जानिए कैसे बना था 50 साल पहले हिमाचल देश का 18वां राज्य

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शिमला। हिमाचल प्रदेश की विकास यात्रा का शुभारम्भ 1948 में लगभग शून्य से हुआ। पूर्ण राज्य बनने के बाद विकास को आशातीत गति मिली।

विकास के लिए वांछित मूलभूत संरचना और धन का नितांत अभाव होते हुए भी प्रदेश ने हार नहीं मानी।

राज्य में विभिन्न काल खण्डों में रही सरकारों ने प्रदेश के सर्वागींण विकास के लिए सशक्त प्रयास किए।

50 वर्षों के दौरान सड़क निर्माण, शिक्षा के प्रसार, विद्युतीकरण, पेयजल, कृषि एवं बागवानी, विद्युत उत्पादन, पर्यटन विकास, स्वास्थ्य सुविधाएं, औद्योगिकरण, सामाजिक सरोकार सहित अन्य सभी क्षेत्रों में राज्य का अभूतपूर्व विकास हुआ है।

परिणाम अच्छे रहे और हिमाचल प्रदेश की विकास यात्रा, अन्य प्रदेशों, विशेषकर पहाड़ी प्रदेशों के लिए एक मिसाल बन गई।

हिमाचल प्रदेश देश की आज़ादी के पूरे आठ माह के उपरान्त 15 अप्रैल, 1948 को, 30 छोटी-बड़ी पहाड़ी रियासतों के विलय के परिणाम-स्वरूप चीफ कमिशनर प्रोविन्स के रूप में अस्तित्व में आया।

महासू, मण्डी, चम्बा व सिरमौर को अलग-अलग जिलों का दर्जा दिया गया। उस समय हिमाचल प्रदेश का क्षेत्रफल 10,451 वर्ग मील और जनसंख्या 9,83,367 थी।

वर्ष 1950 को हिमाचल को ‘सी’ स्टेट का राज्य का दर्जा देकर विधान सभा के गठन का प्रावधान कर दिया।

मार्च, 1952 में डा परमार ने इस प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की और अपने तीन सदस्यीय मंत्रिमण्डल का गठन किया।

जुलाई, 1954 में, बिलासपुर को हिमाचल में मिलाकर इसे प्रदेश का पांचवां जिला बनाया गया।

सन् 1956 में ‘स्टेटस रिआर्गेनाइजेशन एक्ट’ लागू होने के बाद 31 अक्तूबर, 1956 को हिमाचल प्रदेश विधानसभा समाप्त करके उसकी जगह यहां टेरिटोरियल काउन्सिल बना दी गई।

पहली नवम्बर, 1956 को हिमाचल प्रदेश केन्द्र शासित राज्य बना।

वर्ष 1963 में ‘गवर्नमैंट ऑफ यूनियन टेरिटोरिज एक्ट’ पास करके पहली जुलाई, 1963 को टेरिटोरियल काउन्सिल को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में परिवर्तित किया गया। परिणामस्वरूप डाॅ वाई एस परमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।

सन् 1966 में ‘पंजाब स्टेट्स पुनर्गठन एक्ट’ पास किया गया और कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर, कुल्लू, लाहौल-स्पिति, शिमला, नालागढ़, कण्डाघाट तथा डलहौजी आदि क्षेत्र हिमाचल में शामिल किए गए जिससे हिमाचल का क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलामीटर हो गया।

इसके पश्चात भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषायी पुनर्मिलन तो हो गया लेकिन इस प्रदेश के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना अभी शेष था। दिसम्बर, 1970 में संसद में ‘स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश एक्ट-1970’ पास हुआ।

25 जनवरी, 1971 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वयं शिमला आकर यहां के ऐतिहासिक रिज मैदान में एकत्रित हजारों हिमाचलवासियों के बीच हिमाचल को पूर्ण राज्य प्रदान करने की घोषणा की। इस प्रकार हिमाचल प्रदेश भारत का 18वां राज्य बन गया।

