4 नवंबर को रात 8.03 बजे होगा चंद्रोदय
शिमला। इस बार करवाचौथ का व्रत और पूजन बहुत विशेष है। विवाहित महिलाओं का पति की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाना महापर्व करवाचौथ इस बार कई अच्छे संयोग में आ रहा है।
जाने माने ज्योतिषविद पं. शशिपाल डोगरा कहते हैं कि इस बार जहां करवाचौथ पर सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, वहीं शिवयोग, बुधादित्य योग, सप्तकीर्ति, महादीर्घायु और सौख्य योग का भी निर्माण हो रहा है।
ये सभी योग बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और इस दिन की महत्ता और भी बढ़ाते हैं। खास तौर पर सुहागिनों के लिए यह करवाचौथ अखंड सौभाग्य देने वाला होगा। उनका कहना है कि ज्योतिष के अनुसार यह योग करवाचौथ को और अधिक मंगलकारी बना रहा है। इससे करवाचौथ व्रत करने वाली महिलाओं को पूजन का फल हजारों गुना अधिक मिलेगा।
करवाचौथ की व्रत पूजा विधि
पं. डोगरा कहते हैं कि करवाचौथ का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाया जाता है। करवाचौथ के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाएं। इसके बाद सरगी के रूप में मिला हुआ भोजन करें, पानी पिएं और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें। करवाचौथ में महिलाएं पूरे दिन जल-अन्न कुछ ग्रहण नहीं करतीं। शाम के समय चांद को देखने के बाद दर्शन कर व्रत खोलती हैं।
पं शशिपाल डोगरा के मुताबिक करवाचौथ के दिन भगवान गणेश, गौरी तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है। चंद्रमा को सामान्यतः आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है। इसलिए चंद्रमा की पूजा करके महिलाएं वैवाहिक जीवन में सुख शांति तथा पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।
करवाचौथ पर चंद्रोदय होगा 8.03 बजे
पं. डोगरा के मुताबिक करवाचौथ के दिन इस बार चंद्रोदय रात 8.03 बजे होगा, जिसमें आप चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना करवा चौथ का व्रत पूर्ण कर सकती हैं।
इस दिन शिवयोग के साथ ही सर्वार्थसिद्धि, सप्तकीर्ति, महादीर्घायु और सौख्य योग चार नवंबर को प्रातः 3:24 बजे से कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि सर्वार्थ सिद्धि योग एवं मृगशिरा नक्षत्र में चतुर्थी तिथि का समापन 5 नवंबर को प्रातः 5:14 बजे होगा।
पं. डोगरा ने बताया कि 4 नवंबर को शाम 5:34 बजे से शाम 6:52 बजे तक करवाचौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त है। करवाचौथ के दिन मां पार्वती, भगवान शिव कार्तिकेय एवं गणेश सहित शिव परिवार का पूजन किया जाता है।
मां पार्वती से सुहागिनें अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। इस दिन करवे में जल भरकर कथा सुनी जाती है। महिलाएं सुबह सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलती हैं।