शिमला। भाषा, कला एवं संस्कृति मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर ने यहां वीडियों काॅन्फ्रेंस के माध्यम से द्वितीय राजभाषा संस्कृत राज्य समिति की पहली बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा अपनी शब्दावली, साहित्य, विचारों, भावों और मूल्यों में समृद्ध है और इस भाषा को व्यवहारिक रूप से जीवन में अपनाने की आवश्यकता है।
गोविन्द सिंह ठाकुर ने कहा कि संस्कृत को दूसरी राजभाषा का दर्जा देने वाला हिमाचल प्रदेश उत्तराखण्ड के बाद दूसरा राज्य है। संस्कृत भाषा समाज को एक सूत्र में बांधती है।
उन्होंने कहा कि हिमाचल की बोलियां संस्कृत भाषा से मिलती-जुलती हैं। क्षेत्रीय बोलियों के शब्दों का उच्चारण संस्कृत भाषा से मिलता है। प्रदेश में संस्कृत को स्थापित करने के साथ हम क्षेत्रीय भाषाओं को भी संरक्षण प्रदान कर सकते हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी क्षेत्रीय बोलियों की शिक्षा प्रदान करने पर विशेष बल दिया गया है।
भाषा, कला एवं संस्कृति मंत्री ने कहा कि संस्कृत को प्रारंभिक कक्षाओं में पढ़ाने की आवश्यकता है ताकि आगे चलकर विद्यार्थी संस्कृत को व्यावहारिक रूप से प्रयोग कर सकें।
विद्यालयों में भी इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था तैयार की जानी चाहिए जिसमें विभिन्न स्तरों पर विद्यार्थी ऐच्छिक रूप से संस्कृत विषय की शिक्षा ग्रहण कर सकें। इस व्यवस्था को लागू करने के लिए हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड का भी सहयोग लिया जाएगा।
उन्होंने कहा कि प्रारंभिक शिक्षा के बाद विश्वविद्यालय स्तर पर संस्कृत के बहु-विषयक उपयोग पर भी विशेष बल देना चाहिए। सामाजिक क्षेत्र में भी संस्कृत को लोकप्रिय बनाने के लिए एक व्यवस्था तैयार की जानी चाहिए।
उन्होंने अधिकारियों को संस्कृत भाषा को और सरल तथा व्यावहारिक बनाने के लिए एक प्रारूप तैयार करने के निर्देश दिए। इस प्रारूप को तैयार करने के लिए संस्कृत भाषा से जुड़े हुए विद्वानों, विद्यार्थियों और प्रदेश के लोगों से भी सुझाव लिए जाएं।