25 जनवरी का वह दिन हिमाचल के परिश्रमी व भोले-भाले लोगों, राजनीतिक नेताओं, स्वतन्त्रता सेनानियों तथा प्रजामण्डलों के कार्यकर्ताओं के लिए अत्यन्त प्रसन्नता का दिन था क्योंकि उस दिन उनका वर्षों का सपना, साकार हुआ था।

आज यह प्रदेश पूर्ण राज्य के रूप में अपनी शानदार यात्रा के 50 वर्ष पूरे कर रहा है। इस यात्रा को स्मरणीय बनाने के लिए इस वर्ष को स्वर्ण जयंती वर्ष के रूप में आयोजत करने का निर्णय लिया गया है।

हिमाचल प्रदेश ने अपने अस्तित्व, भौगोलिकता, आकार-प्रकार और पूर्ण राज्यत्व की प्राप्ति के लिए जिन दुष्कर रास्तों को तय किया है, वह उक्त घटनाक्रम से ही ज़ाहिर हो जाता है।

इस प्रदेश ने लगभग शून्य से अपनी विकास यात्रा आरम्भ की थी। पिछले 50 वर्षों के दौरान, विशेषकर पूर्ण राज्यत्व का दर्जा प्राप्त करने के बाद, हिमाचल प्रदेश ने विकास की जिन ऊँचाइयों को छूआ है वह अन्य पहाड़ी क्षेत्रों के लिए प्रेरणादायक है।

इस अवधि के दौरान इस प्रदेश ने सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाकर चहुंमुखी विकास में नए आयाम स्थापित किए हैं। कठिन भौगोलिक स्थितियों और सीमित साधनों के बावजूद हिमाचल ने कृषि, बागवानी, सड़क नेटवर्क, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रगति की है।

वर्ष 1971 में जब इस प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ, उस समय भी विकास की रोशनी चुनिंदा जगहों तक ही सीमित थी। प्रदेश में सड़कों की लम्बाई 7370 कि.मी. से भी कम थी। साक्षरता दर भी 31.3 प्रतिशत थी। स्वास्थ्य संस्थानों की संख्या 482 थी तथा 4963 शिक्षण संस्थान थे। प्रदेश के 2944 गांवों में बिजली उपलब्ध थी और प्रति व्यक्ति आय मात्र 651 रुपये थी।

आज हिमाचल की गिनती देश में एक खुशहाल, प्रगतिशील तथा सम्पन्न राज्यों की श्रेणी में होती है। प्रदेश में सड़कों की लम्बाई 37808 किलोमीटर हो गई है। 97 प्रतिशत से भी अधिक पंचायतें सड़कों से जुड़ चुकी हैं।

शेष पंचायतों को शीघ्र ही सड़क से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। शिक्षण संस्थानों की संख्या 15,553 हो गई है तथा साक्षरता दर 82.80 प्रतिशत तक पहुंच गई है। प्रदेश में 4,320 स्वास्थ्य संस्थानों का बड़ा नेटवर्क लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं प्रदान कर रहा है।

आज प्रदेश के सभी गांवों में बिजली उपलब्ध है। यहां तक कि हिमाचल प्रदेश आज ‘सरप्लस बिजली राज्य’ बन चुका है। प्रति व्यक्ति आय भी बढ़कर 1,95,255 रुपये हो गई है।

प्रदेश की इस विकास यात्रा में, वर्तमान सरकार के सेवाकाल का विशेष महत्व है। इस अल्प अवधि में प्रदेश सरकार ने विकास की नई बुलंदियां छुई हैं और प्रदेश का समग्र विकास सुनिश्चित किया है।

इस अवधि में प्रदेश को सुशासन, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि- बागवानी सहित सतत् विकास लक्ष्यों में बेहतर प्रदर्शन के लिए अनेक राष्ट्र-स्तरीय पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।

अनेक नई योजनाओं और नवाचार प्रयासों के परिणामस्वरूप यह प्रदेश निरन्तर प्रगति के पथ पर शिखर की ओर अग्रसर है।

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