, हमें राष्ट्र का निर्माण नहीं करना, बल्कि पुनर्निर्माण करना है। हमें क्रांति नहीं करनी है, बल्कि युगानुकूल परिवर्तन करना है।

राज्यपाल ने दत्तोपंत ठेंगारी के शताब्दी कार्यक्रम पर आधारित एक पुस्तक का विमोचन भी किया। उन्होंने इस अवसर पर भारतीय किसान संघ, हिमाचल प्रदेश की एक वेबसाइट का शुभारम्भ भी किया।

कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री जो श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी वर्ष समारोह समिति हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष भी हैं, ने इस अवसर पर कहा कि ठेंगड़ी का कहना था कि सत्ता की सीमाएं होती हैं जबकि चिंतन की कोई सीमा नहीं, इसलिए सत्ता के साथ चलने से चिंतन नष्ट हो जाता है।

वह भारतीय चिंतन से प्रेरित थे। उन्होंने कहा कि श्री ठेंगड़ी कहते थे मनुष्य को खण्ड-खण्ड में नहीं समझा जा सकता, उसे समझने के लिए इंटेग्रल अप्रोच होनी चाहिए। इस चिंतन को पंडित दीन दयाल ने समझा और ठेंगड़ी ने भाष्य दिया।

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